Maharashtra Political Crisis: विद्रोहियों के पास सबसे आसान रास्ता विलय, अलग गुट की मान्यता के लिए पार्टी संगठन में भी दोफाड़ जरूरी
Maharashtra Political Crisis शिवसेना के विद्रोही विधायकों की संख्या तो लगातार बढ़ती जा रही है लेकिन उनकी मुंबई वापसी का रास्ता अभी नजर नहीं आ रहा है। दो तिहाई से अधिक संख्या होने के बावजूद विधानसभा में अलग गुट की मान्यता मिलना इनके लिए आसान नहीं है।
मुंबई, ओमप्रकाश तिवारी। महाराष्ट्र में शिवसेना के विद्रोही विधायकों की संख्या तो लगातार बढ़ती जा रही है, लेकिन उनकी मुंबई वापसी का रास्ता अभी नजर नहीं आ रहा है। दो तिहाई से अधिक संख्या होने के बावजूद विधानसभा में अलग गुट की मान्यता मिलना इनके लिए आसान नहीं है। यदि विद्रोही गुट राष्ट्रपति चुनाव से पहले इस मसले का हल चाहता है तो उसके पास सबसे आसान रास्ता है खुद का किसी दल में विलय। यह माना जा रहा था कि किसी पार्टी की दो तिहाई विधायक संख्या यदि एक तरफ हो जाए तो उसे पृथक गुट की मान्यता मिल सकती है, अथवा वह स्वयं को ही मूल पार्टी घोषित कर सकता है। शिवसेना विद्रोहियों की यह मंसा कतई पूरी नहीं होने देगी। दूसरी ओर वैधानिकता की दृष्टि से भी यह कतई आसान नहीं है।
अलग गुट के लिए सिर्फ दो तिहाई विधायक ही पर्याप्त नहीं
राजनीतिक विश्लेषक रविकिरण देशमुख दलबदल कानून की अनुसूची 10 का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि नए गुट की मान्यता पाने के लिए सिर्फ दो तिहाई विधायकों का साथ होना ही पर्याप्त नहीं है। इसके लिए पूरी पार्टी का दोफाड़ होना जरूरी है यानी पार्टी संगठन के भी दो तिहाई लोगों का विद्रोही दल के नेता एकनाथ शिंदे के साथ होना जरूरी है। इसके बाद ही इस गुट को मान्यता पाने के लिए चुनाव आयोग के पास जाना होगा। वहां से मान्यता मिलने के बाद ही यह नया गुट विधानसभा अध्यक्ष (फिलहाल उपाध्यक्ष नरहरि झिरवल) के सामने अपने को विधानसभा में अलग मान्यता देने की अपील कर सकता है। अगर ऐसा होता भी है तो यह सारी प्रक्रिया जल्दी ही होने जा रहे राष्ट्रपति चुनाव से पहले तो कतई संपन्न नहीं हो सकती।
जानें, दूसरे दल में विलय पर क्या होगा
विद्रोही गुट के पास दूसरा आसान रास्ता है स्वयं का किसी अन्य दल में विलय कर लेना। ऐसी स्थिति में उनकी विधानसभा सदस्यता रद होने से बच सकती है। बागी विधायक यह रास्ता अपनाना चाहें तो उनके पास दो विकल्प हैं। पहला कथित तौर पर उन्हें अब तक पर्दे के पीछे से समर्थन देती आ रही भारतीय जनता पार्टी और दूसरा शिवसेना के 39 विधायकों के साथ ही गुवाहाटी में बैठे विधायक बच्चू कड़ू की प्रहार पार्टी।
इस रास्ते में भी मुश्किलें
यह रास्ता आसान जरूर है, लेकिन मुश्किलें भी हैं। इसे अपनाने से पहले भाजपा को भी तात्कालिक लाभ के साथ-साथ भविष्य के भले-बुरे का ध्यान रखना होगा यानी शिवसेना के जिन 39 विधायकों को वह अपने साथ विलय कराएगी, उनके क्षेत्रों में भाजपा संगठन एवं इन्हीं विधायकों के खिलाफ चुनाव लड़े अपने प्रत्याशियों की नाराजगी का खतरा उसके सामने भी बना रहेगा। इसलिए पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को यह कदम उठाने से पहले दस बार सोचना पड़ेगा।
प्रहार पार्टी में विलय के भी सियासी दिक्कत
विलय के रास्ते पर दूसरा विकल्प बच्चू कड़ू की प्रहार पार्टी अथवा इन दिनों भाजपा के कुछ नजदीक दिख रही राज ठाकरे की पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) का है। प्रहार पार्टी के अध्यक्ष बच्चू कड़ू अब तक शिवसेना सरकार में मंत्री थे। वह शिवसेना के कोटे से ही मंत्री बने थे। फिलहाल वह भी शिंदे के साथ गुवाहाटी में ही हैं। उनसे शिंदे की बातचीत भी हो ही रही होगी। लेकिन सवाल यह है कि शिवसेना के 39 विद्रोही विधायकों को अपनी पार्टी में शामिल करने के बाद बच्चू कड़ू क्या शिंदे को अपना नेता मानने को तैयार होंगे? विलय के रास्ते में तीसरा विकल्प मनसे का है। लेकिन अब तक देखा यह गया है कि ठाकरे परिवार राजनीतिक संघर्ष में भले एक-दूसरे से लड़ता रहे। लेकिन किसी और की ओर से हमला होने पर राज ठाकरे अक्सर उद्धव के साथ खड़े नजर आए हैं।