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Maharashtra: किसी को किस करना या प्यार करना अप्राकृतिक यौन अपराध नहीं: बांबे हाई कोर्ट

Maharashtra बांबे हाई कोर्ट ने एक दलील पर फैसला सुनाते हुए कहा कि किसी को किस करना और प्यार करना अप्राकृतिक यौन अपराध नहीं है। कोर्ट ने यह फैसला सुनाते हुए एक मामले में एक नाबालिग लड़के के यौन उत्पीड़न के आरोपित को जमानत दे दी।

By Sachin Kumar MishraEdited By: Published: Sun, 15 May 2022 02:38 PM (IST)Updated: Sun, 15 May 2022 04:48 PM (IST)
Maharashtra: किसी को किस करना या प्यार करना अप्राकृतिक यौन अपराध नहीं: बांबे हाई कोर्ट
किसी को किस करना या प्यार करना अप्राकृतिक यौन अपराध नहीं: बांबे हाई कोर्ट। फाइल फोटो

मुंबई, प्रेट्र। महाराष्ट्र में बांबे हाई कोर्ट ने एक दलील पर फैसला सुनाते हुए कहा कि किसी को किस करना और प्यार करना अप्राकृतिक यौन अपराध नहीं है। कोर्ट ने यह फैसला सुनाते हुए एक मामले में एक नाबालिग लड़के के यौन उत्पीड़न के आरोपित को जमानत दे दी। एक आदेश में न्यायमूर्ति अनुजा प्रभुदेसाई ने 14 वर्षीय लड़के के पिता द्वारा दर्ज की गई पुलिस शिकायत के बाद पिछले साल गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को जमानत दे दी। प्राथमिकी के अनुसार, लड़के के पिता को उनकी अलमारी से कुछ पैसे गायब मिले। लड़के ने उसे बताया कि उसने आरोपित को पैसे दिए हैं। नाबालिग ने कहा कि वह मुंबई के एक उपनगर में आरोपित व्यक्ति की दुकान पर एक आनलाइन गेम को रिचार्ज करने के लिए जाता था, जिसे वह खेलता था। लड़के ने आरोप लगाया कि एक दिन जब वह रिचार्ज कराने गया तो आरोपित ने उसके होठों पर किस किया और उसके गुप्तांगों को छुआ। इसके बाद लड़के के पिता ने पुलिस से संपर्क किया, उसने आरोपित के खिलाफ यौन अपराधों से बच्चों की रोकथाम (पाक्सो) अधिनियम की संबंधित धाराओं और भारतीय दंड संहिता (आइपीसी) की धारा 377 के तहत प्राथमिकी दर्ज कराई।

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हाई कोर्ट ने आरोपित को 30000 के निजी मुचलके पर दी जमानत

न्यायमूर्ति प्रभुदेसाई ने आरोपित को जमानत देते हुए कहा कि लड़के का मेडिकल परीक्षण उसके यौन उत्पीड़न के बयान का समर्थन नहीं करता है। आरोपित के खिलाफ लगाए गए पाक्सो की धाराओं में अधिकतम पांच साल की सजा है और उसे जमानत का अधिकार है। न्यायमूर्ति प्रभुदेसाई ने कहा कि वर्तमान मामले में अप्राकृतिक यौन अपराध का तत्व प्रथम दृष्टया लागू नहीं है। पीड़िता के बयान के साथ-साथ प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआइआर) प्रथम दृष्टया संकेत देती है कि आवेदक ने पीड़ित के निजी अंगों को छुआ था और उसके होंठों को चूमा था। न्यायाधीश ने कहा कि मेरे विचार में यह धारा 377 के तहत प्रथम दृष्टया अपराध नहीं होगा। उच्च न्यायालय ने कहा कि आरोपित पहले से ही एक साल के लिए हिरासत में था और मामले की सुनवाई जल्द शुरू होने की संभावना नहीं थी। हाई कोर्ट ने आरोपित को 30,000 रुपये के निजी मुचलके पर जमानत देते हुए कहा कि उपरोक्त तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए आवेदक जमानत का हकदार है। 


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