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Maharashtra Politics: महाराष्ट्र में सियासी रार, फिर निशाने पर राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी

Maharashtra Politics महाराष्ट्र में केवल 15 से 20 दिन पीछे की घटनाओं पर नजर दौड़ाएं तो समझना मुश्किल नहीं होगा कि महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को उनके एक बयान पर घेरने की कोशिशें क्यों हो रही हैं?

By Jagran NewsEdited By: Sanjay PokhriyalPublished: Mon, 28 Nov 2022 10:40 AM (IST)Updated: Mon, 28 Nov 2022 10:40 AM (IST)
Maharashtra Politics: महाराष्ट्र में सियासी रार, फिर निशाने पर राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी
महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी। फाइल

मुंबई, ओमप्रकाश तिवारी। ‘हम जब पढ़ते थे, मिडिल स्कूल में, हाईस्कूल में, तो उस हमारे टीचर हमसे पूछते थे, आपका पसंदीदा लीडर कौन है? हम लोग उस समय, जिसे सुभाषचंद्र बोस अच्छे लगे, जिसे जवाहरलाल नेहरू अच्छे लगे, या जिसे महात्मा गांधी अच्छे लगते थे, उन्हें अपना हीरो बताते थे। लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि कोई आपसे पूछे कि ‘हू इज योर आइकन, हू इज योर फेवरिट हीरो’, तो आपको बाहर जाने की कोई आवश्यकता नहीं है। यहीं महाराष्ट्र में आपको मिल जाएंगे।

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शिवाजी तो पुराने युग की बात हैं, नए युग की बात बोल रहा हूं, यहीं मिल जाएंगे डा. भीमराव आंबेडकर से लेकर नितिन गडकरी तक, यहीं मिल जाएंगे आपको आपके आइकन।’ बीते दिनों औरंगाबाद में महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने यही कहा था, जिस पर बवाल मचा और वह कई दिनों तक कायम रहा। आखिर इसमें भगत सिंह कोश्यारी ने मराठा साम्राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज का अपमान कैसे किया? निश्चित रूप से हिंदी और मराठी के कुछ शब्दों के प्रयोग में अक्सर भ्रम की स्थिति पैदा हो जाती है। लेकिन यहां तो राज्यपाल ने जो कहा उसमें कहीं भी छत्रपति शिवाजी महाराज के अपमान का तनिक भी बोध नहीं हो रहा है। उन्होंने ऐसा तो कहीं नहीं कहा कि शिवाजी पुराने युग की बात हैं, उन्हें मानना छोड़ दिया जाए। उन्होंने छत्रपति शिवाजी महाराज के विचारों को न मानने की बात भी कहीं नहीं कही है।

हां, नए युग के कुछ आदर्शों के नाम जरूर गिना दिए हैं। उनमें एक नाम बाबासाहब आंबेडकर का है, तो दूसरा नितिन गडकरी का। तो क्या बाबासाहब आंबेडकर आज के युग के ‘आइकन’ नहीं हैं? राज्यपाल ने तो अपने वक्तव्य में यह कहते हुए महाराष्ट्र की प्रशंसा ही की है कि महाराष्ट्र वासियों को अपना आदर्श तलाशने के लिए बाहर देखने की जरूरत ही नहीं है। यहां पर अनेक आदर्श मौजूद हैं। जैसा कि राज्यपाल ने कहा कि उनके जमाने में किसी को सुभाषचंद्र बोस पसंद थे, किसी को नेहरू, तो किसी को गांधी। उसी प्रकार आज भी कोई शिवसेना संस्थापक बालासाहब ठाकरे को अपना आदर्श मानता है तो कोई लता मंगेशकर या सचिन तेंदुलकर को।

राज्यपाल ने कहां कहा है कि आप छत्रपति शिवाजी महाराज को छोड़कर बालासाहब, लता और सचिन को अपना आदर्श मानिए! लेकिन यह राजनीति है। इसमें सारे निर्णय राजनीतिक लाभ-हानि को लेकर किए जाते हैं। मंदिर में टीके से लेकर रमजान में टोपियां तक सियासी नफा-नुकसान देखकर ही लगाई जाती हैं। महाराष्ट्र में केवल 15 से 20 दिन पीछे की घटनाओं पर नजर दौड़ाएं तो समझना मुश्किल नहीं होगा कि राज्यपाल को उनके एक बयान पर घेरने की कोशिशें क्यों हो रही हैं? अभी ज्यादा दिन नहीं हुए, जब सातारा के प्रतापगढ़ किले के मुहाने पर बनी अफजल खान की कब्र पर अतिक्रमण करके उसे शानदार मजार का रूप देने के प्रयासों को बाकायदा उच्च न्यायालय के आदेश पर ध्वस्त कर दिया गया।

यह मामला एक दशक से ज्यादा समय से टलता आ रहा था। बीजापुर के आदिलशाही वंश के सेनापति रहे अफजल खान की छत्रपति शिवाजी से मुलाकात सातारा के प्रतापगढ़ किले के नीचे हुई थी। वहीं छत्रपति शिवाजी ने अपने बघनखे से लंबे-तगड़े अफजल खान का पेट फाड़कर उसका वध कर दिया था। वध करने के बाद उसका सिर तो शिवाजी ने तोप के गोले से उड़वा दिया था और जहां उसका वध किया था, उसके निकट ही उसकी कब्र भी बनवा दी थी।

लगभग 20 वर्ष पहले तक प्रतापगढ़ किले की सीढ़ियों के निकट बनी यह कब्र छत्रपति शिवाजी की वीरता और साहस की गाथा सुनाती प्रतीत होती थी। लेकिन आसपास के गांवों में रहने वालों का कहना है कि वर्ष 2000 के बाद अफजल खान की कब्र का सुंदरीकरण शुरू कर दिया गया। उसके ऊपर न केवल एस्बेस्टस शीट का छत्र लगा दिया गया, बल्कि उस छत्र के अंदर मौलानाओं के लिए कमरे तक बना दिए गए थे। कहा जाता है कि इन कमरों में रहनेवाले मौलाना प्रतापगढ़ किले की ओर जानेवाले पर्यटकों को अफजल खान की वीरता की गाथा सुनाने लगे थे। कब्र के सौंदर्यीकरण के लिए किया गया अतिक्रमण 10 नवंबर की उसी तिथि को ध्वस्त किया गया, जिस तिथि को छत्रपति शिवाजी ने अफजल खान का वध किया था। इस तिथि को महाराष्ट्र में ‘शिव प्रताप दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।

जाहिर है, शिंदे सरकार के कार्यकाल में हुआ यह काम छत्रपति शिवाजी को मानने वालों के बीच उसकी साख बढ़ानेवाला ही था। दूसरी ओर जिन सरकारों के कार्यकाल में कब्र का मजार के रूप में सुंदरीकरण चलता रहा, उनकी साख घटानेवाला। इसलिए शिंदे सरकार की यही उपलब्धि आज राज्यपाल कोश्यारी के एक वाक्य पर भारी पड़ रही है। बवाल का दूसरा कारण है कांग्रेस नेता राहुल गांधी का ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के दौरान सावरकर पर दिया गया बयान। सावरकर महाराष्ट्र के थे, और महाराष्ट्र में उनका विशेष सम्मान भी है। ऐसे में महाराष्ट्र में ही आकर उनके विरुद्ध बयान देने का कुछ तो विशेष उद्देश्य रहा होगा राहुल गांधी का। लेकिन पासा तब उलटा पड़ गया, जब राहुल के बयान पर घिरने लगे उद्धव ठाकरे और आदित्य ठाकरे।

कहां उद्धव के पिता स्वर्गीय बालासाहब ठाकरे सावरकर को अपना ‘आइकन’ मानते रहे, कहां बालासाहब के ही पौत्र सावरकर को भला-बुरा कहनेवालों के गले लग रहे हैं आजकल। भारतीय नजता पार्टी ने जब इस मुद्दे पर शिवसेना को घेरना शुरू किया, तो उसके प्रवक्ता संजय राउत की ओर से बयान आ गया कि राहुल का सावरकर पर दिया गया बयान महाविकास आघाड़ी में दरार डाल सकता है। लेकिन यह मसला तूल पकड़ पाता, उससे पहले ही बिल्ली के भाग्य से छींका फूट गया। यानी राज्यपाल महोदय का वह बयान आ गया, जिस पर बवाल आरंभ हो गया।

[मुंबई ब्यूरो प्रमुख]


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