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Maharashtra: अनिल देशमुख और महाराष्ट्र सरकार को बांबे हाई कोर्ट से झटका, याचिकाएं खारिज

Maharashtra मुंबई उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र सरकार व अनिल देशमुख की ओर से दायर याचिकाएं खारिज कर दी हैं। अनिल देशमुख ने अपने विरुद्ध सीबीआइ द्वारा दायर एफआइआर रद करने व महाराष्ट्र सरकार ने एफआइआर में से दो पैरा हटाने के लिए याचिका दायर की थी।

By Sachin Kumar MishraEdited By: Published: Thu, 22 Jul 2021 06:51 PM (IST)Updated: Thu, 22 Jul 2021 06:51 PM (IST)
Maharashtra: अनिल देशमुख और महाराष्ट्र सरकार को बांबे हाई कोर्ट से झटका, याचिकाएं खारिज
अनिल देशमुख और महाराष्ट्र सरकार को बांबे हाई कोर्ट से झटका, याचिकाएं खारिज। फाइल फोटो

राज्य ब्यूरो, मुंबई। महाराष्ट्र के पूर्व गृहमंत्री अनिल देशमुख व महाराष्ट्र सरकार को मुंबई उच्च न्यायालय में मुंह की खानी पड़ी है। उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार व देशमुख की ओर से दायर याचिकाएं खारिज कर दी हैं। देशमुख ने अपने विरुद्ध सीबीआइ द्वारा दायर एफआइआर रद करने व महाराष्ट्र सरकार ने एफआइआर में से दो पैरा हटाने के लिए याचिका दायर की थी। राज्य सरकार इस फैसले पर कुछ दिन के लिए रोक भी लगवाना चाहती थी।

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महाराष्ट्र के पूर्व गृहमंत्री अनिल देशमुख पर पुलिस अधिकारियों के जरिए हर महीने 100 करोड़ रुपयों की वसूली करवाने का आरोप लगने के बाद मुंबई उच्च न्यायालय की ही एक पीठ ने पांच अप्रैल को सीबीआइ जांच के आदेश दिए थे।

सीबीआइ ने इस मामले की एफआइआर दर्ज करते हुए उसमें मुंबई पुलिस के बर्खास्त एपीआइ सचिन वाझे की 15 साल बाद पुलिस विभाग में बहाली व अनिल देशमुख पर पुलिस अधिकारियों की ट्रांस्फर-पोस्टिंग में हस्पक्षेप के मामलों की जांच भी शामिल कर ली थी। राज्य सरकार इन दोनों मामलों की जांच से संबंधित अनुच्छेद सीबीआइ की एफआइआर से हटवाना चाहती थी। जबकि अनिल देशमुख ने अपनी याचिका में अपने विरुद्ध शुरू हुई सीबीआइ जांच को ही चुनौती दी थी, जिसमें उनपर घूसखोरी, भ्रष्टाचार व आपराधिक साजिश के आरोप लगाए गए हैं। गुरुवार को न्यायमूर्ति एसएस शिंदे व न्यायमूर्ति एनजे जमादार की खंडपीठ ने ये दोनों याचिकाएं खारिज कर दीं।

खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा कि हमारे विचार से सीबीआइ सचिन वाझे की 15 साल बाद पुलिस बल में पुनः बहाली व पुलिस अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग मामलों की जांच कर सकती है। खंडपीठ के अनुसार उसके इस आदेश को सामान्यतया पुलिस विभाग में ट्रांसफर-पोस्टिंग के मामलों से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। क्योंकि पूर्व गृहमंत्री व उनके सहयोगियों का मामला इससे अलग है। न्यायमूर्ति शिंदे ने अपने फैसले में विशेषतौर पर कहा कि पुलिसकर्मियों की ट्रांसफर-पोस्टिंग पुलिस आयुक्त की जिम्मेदारी होती है, ताकि उसका पुलिसबल राज्य में शांति-व्यवस्था बनाए रखने के लिए सही काम कर सके। देशमुख पर 100 करोड़ की वसूली का आरोप लगने से बहुत पहले महाविकास अघाड़ी सरकार में ही ट्रांसफर-पोस्टिंग में गृहमंत्री के हस्तक्षेप की रिपोर्ट राज्य की तत्कालीन खुफिया आयुक्त रश्मि शुक्ला ने मुख्यमंत्री को दे दी थी। मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह ने पहले सर्वोच्च न्यायालय व फिर मुंबई उच्चन्यायालय में दायर अपनी याचिका में इस रिपोर्ट का भी विस्तार से उल्लेख किया है। सीबीआइ इसी आधार पर 100 करोड़ की वसूली के साथ-साथ ट्रांसफर-पोस्टिंग में अनिल देशमुख के हस्तक्षेप की भी जांच करना चाहती है।

इसी वर्ष 25 फरवरी को उद्योगपति मुकेश अंबानी की इमारत के बाहर जिलेटिन विस्फोटक लदी एक स्कार्पियो पाई गई थी। एनआइए द्वारा इस मामले की जांच अपने हाथ में लिए जाने के बाद मुंबई पुलिस की क्राइम इंटेलीजेंस यूनिट (सीआइयू) के प्रभारी एपीआइ सचिन वाझे को ही इस मामले में गिरफ्तार कर लिया गया था। इसके कुछ दिन बाद ही तत्कालीन गृहमंत्री अनिल देशमुख ने मुंबई के पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह का न केवल स्थानांतरण कर दिया, बल्कि यह आरोप भी लगाया कि जिम्मेदारियों को ठीक से निर्वाह न कर पाने के कारण उनका स्थानांतरण किया गया है। गृहमंत्री के इस बयान के तीसरे दिन ही 20 मार्च को परमबीर सिंह मुख्यमंत्री को लिके अपने लंबे पत्र में देशमुख पर 100 करोड़ रुपयों की वसूली करवाने का आरोप लगा दिया था। यह मामला तूल पकड़ने के बाद देशमुख को भी अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था। अब न सिर्फ सीबीआई, बल्कि प्रवर्तन निदेशालय भी अनिल देशमुख की जांच कर रहा है। 


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