जानिए कौन हैं विजय बरसे, जिनके जीवन पर आधारित है अमिताभ बच्चन की फिल्म झुंड
फिल्म झुंड (Jhund) शुक्रवार को सिनेमाघरों में रिलीज हुई है। स्लम सॉकर के संस्थापक विजय बरसे पिछले 20 साल से गरीब बच्चों को फुटबॉल कोचिंग दे रहे हैं ये फिल्म इनके जीवन पर ही आधारित है। इसमें बालीवुड के बादशाह अमिताभ बच्चन ने विजय बरसे का किरदार निभाया है।
नागपुर, एएनआइ। 'स्लम सॉकर' (Slum Soccer) के संस्थापक विजय बरसे (Vijay Barse) 20 साल से वंचित बच्चों को फुटबॉल कोचिंग प्रदान कर रहे हैं। उनके जीवन पर आधारित फिल्म झुंड (Jhund) शुक्रवार को सिनेमाघरों में रिलीज हुई है। इसमें अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) मुख्य भूमिका में हैं । रिटायर्ड खेल प्रोफेसर विजय बरसे (Vijay Barse) की जिदंगी पर आधारित फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे झुग्गी बस्ती में रहने वाले विजय बरसे ने बच्चों का जीवन संवारा। गौरतलब है कि विजय बरसे आमिर खान के शो सत्यमेव जयते एक एपिसोड में भी आ चुके हैं। इस शो में ही उन्होंने अपनी जिंदगी के बड़े राज पर से परदा उठाया था।
टूटी हुई बाल्टी को लात मारकर खेल रहे थे बच्चे
2000 में नागपुर के हिसलोप कॉलेज में एक खेल टीचर के रूप में काम करते हुए उन्होंने एक बार कुछ बच्चों को देखा, जब वे बारिश में एक टूटी हुई बाल्टी को लात मारकर खेल रहे थे। इन्हें देखते ही उनके दिमाग में एक आइडिया आया है और इसी आइडिया को पूरा करने उन्होंने जी जान लगा दी। विजय बरसे ने बताया जब उन बच्चों को उन्होंने फुटबॉल खेलने के लिए बुलाया तो उस समय सभी बच्चे एक असहज स्थिति में थे, उन्होंने मट-मैले कपड़े पहने हुए थे। उसके बाद विजय ने अपने कुछ सहयोगियों के साथ एक टूर्नामेंट आयोजित करने की प्लानिंग की, जिसमें सिर्फ झुग्गी झोपड़ी वाले बच्चे ही भाग ले सकते थे।
स्मल सॉकर की स्थापना
विजय 36 साल बतौर खेल प्रोफेसर की नौकरी करने के बाद रिटायर्ड हुए थे। इसके बाद उन्होंने जो काम किया वो उसकी हर तरफ तारीफ हो रही है। 2001 में उन्होंने स्मल सॉकर की स्थापना की और नागपुर में एक टूर्नामेंट आयोजित किया। इस टूर्नामेंट में 128 टीमों ने भाग लिया था। इसके बाद उन्होंने इन बच्चों को एक खेल मैदान दिया और महसूस किया कि जब तक ये बच्चे मैदान में है तब तक वे दुनिया की बुराइयों से दूर रहेंगे।
हार नहीं मानी
'स्लम सॉकर' के संस्थापक विजय बरसे पिछले 20 साल से गरीब बच्चों को फुटबॉल कोचिंग दे रहे हैं। उनका कहना है कि वह फुटबॉल का विकास करना चाहता हूं और देश के लिए खिलाड़ी देना चाहता हूं। " जब बच्चों को टूटी हुई बाल्टी से खेलते हुए देखा वहीं से इसकी शुरुआत हुई। जिन गरीब बच्चों को मैं चोरी करते हुए देखता था अब वे फुटबॉल के मैदान में नजर आ रहे हैं। ये अब मेरा मिशन बन गया है।
यदि आप दूसरों के लिए अच्छा काम करते हैं, उपेक्षित, झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लोगों की मदद के लिए आगे आते हैं तो ये स्वाभाविक है कि लोगों का ध्यान आप पर जाएगा। पैसे के अभाव के बावजूद भी हमने हार नहीं मानी नतीजतन नागपुर से शुरू किया ये काम अब 130-140 देशों तक पहुंच गया है।