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त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर को विश्व धरोहर घोषित करने की तैयारी

महाराष्ट्र में नासिक जनपद के त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर को सांस्कृतिक विश्व धरोहर घोषित किया जा सकता है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने इस दिशा में प्रयास शुरू कर दिए हैं।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Sun, 08 Jan 2017 05:11 AM (IST)Updated: Sun, 08 Jan 2017 05:24 AM (IST)
त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर को विश्व धरोहर घोषित करने की तैयारी

ओमप्रकाश तिवारी, मुंबई। महाराष्ट्र में नासिक जनपद के त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर को सांस्कृतिक विश्व धरोहर घोषित किया जा सकता है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआइ) ने इस दिशा में प्रयास शुरू कर दिए हैं।
शुक्रवार को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के निदेशक (विश्व धरोहर) के. लुर्दुसामि ने एएसआइ के औरंगाबाद (महाराष्ट्र) मंडल को पत्र लिखकर त्र्यंबकेश्वर को यूनेस्को की विश्वदाय की अस्थायी सूची में शामिल करने के लिए आवश्यक कार्यवाही शुरू करने का निर्देश दिया है। पत्र में औरंगाबाद मंडल के अधीक्षण पुरातत्वविद से चित्र एवं साइट प्लान सहित विस्तृत योजना भेजने को कहा गया है।
त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग की न्यासी ललिता शिंदे द्वारा प्रधानमंत्री को लिखे गए पत्र के बाद एएसआइ ने यह प्रयास शुरू किया है। शिंदे ने 10 अक्टूबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर त्र्यंबकेश्वर को विश्व की सांस्कृतिक धरोहर सूची में शामिल करने की मांग की थी।
पत्र के साथ शिंदे ने त्र्यंबकेश्वर के ऐतिहासिक-धार्मिक महत्व को रेखांकित करने वाला 23 पृष्ठों का दस्तावेज भी भेजा था। दस्तावेज में त्र्यंबकेश्वर के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक होने के साथ ही कुंभ आयोजन के चार स्थलों में से एक होने का भी जिक्र किया गया है। 12 वर्षों के अंतराल पर यहां सिंहस्थ कुंभ का आयोजन होता है। इसी इसी कस्बे में स्थित कुशावर्त कुंड में शैव संन्यासियों के 10 अखाड़े शाही स्नान करते हैं। त्र्यंबकेश्वर स्थित ब्रह्मगिरि पर्वत ही दक्षिण भारत की नदी गोदावरी का उद्गम स्थल है।

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पेशवा बालाजी ने कराया था मंदिर का निर्माण

शिंदे के दस्तावेज के अनुसार त्र्यंबकेश्वर के शिव मंदिर का निर्माण 1740 से 1761 के बीच पेशवा बालाजी बाजीराव उर्फ भाऊ साहब ने कराया था। इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होलकर ने 1779 में इसकी मरम्मत कराई थी।

मंदिर में किसी खंभे का इस्तेमाल नहीं किया गया है

वास्तु की श्रेणियों में भूमिजा श्रेणी का यह प्राचीन मंदिर नीचे से ऊपर की ओर पत्थरों को जोड़कर बनाया गया है, और इसमें किसी खंभे का इस्तेमाल नहीं किया गया है। फिलहाल यह मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित है।


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