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महाराष्ट्र के पत्रकार सुरक्षा कानून पर केंद्र के सवाल

महाराष्ट्र सरकार द्वारा पत्रकारों की सुरक्षा के लिए बनाए गए कानून को केंद्र सरकार ने कुछ सवालों के साथ वापस लौटा दिया है

By BabitaEdited By: Published: Fri, 22 Jun 2018 12:06 PM (IST)Updated: Fri, 22 Jun 2018 12:07 PM (IST)
महाराष्ट्र के पत्रकार सुरक्षा कानून पर केंद्र के सवाल
महाराष्ट्र के पत्रकार सुरक्षा कानून पर केंद्र के सवाल

मुंबई, राज्य ब्यूरो। पत्रकारों की सुरक्षा के लिए महाराष्ट्र सरकार द्वारा बनाए गए कानून को केंद्र सरकार ने कुछ सवालों के साथ वापस लौटा दिया है। यह कानून पिछले वर्ष तैयार कर राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा गया था। 

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महाराष्ट्र मीडिया पर्सन्स एंड मीडिया इंस्टीट्यूशन्स (प्रिवेंशन ऑफ वायोलेंस एंड डैमेज ऑर लॉस टु प्रॉपर्टी) एक्ट 2017 पिछले वर्ष राज्य सरकार द्वारा तैयार किया गया था। राज्य मंत्रिमंडल की मंजूरी एवं राज्यपाल के दस्तखत के बाद इसे राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा गया था। जहां से करीब 15 दिन पहले इसे राज्य सरकार को लौटा दिया गया है। यह कानून बनवाने के लिए मुंबई प्रेसक्लब सहित राज्य के कई पत्रकार संगठन करीब एक दशक से प्रयासरत थे। 2011 में जागरण समूह के अंग्रेजी दैनिक मिड डे के वरिष्ठ पत्रकार ज्योतिर्मय डे की दिनदहाड़े हत्या के बाद पत्रकार संगठनों द्वारा राज्य सरकार पर दबाव बढ़ गया था। लेकिन यह कानून फड़नवीस सरकार में ही बन सका। 

राष्ट्रपति की मंजूरी के बगैर यह कानून राज्य सरकार को वापस होने पर जानकारी देते हुए सूचना एवं जनसंपर्क सचिव बृजेश सिंह का कहना है कि कानून वापस नहीं हुआ है, बल्कि इससे संबंधित कुछ सवाल पूछे गए हैं। जिसका उचित समाधान राज्य सरकार द्वारा किया जा रहा है। सिंह के अनुसार किसी भी कानून के संबंध में केंद्र सरकार द्वारा इस प्रकार सवाल पूछा जाना एक सामान्य प्रक्रिया है। राज्य सरकार केंद्र के सवालों के उचित समाधान तैयार कर जल्द ही पुनः मंजूरी के लिए राष्ट्रपति के पास भेज देगी। इस कानून में पत्रकारों या मीडिया संस्थानों पर किसी भी प्रकार के हमले को संज्ञेय अपराध की श्रेणी में रखा गया है। 

इस कानून के तहत आरोपी की गिरफ्तारी गैरजमानती भी होगी और पुलिस उपाधीक्षक स्तर से नीचे का अधिकारी इस मामले की जांच नहीं कर सकेगा। अपराध सिद्ध होने की स्थिति में दोषी को तीन साल तक की कैद एवं /  अथवा 50,000 रुपए का जुर्माना भी हो सकता है। यही नहीं, दोषी सिद्ध व्यक्ति को पीड़ित को हर्जाना देना पड़ सकता है। यह हर्जाना तोड़फोड़ में हुए नुकसान की भरपाई से लेकर पीड़ित के इलाज के खर्च तक हो सकता है। इस कानून में मीडिया संस्थानों एवं मीडियाकर्मियों को भी परिभाषित किया गया है। 


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