मुंबई महानगरपालिकाः शिवसेना-भाजपा की जंग में छोटे दलों की जहमत
मनपा के नियमानुसार किसी भी दल के दो तिहाई सभासद अपना गुट बनाकर किसी अन्य दल में जा सकते हैं।
ओमप्रकाश तिवारी, मुंबई। एशिया की सबसे धनी मुंबई महानगरपालिका इन दिनों जंग का मैदान बन गई है। मनपा में दो बड़े दल शिवसेना एवं भाजपा अपनी शक्ति बढ़ाने में लगे हैं, तो छोटे दलों के लिए अपने सभासदों को संभालना मुश्किल हो रहा है।
दो दिन पहले ही राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के सात में से छह सभासद टूट कर शिवसेना में चले गए। इससे मनपा सदन में शिवसेना जहां मजबूत हुई है, वहीं मनसे और भाजपा से उसका टकराव भी बढ़ गया है। भाजपा और मनसे ने इन सभासदों के शिवसेना में जाने को चुनौती दी है। लेकिन यह चुनौती बेअसर ही रहने की उम्मीद है, क्योंकि मनपा के नियमानुसार किसी भी दल के दो तिहाई सभासद अपना गुट बनाकर किसी अन्य दल में जा सकते हैं। शिवसेना ने मनसे के सभासदों को तोड़ने का यह कदम गुरुवार को भांडुप उपचुनाव के नतीजे आने के बाद उठाया। भाजपा यह चुनाव जीतकर मनपा सदन में शिवसेना के और करीब आ गई थी।
मुंबई महानगरपालिका पर 20 साल से शिवसेना का कब्जा है। अब तक मनपा की सत्ता में भाजपा उसके आसपास भी नहीं फटक पाती थी। लेकिन इसी वर्ष फरवरी में हुए मनपा चुनाव में भाजपा ने शिवसेना को कड़ी टक्कर दी। शिवसेना को 84 सीटें मिलीं तो भाजपा भी 82 सीटों के साथ ज्यादा पीछे नहीं रही। मुंबई मनपा में बहुमत का आंकड़ा 114 सीटों का है। भाजपा द्वारा महापौर की दावेवारी से पीछे हट जाने के कारण शिवसेना ने चार निर्दलीय सभासदों को साथ लेकर सत्ता हासिल कर ली। लेकिन भांडुप उपचुनाव में भाजपा की जीत के बाद शिवसेना को अपनी सत्ता पर खतरा मंडराता दिख रहा है। उसे लग रहा है कि भाजपा कांग्रेस-राकांपा सहित कुछ छोटे दलों के सभासदों को अपनी ओर खींचकर मनपा की सत्ता उससे छीन सकती है।
मनपा में इस समय कांग्रेस के 30 एवं राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नौ सभासद हैं। पांच निर्दलियों में से चार शिवसेना के साथ हैं, एक भाजपा के साथ। कांग्रेस के पूर्व विधायक राजहंस सिंह अब कांग्रेस छोड़ भाजपा में आ चुके हैं। वह लंबे समय तक मनपा में कांग्रेस की तरफ से विरोधी दल के नेता रहे हैं। उनके संपर्क में कांग्रेस के कई सभासद हैं। नारायण राणे के समर्थक भी कई कांग्रेसी सभासद हैं। शिवसेना को आशंका है कि भाजपा राजहंस और नारायण राणे की मदद से या तो कांग्रेस के दो तिहाई सभासदों को तोड़कर या कांग्रेस सभासदों से बड़े पैमाने पर इस्तीफा दिलवाकर उपचुनाव में उन्हें अपने टिकट पर चुनवाकर अपनी संख्या बढ़ा सकती है।
मुंबई मनपा में एक बार चुने गए महापौर के उसका ढाई साल का कार्यकाल पूरा हुए बिना हटाया नहीं जा सकता। लेकिन संख्या बल पर्याप्त हो तो मनपा के कामकाज में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानेवाली स्थायी समितियों पर कब्जा किया जा सकता है। फिलहाल ये समितियां शिवसेना के कब्जे में हैं। भाजपा सदन में अपनी संख्या बढ़ाकर इन पर कब्जा करना चाहती है। मनपा सदन के दो बड़े दलों शिवसेना और भाजपा की इस रस्साकसी में छोटे दलों को अपने सभासद संभालना मुश्किल हो रहा है।