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Maharastra Political Crisis: शिवसेना अपने विधायकों को आईडी कार्ड और कपड़े लेकर 5 दिन के लिए बुलाया

शिवसेना के विधायकों को 22 नवंबर को होने वाली बैठक के लिए बुलाया गया है इसके लिए पांच दिन साथ रहने के लिए कहा गया है।

By Babita kashyapEdited By: Published: Wed, 20 Nov 2019 02:32 PM (IST)Updated: Wed, 20 Nov 2019 02:56 PM (IST)
Maharastra Political Crisis: शिवसेना अपने विधायकों को आईडी कार्ड और कपड़े लेकर 5 दिन के लिए बुलाया
Maharastra Political Crisis: शिवसेना अपने विधायकों को आईडी कार्ड और कपड़े लेकर 5 दिन के लिए बुलाया

मुंबई, एएनआइ। महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री के पद को लेकर खींचतान अभी जारी है। ताजा मिली जानकारी के अनुसार शिवसेना के नेता अब्दुल सत्तार ने शिवसेना के विधायकों को 22 नवंबर को बैठक के लिए बुलाया है। सत्तार ने कहा है कि मुझे लगता है कि हमें पांच दिन साथ ही रहना होगा और इसके बाद ही अगला कदम तय किया जाएगा। इसलिए सभी विधायकों को उनका आइडी और कपड़े साथ लाने का आदेश भी दिया गया है, उन्होंने कहा कि निश्चित रूप से उद्धव ठाकरे ही महाराष्ट्र के अगले सीएम होंगे।  

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सीएम पद के लिए अड़े गठबंधन टूटा

विधानसभा चुनाव साथ लडऩे के बाद मुख्यमंत्री पद के लिए 50-50 की मांग पर अड़ जाने के कारण भाजपा-शिवसेना का गठबंधन टूट चुका है। राज्य ही नहीं, केंद्र सरकार से भी उसने अपने एकमात्र मंत्री डॉ.अरविंद सावंत का इस्तीफा दिलवा दिया है। हाल यह है कि जिनके भरोसे उसने यह जोखिम लिया, उन कांग्रेस-राकांपा की तरफ से अब तक उसे निराशा ही मिली है। ज्ञात हो कि कांग्रेस-राकांपा का समर्थन पत्र नहीं जुटा पाने की वजह से 11 नवंबर को राजभवन जाकर भी शिवसेना प्रतिनिधिमंडल को खाली हाथ लौटना पड़ा।

सोनिया और पवार की मुलाकात ने बढ़ायी उलझन 

राकांपा प्रमुख शरद पवार और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की मुलाकात के बाद पवार के बयान ने स्थिति को और उलझा कर रख दिया। उन्होंने कहा था कि भाजपा-शिवसेना ने साथ चुनाव लड़ा, सरकार के बारे में उनसे ही पूछा जाये। दूसरी ओर सरकार गठन नहीं होने से शिवसेना सहित सभी दलों के नवनिर्वाचित विधायकों की हिम्मत अब जवाब दे रही है। इसकी वजह से अगले माह होने वाला विधानमंडल सत्र भी अधर में है।

शिवेसना में निराशा

शिवसेना विधायकों को भाजपा से अलग हो कांग्रेस-राकांपा से हाथ मिलाना रास नहीं आ रहा है, क्योंकि वह कांग्रेस-राकांपा से ही लड़कर जीते हैं। कार्यकर्ताओं का संकट उनसे भी काफी बड़ा है। कार्यकर्ताओं के बीच राजनीतिक टकराव ही नहीं, कहीं-कहीं निजी दुश्मनी भी है। 

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