अब मूल कांग्रेसी और गैर कांग्रेसी गुटों में बंटेगी मुंबई कांग्रेस
गुरुदास कामत के आकस्मिक निधन से 36 विधानसभा एवं मुंबई कांग्रेस के समीकरण तेजी से बदलेंगे।
मुंबई, ओमप्रकाश तिवारी। मुंबई कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष एवं अखिल भारतीय कांग्रेस में महासचिव की जिम्मेदारी निभा चुके गुरुदास कामत के आकस्मिक निधन से 36 विधानसभा एवं छह लोकसभा सीटों वाली मुंबई कांग्रेस के समीकरण भी तेजी से बदलेंगे। माना जा रहा है कि मुंबई कांग्रेस अब 'मूल कांग्रेसी' एवं 'बाहर से कांग्रेस में आए कांग्रेसी' गुटों में बंटी नजर आएगी।
62 वर्षीय गुरुदास कामत न सिर्फ मुंबई, बल्कि महाराष्ट्र के बड़े कांग्रेसी नेताओं में स्थान रखते थे। विलासराव देशमुख के बाद अब उनका न रहना महाराष्ट्र कांग्रेस की एक बड़ी क्षति मानी जा रही है। युवक कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे गुरुदास कामत लगभग 30 वर्ष मुंबई कांग्रेस की एक धुरी बने रहे। करीब 22 साल मुंबई कांग्रेस के शक्तिशाली अध्यक्ष रहे मुरली देवड़ा को कांग्रेस के अंदर चुनौती देने वाले एकमात्र नेता कामत ही रहे। यहां तक कि मुरली देवड़ा मुंबई कांग्रेस के अध्यक्ष रहते हुए भी कामत के क्षेत्र में हस्तक्षेप कम ही करते थे। ताकि सामंजस्य बना रहे। इस प्रकार कुछ वर्ष पहले तक मुंबई कांग्रेस में दो गुट स्पष्ट थे। पहला, देवड़ा गुट और दूसरा, कामत गुट। यही कारण था कि मुरली देवड़ा के अध्यक्ष पद से हटने के बाद मुंबई कांग्रेस की कमान कामत को ही मिली।
राजनीतिक परिस्थितियों वश कामत के त्यागपत्र देने के बाद कांग्रेस आलाकमान ने पहली बार यह पद एक हिंदीभाषी नेता कृपाशंकर सिंह को सौंपा। संभवत: इसके पीछे एक कारण मुंबई में उत्तरभारतीय मतदाताओं की बड़ी संख्या का होना रहा होगा। मुंबई की सवा करोड़ आबादी में उत्तरप्रदेश मूल के लोगों की संख्या 35 से 40 फीसद के बीच मानी जाती है। सिंह के आने के बाद पहली बार मुंबई कांग्रेस में तीसरे गुट का उद्भव हुआ। हालांकि सिंह ने मुंबई कांग्रेस में गुटबाजी कम करने की गरज से अपनी कार्यकारिणी में ज्यादातर कामत और मुरली गुट के ही लोगों को बनाए रखा। कांग्रेस को इसका लाभ भी मिला। 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मुंबई की सभी छह और विधानसभा में 36 में से 20 सीटें हासिल हुईं। इनमें आधा दर्जन से ज्यादा हिंदीभाषी विधायक चुनकर आए।
कृपाशंकर ने 2012 में मुंबई महानगरपालिका चुनाव में कांग्रेस की पराजय के बाद स्वयं इस्तीफा दे दिया। उन्हीं दिनों वह तमाम तरह के आरोपों में भी घिरे रहे। इसके बावजूद आलाकमान ने उनका इस्तीफा करीब आठ माह बाद स्वीकार किया।
उनके बाद एक दलित मराठी प्रोफेसर जनार्दन चांदुरकर को अध्यक्ष बनाया गया। उनका कार्यकाल खत्म होने के बाद शिवसेना से कांग्रेस में आए संजय निरुपम अध्यक्ष पद संभाल रहे हैं। उनपर आलाकमान का भरोसा जरूर है, लेकिन स्थानीय स्तर पर कामत, कृपाशंकर और मुरली देवड़ा के साथ रहे मूल कांग्रेसियों को वह अपने साथ नहीं जोड़ पा रहे हैं। माना जा रहा है कि कामत के अचानक अवसान के बाद मुंबई कांग्रेस में अब 'मूल कांग्रेसी' और 'गैर कांग्रेसी' का टकराव फिर बढ़ेगा। क्योंकि उक्त तीनों गुटों के मूल कांग्रेसी कार्यकर्ता अब अन्य दलों से कांग्रेस में आए नेतृत्व के साथ सामंजस्य बैठा सकेंगे, इसमें संदेह है।