सिद्दरमैया को रास नहीं आ रहा था कुमारस्वामी का सीएम बनना
सिद्दरामैया को यह आभास हो गया था कि कर्नाटक में उनकी पूर्ण बहुमत की सरकार नहीं बनेगी और उन्हें जनतादल(एस) के साथ गठबंधन करना पड़ेगा।
मुंबई, ओमप्रकाश तिवारी। कांग्रेस भले ही कर्नाटक में अपनी एवं जद(एस) की सरकार न बन पाने का ठीकरा राज्यपाल पर फोड़ रही हो, लेकिन जानकारों का मानना है कि निवर्तमान मुख्यमंत्री एस.सिद्दरामैया को भी जद(एस) नेता कुमारस्वामी का मुख्यमंत्री बनना रास नहीं आ रहा था।
एस. सिद्दरामैया को जनतादल(एस) के प्रदेश अध्यक्ष एच.डी.कुमारस्वामी फूटी आंखों नहीं सुहाते। सिद्दरामैया ने पिछले चुनाव में सारी मेहनत एवं रणनीति दुबारा खुद मुख्यमंत्री बनने के लिए की थी। टिकटों का बंटवारा भी सिद्दरामैया द्वारा ही किया गया था। लेकिन 12 मई को मतदान होने एवं कई चैनलों के एक्जिट पोल में कांग्रेस की हालत पतली बताए जाने के बाद दबाव में सिद्दरामैया को किसी दलित मुख्यमंत्री के लिए पद छोड़ने का बयान देना पड़ा था। सिद्दरामैया को यह आभास हो गया था कि कर्नाटक में उनकी पूर्ण बहुमत की सरकार नहीं बनेगी और उन्हें जनतादल(एस) के साथ गठबंधन करना पड़ेगा।
देवेगौड़ा परिवार के साथ सिद्दरामैया की अनबन इतनी परवान चढ़ चुकी है कि वह जद(एस) के साथ साझे की सरकार बनाने का समझौता तो करना चाहते थे, लेकिन किसी कीमत पर कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री बनते देखना उन्हें मंजूर नहीं था। दलित मुख्यमंत्री का कार्ड उन्होंने यही सोचकर उछाला था कि जरूरत पड़ने पर उनका हाईकमान जद(एस) के साथ समझौते में यह शर्त रखेगा। लेकिन भारतीय जनता पार्टी को 104 सीटें मिलने के बाद उसे जद(एस) के साथ मिलकर सत्ता में आने से रोकने के लिए कांग्रेस हाईकमान ने सीधे कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री बनाने का प्रस्ताव भेज दिया। पत्रकारों के सामने स्वयं सिद्दरामैया को मन मारकर स्वयं यह घोषणा करनी पड़ी। लेकिन सिद्दरामैया गुट के चुने गए विधायकों को यह निर्णय बिल्कुल पसंद नहीं आ रहा था।
इसके अतिरिक्त लिंगायत समुदाय के कांग्रेसी विधायक भी जद(एस) के साथ किए जा रहे समझौते से नाखुश हैं। क्योंकि इनमें से अधिसंख्य ने सिद्दरामैया सरकार द्वारा लिंगायत समुदाय को अल्पसंख्यक दर्जा दिए जाने का विरोध किया था। सिद्दरामैया का यह कदम स्वयं उनके लिए आत्मघाती सिद्ध हो चुका है। कांग्रेस और जद(एस) में मुख्य टकराव ओल्ड मैसूर क्षेत्र में रहा है। यहां एक-दूसरे के विरुद्ध जमीनी लड़ाई लड़कर विधानसभा में पहुंचे इन विधायकों को कांग्रेस एवं जद(एस) के शीर्ष नेतृत्व को गलबहियां करते देखना बिल्कुल रास नहीं आ रहा है।