Collegium System: उद्धव गुट ने कानून मंत्री किरण रिजिजू के कॉलेजियम सिस्टम वाली टिप्पणी पर उठाए सवाल
शिवसेना के उद्धव ठाकरे गुट को केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू की जजों की नियुक्ति में कोलेजियम प्रणाली पर की गई टिप्पणी रास नहीं आ रही है। कानून मंत्री किरण रिजिजू ने हाल ही में न्यायाधीशों की नियुक्ति में अपनाई जानेवाली कोलेजियम प्रणाली को अपारदर्शी करार दिया था।
राज्य ब्यूरो, मुंबई। शिवसेना के उद्धव ठाकरे गुट को केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू की जजों की नियुक्ति में कोलेजियम प्रणाली पर की गई टिप्पणी रास नहीं आ रही है। उसका कहना है कि कानून मंत्री ने यह टिप्पणी कर लक्ष्मण रेखा लांघने का काम किया है। उन्हें पद पर बने रहने का अधिकार नहीं है। पार्टी मुखपत्र सामना में लिखे गए संपादकीय के जरिए किरण रिजिजू को घेरते हुए शिवसेना उद्धव गुट ने कहा है कि ये लोग अपनी विचारधारा के लोगों को न्यायपालिका में चाहते हैं। ये लोकतंत्र, संसद और विपक्ष के नेताओं को भी खत्म करना चाहते हैं। इसलिए ये लोग उच्चन्यायालय, सर्वोच्च न्यायालय एवं अधिवक्ताओं में भी अपने ही लोग चाहते हैं।
कोलेजियम प्रणाली से नाखुश हैं किरण रिजिजू
बता दें कि कानून मंत्री किरण रिजिजू ने हाल ही में न्यायाधीशों की नियुक्ति में अपनाई जानेवाली कोलेजियम प्रणाली को अपारदर्शी करार दिया था। उन्होंने कहा कि इस प्रणाली की बुनियादी कमी यह है कि इसमें जज उन्हीं जजों की सिफारिश करते हैं, जिन्हें वे जानते हैं। जाहिर है, जिन्हें वे नहीं जानते उनके नाम की सिफारिश वे नहीं करेंगे।
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अजगर की तरह केंद्र सरकार सभी संस्थाओं को निगल चुकी है: सामना
उनकी इस टिप्पणी की आलोचना करते हुए सामना लिखता है कि कभी डॉ.बाबासाहब आंबेडकर देश के कानूनमंत्री हुआ करते थे। अब जो उनकी कुर्सी पर बैठे हैं, वह लक्ष्मण रेखा लांघते दीख रहे हैं। इसलिए उन्हें अपने पद पर रहने का कोई अधिकार नहीं है। सामना के अनुसार किसी अजगर की तरह केंद्र सरकार सभी संस्थाओं को निगल चुकी है। अब वह न्यायपालिका को भी निगलना चाहती है।
सामना के अनुसार कानून मंत्री चाहते हैं कि न्यायाधीशों की नियुक्ति भी अब प्रधानमंत्री करें। लेकिन यह सुझाव बड़ा खतरनाक है। कोलेजियम प्रणाली में कम से कम कानून का राज तो है। कभी इलाहाबाद उच्चन्यायालय के एक न्यायाधीश ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के विरुद्ध भी फैसला सुनाने की हिम्मत जुटाई थी। क्या किसी सरकार द्वारा नियुक्त जज ऐसी हिम्मत जुटा सकेगा ?
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