मराठा आरक्षण को 'मुसीबत' नहीं बनने देगी फड़नवीस सरकार
मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने शिक्षा मंत्री विनोद तावड़े के सरकारी आवास पर मराठा समाज के प्रतिनिधियों के साथ बातचीत की।
मुंबई, ओमप्रकाश तिवारी। मराठा आंदोलन के बहाने विपक्ष के साथ-साथ सरकार में भाजपा की सहयोगी शिवसेना भी मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस पर दबाव बनाने की कोशिश कर रही है। लेकिन सरकार इस मुद्दे का हल खोजने के लिए कमर कस चुकी है, ताकि आने वाले लोकसभा व विधानसभा चुनाव में कम से कम इस मुद्दे पर तो उसे न घेरा जा सके।
इस सप्ताह के प्रारंभ में एक मराठा युवक की आत्महत्या के बाद महाराष्ट्र बंद का आह्वान कर सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश जा चुकी है। यह आह्वान करने वाले मराठा क्रांति मोर्चा ने नौ अगस्त तक सरकार से मराठा समुदाय को आरक्षण देने का वायदा पूरा की मांग की है। अन्यथा उसके बाद मराठा आंदोलनकारियों द्वारा सपरिवार सड़क पर उतरने की चेतावनी दी गई है। सरकार यह नौबत नहीं आने देना चाहती। इसके लिए उसने न सिर्फ मराठा समाज के विभिन्न घटकों से बातचीत शुरू कर दी है। बल्कि पिछड़ा वर्ग आयोग की वह रिपोर्ट भी जल्द से जल्द पेश करवाने की कोशिश की जा रही है, जो मराठों को आरक्षण देने के पक्ष में सर्वोच्च न्यायालय में पेश की जानी है।
फड़नवीस ने गुरुवार देर रात तक शिक्षा मंत्री विनोद तावड़े के सरकारी आवास पर मराठा समाज के प्रतिनिधियों के साथ बातचीत की। इस बातचीत में भाजपा के वरिष्ठ मराठा मंत्री चंद्रकांत पाटिल व मराठा प्रदेश अध्यक्ष रावसाहब दानवे पाटिल सहित कई मराठा नेता शामिल थे। लेकिन शिवसेना के मराठा नेताओं को इस बैठक से बाहर रखा गया। फड़नवीस ने चंद्रकांत पाटिल को पिछड़ा वर्ग आयोग से बातचीत करने की जिम्मेदारी सौंपी है। आयोग अपनी रिपोर्ट सितंबर तक देना चाहता है। लेकिन सरकार चाहती है कि वह कम से कम समय में यह रिपोर्ट सौंप दे। सरकार इसके लिए आयोग को मुंहमांगे संसाधन एवं स्टाफ मुहैया कराने को तैयार है। सरकार से जुड़े सूत्रों के अनुसार पाटिल ने इस मुहिम पर शुक्रवार से काम शुरू भी कर दिया है।
पाटिल का कहना है कि मराठा आरक्षण हमारा राजकीय एजेंडा नहीं है। इसके प्रति हमारी निष्ठा है, और हम इसे लागू कराने के लिए प्रतिबद्ध हैं। सत्ता में न रहते हुए हम इसे लागू कराने की मांग करते रहे, और अब सत्ता में हैं तो वायदा करते हैं कि आरक्षण देंगे। पाटिल के अनुसार, मराठा आरक्षण के समर्थन में कोर्ट में टिकने योग्य तथ्य पेश करने के लिए ही हमने पिछड़ा वर्ग आयोग की स्थापना की है। यह रिपोर्ट आते ही सर्वोच्च न्यायालय में पेश की जाएगी।
गौरतलब है कि महाराष्ट्र में 30 फीसद से अधिक आबादी मराठा समुदाय की है। 288 सदस्यों की विधानसभा में भी 114 सदस्य मराठा समुदाय से हैं। मराठा समुदाय असंतुष्ठ रहा तो लोकसभा और विधानसभा चुनावों में भाजपा के समीकरण बिगड़ सकते हैं। इसलिए सरकार इस मसले को भविष्य की मुसीबत नहीं बनने देना चाहती।
दबाव बनाने के लिए विधायकों के इस्तीफे
मराठा समुदाय सरकार पर दबाव बनाने के लिए अपने सांसदों एवं विधायकों से इस्तीफा देने की अपील कर रहा है। उसकी अपील पर अब तक किसी सांसद ने तो त्यागपत्र नहीं दिया है। लेकिन सात विधायक इस्तीफे की ‘घोषणा’ कर चुके हैं। इनमें दो विधायक भाजपा के, तीन राकांपा के, और एक-एक कांग्रेस व शिवसेना के हैं। लेकिन उनकी घोषणाएं वास्तविकता में बदलेंगी, इसमें संदेह है।
विधानसभा अध्यक्ष हरिभाऊ बागड़े के अनुसार, अब विधानसभा का अगला सत्र शुरू होने से पहले किसी का इस्तीफा स्वीकार नहीं हो सकता। क्योंकि विधायकों को अपना त्यागपत्र विधानसभा में पढ़ना होगा। उसके बाद इस्तीफा स्वीकार होने की स्थिति में ही उसे चुनाव आयोग के पास भेजा जाएगा। बता दें कि इस्तीफा देनेवाली भाजपा की एक विधायक सीमा हिरे ने तो अपना इस्तीफा मराठा मोर्चा के नेताओं को ही दे दिया है। इस्तीफा देनेवाले राकांपा के एक विधायक रमेश कदम तो भ्रष्टाचार के आरोप में फिलहाल जेल में हैं।