एक बहन ने अपने भाई को किडनी देकर दी नई जिंदगी
किडनी दान से कोई शारीरिक दुर्लबता नहीं आती है, यह सिर्फ़ भ्रम है। किसी को जीवनदान देने का आनंद कुछ और ही होता है। इसे एक बहन ने अपने भाई को किडनी देकर साबित कर दिया।
नागपुर। किडनी दान से कोई शारीरिक दुर्लबता नहीं आती है, यह सिर्फ़ भ्रम है। किसी को जीवनदान देने का आनंद कुछ और ही होता है। इसे एक बहन ने अपने भाई को किडनी देकर साबित कर दिया। सोमवार को शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय एवं अस्पताल (मेडिकल) स्थित सुपर स्पेशलिटीज अस्पताल में किया गया। सुपर स्पेशलिटीज में करीब डेढ़ माह में यह दूसरा सफल किडनी प्रत्यारोपण है।
इससे भी बड़ी बात यह है कि पूरे महाराष्ट्र के शासकीय अस्पतालों में सिर्फ नागपुर में ही किडनी प्रत्यारोपण होता है।
-जानकारी के अनुसार, नांदेड़ जिले के वाहीबाजार निवासी सुधाकर खराटे (38) पिछले कुछ सालों से बीमार चल रहे थे, जांच में सामने आया कि किडनी में खराबी है।
-एक साल पहले बीमारी बढ़ जाने के कारण पूरे शरीर पर सूजन आने लगी थी।
-गत एक वर्ष से डायलिसिस करवाने को मजबूर था। लेकिन जब पता चला कि सुपर स्पेशलिटीज में किडनी प्रत्यारोपण हो सकता है तो मरीज की बहन सुभाबाई सौनटकले (50) ने भाई को किडनी देने का फैसला किया अौर सोमवार को वह सफलतापूर्वक हो गया। साथ ही मरीज को स्पेशल वार्ड में शिफ्ट भी कर दिया गया है।
इस प्रत्यारोपण में डॉ.धन्नजय सेलुकर, डॉ.संजय कोलते, डॉ.चारूलता बावनकुले, डॉ.नीलिमा पाटिल, डॉ.राजश्री माने, डॉ.समीर चौबे एवं डॉ.मनीष बलवानी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
हर घंटे एक लीटर यूरिन
प्रत्यारोपण के बाद हर घंटे मरीज की किडनी से एक लीटर यूरिन निकलता है, एेसे में चिकित्सकों को मरीज की हर छोटी-छोटी बात का ध्यान रखना पड़ता है। साथ ही मरीज के स्वास्थ्य की समय-समय पर जांच करनी पड़ती है कि उसकी स्थित क्या बनी हुई है।
चार घंटे चला प्रत्यारोपण
मरीज और किडनीदाता दोनों को ही प्रात: 8 बजे बुला लिया गया था, इसके बाद करीब 9:30 बजे से किडनी प्रत्यारोपण की प्रक्रिया चालू हुई जो दोपहर करीब 1:30 बजे तक चली। मरीज एवं किडनी दाता फिलहाल दोनों ही स्वस्थ्य हैं।
वरिष्ठ चिकित्सक व स्टॉफ की जिम्मेदारी बढ़ी
सुपर स्पेशलिटीज अस्पताल में निवासी चिकित्सक न होने की वजह से वरिष्ठ चिकित्सक एवं अन्य स्टॉफ की जिम्मेदारी बढ़ गई है। किडनी प्रत्यारोपण होने पर मरीज को 24 घंटे चिकित्सकों की निगरानी में रखा जाता है। लेकिन निवासी चिकित्सक न होने की वजह से वह जिम्मेदारी वरिष्ठ चिकित्सकों निभानी पड़ रही है। यह वजह है कि अस्पताल के अन्य स्टॉफ की जिम्मेदारी भी बढ़ गई है।