सुब्रत राय ने इन्वेस्टर्स को भरोसा दिलाते हुए कहा- कोर्ट पर है पूरा विश्वास
सहारा प्रमुख सुब्रत राय सहारा देशभर के विभिन्न शहरों में जाकर अपने कर्मचारियों, निवेशकों और अभिकर्ताओं को सहारा में विश्वास बनाए रखने के लिए धन्यवाद दे रहे हैं। वह यहां भी आए और कर्मचारियों, निवेशकों में जोश भरा।
नागपुर। सहारा प्रमुख सुब्रत राय सहारा देशभर के विभिन्न शहरों में जाकर अपने कर्मचारियों, निवेशकों और अभिकर्ताओं को सहारा में विश्वास बनाए रखने के लिए धन्यवाद दे रहे हैं। वह यहां भी आए और कर्मचारियों, निवेशकों में जोश भरा।
मंगलवार सुबह साढ़े नौ बजे सहारा प्रमुख निजी विमान से नागपुर पहुंचे। यहां होटल रेडिसन ब्ल्यू में अपने कर्मचारियों-अधिकारियों से मुलाकात की।
इस दौरान वह मीडिया से बचते रहे। दोपहर दो बजे वह वर्धा रोड स्थित रानी कोठी में दो हजार से अधिक लोगों से रूबरू हुए। यहां सिर्फ उन्हीं को प्रवेश मिला, जिनको बुलाया गया था। यहां सहारा प्रमुख ने कहा कि हमें न्यायपालिका पर पूरा विश्वास है। देर से ही सही पर हमें न्याय मिलेगा।
उन्होंने सहारा पर लग रहे आरोपों को झूठा करार दिया। चूंकि मामला न्यायालय में विचाराधीन है, इसलिए किसी भी तरह के टिप्पणी से इंकार किया।
सहारा प्रमुख की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार वर्ष 2006 में उन्होंने करीब 1.98 करोड़ ओएफसीडी (आॅप्शनली फुली कनवर्टिबल डिबेंचर) निवेशकों के प्रति रिटर्न कंपनी रजिस्ट्रार, कोलकाता से विधिवत अनुमति और स्वीकृति लेकर फाइल कराया था। यहां निवेशकों की संख्या 50 से अधिक थी।
इसके बाद 2008 में भी कंपनी रजिस्ट्रार, उत्तर प्रदेश व कंपनी रजिस्ट्रार महाराष्ट्र से ओएफसीडी के माध्यम से सहारा इंडिया रियल एस्टेट कारपोरेशन लिमिटेड व सहारा हाउसिंग इन्वेस्टमेंट कारपोरेशन लिमिटेड के लिए धन जुटाने के लिए लिखित अनुमति प्राप्त की थी।
कंपनी रजिस्ट्रार अत्यधिक महत्वपूर्ण सरकारी विभाग है जो सीधा कारपोरेट मामलों के मंत्रालय के आधीन कार्य करता है।
बकौल सहारा प्रमुख, नियमित रूप से व विधिवत ढंग से अपनी बैलेंस शीट व रिटर्न कंपनी रजिस्ट्रार के पास फाइल किये हैं। उन्होंने भी नियमित रूप से सहारा का निरीक्षण व जांच किया था। इस विधिवत प्रक्रिया में सेबी कभी भी सम्मिलित नहीं था। इससे स्पष्ट है कि हमने ओएफसीडी सरकारी स्वीकृति के पश्चात व निश्चित रूप से सभी नियमों का पालन करते हुए ही जारी किए थे।
इस प्रकार, हम कानूनी प्रावधानों का पूर्ण रूप से पालन कर रहे थे। यहां तक कि इस विवाद के शुरुआत में ही, तत्कालीन विधि मंत्री वीरप्पा मोइली, भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश ए.एम. अहमदी, पूर्व मुख्य न्यायाधीश वी.एन. खरे, पूर्व साॅलीसीटर जनरल मोहन परासरन, पूर्व एडीशनल साॅलीसीटर जनरल डाॅ. अशोक निगम व अन्य कई जाने-माने कानूनविदों ने इस मामलें में सहारा को सही व सेबी को गलत ठहराया है।
उनके अनुसार यह दोनों कंपनियां सेबी के अधिकार क्षेत्र से बाहर थीं। इन तथ्यों के बावजूद सेबी ने 2010 से ही हमें दंड देना शुरू कर दिया था, वो भी पूर्वगामी (रिट्रोस्पेक्टिव) प्रभाव से। उन्होंने कहा कि निवेशकों की बड़ी संख्या है। इसलिए इसे निजी प्लेसमेंट नहीं करार दिया जा सकता है।
हालांकि कानून में ऐसी कोई सीमा कहीं भी नहीं दी गई है। वैसे भी सहारा ने वर्ष 2006 में अपने एक पूर्व ओएफसीडी इश्यू के 1.98 करोड़ निवेशकों का रिटर्न कंपनी रजिस्ट्रार, कोलकाता के पास फाइल कराया था। तब व उसके 5-6 वर्ष बाद तक भी किसी अधिकारी या किसी विभाग ने कभी भी कोई आपत्ति नहीं जताई।