Mumbai: आईआईटी बॉम्बे की प्लेसमेंट में भारी गिरावट, 36 प्रतिशत छात्रों को अबतक नहीं मिले नौकरी के ऑफर
इस वर्ष आईआईटी मुंबई में प्लेसमेंट दर अभी तक सिर्फ 64 प्रतिशत रही है। अर्थात 36 प्रतिशत छात्रों को नौकरियां नहीं मिली हैं। पिछले वर्ष भी 32.8 प्रतिशत छात्र बिना नौकरी के रह गए थे। कैंपस प्लेसमेंट दर में आ रही इस कमी के वैश्विक मंदी के अलावा भी कई कारण माने जा रहे हैं। आईआईटी मुंबई में हर साल दिसंबर से फरवरी के बीच प्लेसमेंट्स होते हैं।
ओमप्रकाश तिवारी, मुंबई। इस वर्ष आईआईटी मुंबई में प्लेसमेंट दर अभी तक सिर्फ 64 प्रतिशत रही है। अर्थात 36 प्रतिशत छात्रों को नौकरियां नहीं मिली हैं। पिछले वर्ष भी 32.8 प्रतिशत छात्र बिना नौकरी के रह गए थे। कैंपस प्लेसमेंट दर में आ रही इस कमी के वैश्विक मंदी के अलावा भी कई कारण माने जा रहे हैं।
आईआईटी मुंबई में हर साल दिसंबर से फरवरी के बीच प्लेसमेंट्स होते हैं। इनमें आईआईटी से शिक्षा पूरी कर चुके 2000 से ज्यादा छात्र भाग लेते हैं। पहली बार हुआ है कि यहां के कंप्यूटर इंजीनियरिंग विभाग के भी सभी छात्रों का प्लेसमेंट नहीं हो पाया। अब तक इस क्षेत्र में आईआईटी मुंबई का रिकॉर्ड 100 प्रतिशत रहा है।
आईआईटी मुंबई में प्लेसमेंट सेल के अधिकारी का कहना है कि कई कंपनियां आईआईटी मुंबई द्वारा निर्धारित वेतन पैकेज देने को तैयार नहीं थीं। जिसके कारण प्लेसमेंट की दर कम रही। इसके अलावा इस बार कैंपस में आईं ज्यादातर कंपनियां भारत की ही थीं। जबकि पहले कई अंतरराष्ट्रीय कंपनियां भी यहां से योग्य छात्रों को चुनकर ले जाती थीं।
विदेशी कंपनियों का न आना वैश्विक मंदी का परिणाम माना जा रहा है। लेकिन प्लेसमेंट दर कम होने के कई कारण हैं। आईआईटी मुंबई के एल्युमनी डॉ. अशोक तिवारी कहते हैं कि हर साल चलनेवाले कैंपस प्लेसमेंट के दौरान सिविल, इलेक्ट्रिकल, मैकेनिकल एवं केमिकल जैसे कोर इंजीनियरिंग ग्रुप्स के छात्र भी कंप्यूटर एवं सा सॉफ्टवेयर से संबंधित बड़ी कंपनियों के सामने प्लेसमेंट के लिए जाते हैं। क्योंकि वे पढ़ाई भले ही इन कोर ग्रुप्स में करते हैं, लेकिन इन क्षेत्रों में वे नौकरियां करना पसंद नहीं करते। क्योंकि कोर ग्रुप्स की ज्यादातर नौकरियों में जमीन पर उतर कर रणनीतियां बनानी होती हैं, या काम करना होता है। जबकि कंप्यूटर और सॉफ्टवेयर से संबंधित नौकरियां अपेक्षाकृत आराम की होती हैं। इसलिए भी कंप्यूटर इंजीनियरिंग से संबंधित कंपनियों में भीड़ बढ़ जाती है।
तिवारी कहते हैं कि प्लेसमेंट कम होने का एक कारण छात्रों में उच्च वेतन को लेकर आपसी प्रतिद्वंद्विता है। यदि किसी छात्र को किसी कंपनी ने बहुत ऊंचा पैकेज दे दिया तो उसके साथ पढ़नेवाले उसके साथी उससे कम के पैकेज पर जाना पसंद नहीं करते। जिसके कारण उन्हें खाली रह जाना पड़ता है। डॉ. तिवारी कहते हैं कि करीब दो दशक पहले तक देश में सिर्फ पांच प्रमुख आईआईटी थीं। तब कंपनियां इन्हीं में जाकर कैंपस प्लेसमेंट करती थीं। ज्यादातर छात्रों का चयन हो जाता था। लेकिन महाराष्ट्र के ही विभिन्न कॉलेजों में इंजीनियरिंग सीटें 75000 से अधिक हैं। इसलिए प्लेसमेंट करनेवाली कंपनियां आईआईटी मुंबई के उच्च वेतन से कन्नी काटकर दूसरे अच्छे इंजीनियरिंग कॉलेजों में जाकर अपनी जरूरतें पूरी कर लेती हैं।