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दो वर्षो से प्राकृतिक आपदाएं झेलता आ रहा है कोंकण, पिछले साल निसर्ग और इस साल टाक्टे तूफान ने मचाया कहर

सांगली में कृष्णा की बाढ़ ही कहर बरपा रही है। दूसरी ओर महाराष्ट्र का विशाल जल क्षमता वाला कोयना बांध भी इसी क्षेत्र में स्थित है। कोयना बांध से भी पिछले कुछ ही दिनों में 10000 क्यूसेक पानी छोड़ा जा चुका है।

By Dhyanendra Singh ChauhanEdited By: Published: Fri, 23 Jul 2021 10:34 PM (IST)Updated: Fri, 23 Jul 2021 10:56 PM (IST)
दो वर्षो से प्राकृतिक आपदाएं झेलता आ रहा है कोंकण, पिछले साल निसर्ग और इस साल टाक्टे तूफान ने मचाया कहर
2005 एवं 1967 से भयावह बाढ़ के चलते भारी नुकसान

ओमप्रकाश तिवारी, मुंबई। प्राकृतिक सुंदरता का खजाना समेटे महाराष्ट्र का कोंकण क्षेत्र पिछले दो वर्षो से प्राकृतिक आपदाएं झेलता आ रहा है। चार दिनों से हो रही मूसलधार बारिश ने इस क्षेत्र के भरते घावों को एक बार फिर कुरेद दिया है। कोंकण और पश्चिम महाराष्ट्र में आई इस बाढ़ को इन्हीं क्षेत्रों में 2005 एवं 1967 में आई बाढ़ से भयावह बताया जा रहा है।

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देश की आर्थिक राजधानी मुंबई को प्रमुख पर्यटन राज्य गोवा से जोड़ने वाली करीब 500 किमी. की सागरतटीय पट्टी कोंकण क्षेत्र के नाम से जानी जाती है। मुंबई से गोवा की ओर सड़क मार्ग से जाते हुए बाईं ओर हरी-भरी पहाडि़यों के बीच महाड, पेण, खेण, चिपलूण जैसे शहर एवं छोटे-छोटे गांव साथ चलते हैं तो दाहिनी ओर कुछ दूर जाने पर समुद्र साथ-साथ चलता है। मुंबई से करीब पौने दो सौ किमी. का सफर तय करने के बाद बाईं ओर ही पोलादपुर के पहाड़ी रास्तों से महाराष्ट्र के हिल स्टेशन महाबलेश्वर पर जाया जा सकता है।

महाबलेश्वर में पिछले तीन दिनों में रिकॉर्ड बारिश

समुद्र तल से 1,439 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस हिल स्टेशन से पांच नदियां कृष्णा, कोयना, वेरना, सावित्री एवं गायत्री निकलती हैं। इनमें कृष्णा देश की चौथी सबसे बड़ी नदी है, जो महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना एवं आंध्र प्रदेश होते हुए 1400 किमी. का सफर तय कर बंगाल की खाड़ी में मिलती है। अन्य चार नदियां भी महाराष्ट्र के बड़े हिस्से से गुजरती हैं। इसी महाबलेश्वर ने पिछले तीन दिनों में 1534.4 मिमी. बारिश रिकार्ड की है, जो अब तक की सबसे ज्यादा है। इसका असर यहां से निकलनेवाली नदियों एवं उन नदियों के मार्ग में पड़नेवाले कोंकण एवं पश्चिम महाराष्ट्र के नगरों-कस्बों में पड़ना स्वाभाविक है। सांगली में कृष्णा की बाढ़ ही कहर बरपा रही है। दूसरी ओर महाराष्ट्र का विशाल जल क्षमता वाला कोयना बांध भी इसी क्षेत्र में स्थित है। कोयना बांध से भी पिछले कुछ ही दिनों में 10,000 क्यूसेक पानी छोड़ा जा चुका है।

मुंबई सहित महाराष्ट्र के ज्यादातर बड़े शहर पेयजल के लिए कोयना जैसे बड़े बांधों में बरसात के दिनों में संचित जल पर ही निर्भर करते हैं। इसलिए इन बांधों के क्षेत्र में पर्याप्त बारिश होना भी जरूरी है। लेकिन पिछले कुछ दिनों में इन क्षेत्रों में सामान्य से बहुत ज्यादा बारिश होना विपदा का कारण बन गया है। मुसीबत का कारण सिर्फ पिछले कुछ दिनों से हो रही बरसात ही नहीं है। सागरतटीय क्षेत्र होने के कारण पिछले दो वर्ष में कोकण पट्टी ने दो बड़े तूफान भी सहे हैं।

कुछ माह पहले टाक्टे तूफान ने मचाई थी तबाही 

पिछले वर्ष आए निसर्ग तूफान से हुई बर्बादी से कोंकण उबर भी नहीं पाया था कि कुछ माह पहले आए टाक्टे तूफान ने भी इसी क्षेत्र को अपना निशाना बनाया। लोग अभी तक इन तूफानों में उजड़ चुके अपने घर भी नहीं दुरुस्त कर पाए हैं। यही क्षेत्र अपने स्वादिष्ट हापुस आमों एवं काजू के लिए जाना जाता है। देश को 80 फीसद स्ट्राबेरी महाबलेश्वर देता है। टाक्टे ने इन सारी फसलों को तबाह कर किसानों को भारी नुकसान पहुंचाया था। इनका मुआवजा अभी तक किसानों को नहीं मिल पाया है। दूसरी ओर कोरोना के असर से भी कोंकण एवं पश्चिम महाराष्ट्र के जिले अभी बाहर नहीं आ सके हैं। इस महामारी से मुंबई जैसा महानगर भी अब राहत महसूस करने लगा है। लेकिन कोंकण एवं पश्चिम महाराष्ट्र के कई जिलों में अब भी सख्ती बरती जा रही है। इस कारण इन क्षेत्रों में उद्योग धंधे अभी ठीक से शुरू नहीं हो सके हैं। रायगढ़ का पेण कस्बा पूरे देश में गणपति मूíतयों के निर्माण के लिए जाना जाता है। कोरोना की शुरुआत के बाद से मूíतयों की मांग कम हुई तो कस्बे के मूíतकारों की कमर ही टूट गई है।


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