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महाराष्ट्र के नियमों के अनुसार टाडा दोषियों को नहीं मिलेगी पैरोल, उच्च न्यायालय ने दिया आदेश

बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम यानी टाडा के तहत दोषी ठहराए गए एक कैदी को पैरोल देने से इनकार कर दिया है।कोर्ट ने कहा कि आतंकवादी अपराधों के दोषी महाराष्ट्र में नियमों के अनुसार पैरोल के लिए पात्र नहीं हैं।

By AgencyEdited By: Nidhi AvinashPublished: Mon, 30 Jan 2023 02:26 PM (IST)Updated: Mon, 30 Jan 2023 02:26 PM (IST)
महाराष्ट्र के नियमों के अनुसार टाडा दोषियों को नहीं मिलेगी पैरोल, उच्च न्यायालय ने दिया आदेश
महाराष्ट्र के नियमों के अनुसार टाडा दोषियों को नहीं मिलेगी पैरोल, उच्च न्यायालय ने दिया आदेश

नागपुर, एजेंसी। बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम यानी टाडा (Terrorist and Disruptive Activities Prevention Act) के तहत दोषी ठहराए गए एक कैदी को पैरोल देने से इनकार कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि 'आतंकवादी अपराधों' के दोषी महाराष्ट्र में नियमों के अनुसार पैरोल के लिए पात्र नहीं हैं।

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2 दिसंबर 2022 को जस्टिस एसबी शुकरे और जस्टिस एमडब्ल्यू चंदवानी की खंडपीठ ने हसन मेहंदी शेख की याचिका को खारिज कर दिया था। उसने अपनी बीमार पत्नी को देखने के लिए नियमित पैरोल की मांग की थी। वह अमरावती केंद्रीय कारागार में आजीवन कारावास की सजा काट रहा है।

टाडा के मामले में पैरोल नहीं देने का है प्रावधान

शेख को (टाडा) के कड़े प्रावधानों सहित विभिन्न अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया था। जेल अधिकारियों ने उसके आवेदन को इस आधार पर खारिज कर दिया था कि वह जेल (बॉम्बे फर्लो और पैरोल) नियमों के प्रावधानों के तहत पैरोल पाने के योग्य नहीं है।

इसके बाद उन्होंने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि नियमों में एक विशिष्ट प्रावधान है। यह टाडा के तहत दोषी व्यक्ति को नियमित पैरोल का लाभ पाने के लिए अयोग्य ठहराता है।

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आतंकी मामलों में नहीं मिलेगी पैरोल

अदालत ने कहा, 'यह स्पष्ट है कि आतंकवादी अपराधों के लिए दोषी ठहराए गए कैदियों पर नियमित पैरोल पर रिहा होने से एक रोक है। टाडा आतंकवादी अपराध के बारे में है।' हाई कोर्ट ने कहा, 'याचिकाकर्ता को टाडा के तहत दोषी ठहराया गया है और इसलिए वह नियमित पैरोल के लिए पात्र नहीं होगा।'

शेख ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का दिया था हवाला

शेख ने अपनी याचिका में सुप्रीम कोर्ट के 2017 के एक फैसले का हवाला दिया। इसमें कहा गया था कि अगर एक दोषी को टाडा प्रावधानों के तहत दोषी पाया जाता है, तो भी वह नियमित पैरोल मांगने से अयोग्य नहीं होगा।

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सुप्रीम कोर्ट वाला मामला महाराष्ट्र में लागू नहीं होता

उच्च न्यायालय ने इसे स्वीकार करने से इनकार करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट वाले मामले में कैदी राजस्थान से था और इसलिए महाराष्ट्र में कैदियों के लिए वह नियम लागू नहीं होता है। हाई कोर्ट ने कहा, 'शीर्ष अदालत ने इस तथ्य को स्वीकार किया है कि कई राज्य सरकारों ने निर्णय लेने में निष्पक्षता लाने के लिए पैरोल के दिशानिर्देश तैयार किए हैं कि किसी विशेष मामले में पैरोल देने की जरूरत है या नहीं।'

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