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चिदंबरम के बाद शरद पवार की बारी, कोऑपरेटिव बैंक घोटाले में FIR दर्ज करने के आदेश

महाराष्ट्र कोऑपरेटिव बैंक घोटाले में बांबे हाईकोर्ट ने राकांपा प्रमुख शरद पवार अजित पवार और 70 अन्य के खिलाफ पांच दिन के भीतर एफआइआर दर्ज करने का आदेश दिया है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Thu, 22 Aug 2019 10:26 PM (IST)Updated: Fri, 23 Aug 2019 12:07 AM (IST)
चिदंबरम के बाद शरद पवार की बारी, कोऑपरेटिव बैंक घोटाले में FIR दर्ज करने के आदेश
चिदंबरम के बाद शरद पवार की बारी, कोऑपरेटिव बैंक घोटाले में FIR दर्ज करने के आदेश

राज्य ब्यूरो, मुंबई। महाराष्ट्र स्टेट कोऑपरेटिव बैंक (एमएससीबी) घोटाले में बांबे हाई कोर्ट ने मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा को राकांपा प्रमुख शरद पवार, उनके भतीजे व पूर्व उपमुख्यमंत्री अजित पवार और 70 अन्य के खिलाफ पांच दिन के भीतर एफआइआर दर्ज करने का आदेश दिया है। अदालत ने कहा कि इस मामले में पहली नजर में उनके खिलाफ विश्वसनीय सुबूत हैं।

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कई नेता और 34 जिलों के अधिकारी शामिल  
जस्टिस एससी धर्माधिकारी और जस्टिस एसके शिंदे की पीठ ने गुरुवार यह आदेश दिए। शरद पवार और अजित पवार के अलावा इस मामले के आरोपितों में राकांपा नेता जयंत पाटिल, कई अन्य राजनेता, सरकारी अधिकारी और राज्य के 34 जिलों के कोऑपरेटिव बैंक के कई वरिष्ठ अधिकारी शामिल हैं। सभी आरोपित 2007 से 2011 के बीच एमएससीबी को कथित रूप से 1,000 करोड़ रुपये का नुकसान पहुंचाने में शामिल थे।

आयोग ने आरोपपत्र में दोषी ठहराया
राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) द्वारा कराए गए निरीक्षण और महाराष्ट्र कोऑपरेटिव सोसायटीज (एमसीएस) एक्ट के तहत अर्धन्यायिक जांच आयोग द्वारा दाखिल आरोपपत्र में शरद पवार, अजित पवार और बैंक के कई निदेशकों समेत अन्य आरोपितों को दोषी ठहराया गया था। इसमें कहा गया था कि उनके फैसलों, कार्यो और लापरवाही की वजह से बैंक को यह नुकसान उठाना पड़ा। नाबार्ड की ऑडिट रिपोर्ट में यह तथ्य भी उजागर हुआ था कि आरोपितों ने चीनी और कताई मिलों को कर्ज बांटने, कर्जे नहीं चुकाए जाने और कर्जो की वसूली में कई बैंकिंग कानूनों व रिजर्व बैंक के दिशानिर्देशों का उल्लंघन किया। खास बात यह है कि उस दौरान अजित पवार बैंक के निदेशक थे।

आरोपितों के खिलाफ विश्‍वसनीय सुबूत 
निरीक्षण रिपोर्ट के बावजूद इस मामले में कोई एफआइआर दर्ज नहीं की गई थी। स्थानीय आरटीआइ कार्यकर्ता सुरेंद्र अरोड़ा ने 2015 में आर्थिक अपराध शाखा में एक शिकायत दर्ज कराई थी और हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर एफआइआर दर्ज किए जाने की मांग की थी। गुरुवार को हाई कोर्ट ने कहा कि पहली नजर में नाबार्ड की निरीक्षण रिपोर्ट, शिकायत और एमसीएस एक्ट के तहत दायर आरोपपत्र से साफ है कि आरोपितों के खिलाफ इस मामले में विश्वसनीय सुबूत हैं।


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