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भगवान श्रीकृष्ण ने उज्जैन में सीखी थी फूलों से रंग बनाने की कला, सांदीपनि आश्रम में मौजूद है प्रमाण

मध्य प्रदेश के संस्कृति विभाग ने आश्रम परिसर में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा सीखी गई विद्याओं पर आधारित कला दीर्घा का निर्माण करवाया है। इसमें 64 विद्याओं के चित्र और उनसे जुड़ी कला का संक्षिप्त उल्लेख किया गया है।

By Vijay KumarEdited By: Published: Thu, 17 Mar 2022 07:30 PM (IST)Updated: Thu, 17 Mar 2022 07:30 PM (IST)
भगवान श्रीकृष्ण ने उज्जैन में सीखी थी फूलों से रंग बनाने की कला, सांदीपनि आश्रम में मौजूद है प्रमाण
सांदीपनि आश्रम स्थित कला दीर्घा में इस चित्र के माध्यम से प्रदर्शित किया गया है

राजेश वर्मा, उज्जैन: रंग पर्व की बात हो तो बरबस ही ब्रज की होली का स्मरण हो आता है। ब्रज की धरती पर भगवान श्रीकृष्ण की ग्वाल बाल के साथ होली की कथाएं बहुत प्रचलित हैं। यह जानना भी कम रोचक नहीं है कि होली खेलने में फूलों के जिन रंगों का उपयोग होता है, श्रीकृष्ण ने उन्हें बनाने की कला उज्जैन (पूर्व में उज्जयिनी) में गुरु सांदीपनि के आश्रम में सीखी थी। आश्रम परिसर में 64 विद्याओं पर आधारित कला दीर्घा में भी इसका उल्लेख मिलता है।

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गुरु सांदीपनि के वंशज पुजारी पं.रूपम व्यास ने बताया कि भगवान श्रीकृष्ण भ्राता बलराम के साथ उज्जैन में गुरु सांदीपनि से विद्या ग्रहण करने आए थे। उन्होंने 64 दिन में संपूर्ण ज्ञान प्राप्त कर लिया था। इस अवधि में श्रीकृष्ण ने 64 विद्या और 16 कलाओं का ज्ञान प्राप्त किया था। इसमें गीतकला, वाद्यकला, नृत्यकला, नाट्यकला आदि के साथ फूल व पत्तियों से रंग बनाने की कला भी शामिल है। गुरु सांदीपनि ने श्रीकृष्ण को रंग बनाने के साथ कपड़ों पर छापे लगाने आदि की कला भी सिखाई थी। भरत मुनि के नाट्य शास्त्र में भी यह बताया गया है। मध्य प्रदेश के संस्कृति विभाग ने आश्रम परिसर में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा सीखी गई विद्याओं पर आधारित कला दीर्घा का निर्माण करवाया है। इसमें 64 विद्याओं के चित्र और उनसे जुड़ी कला का संक्षिप्त उल्लेख किया गया है।

होली पर ग्वाल बाल के रूप में होता है श्रृंगार

सांदीपनि आश्रम में धुलेंडी से रंग पंचमी तक पांच दिवसीय होली उत्सव मनाया जाता है। माना जाता है कि श्रीकृष्ण ग्वाल बाल के रूप में होली खेलते हैं। पांच दिन तक भगवान का एक सा (ग्वाल बाल) श्रृंगार रहता है। भक्त भगवान के साथ गुलाल होली खेलते हैं। पं. रुपम व्यास के अनुसार आश्रम में आज भी गुरु परंपरा प्रचलित है। पहले गुरु सांदीपनि की पूजा होती है, इसके बाद श्रीकृष्ण की। त्योहारों पर भी गुरु परंपरा प्रधान है इसलिए आश्रम में केवल गुलाल होली खेली जाती है। गुलाल होली शालीनता की प्रतीक है।

प्राचीन चरित्र कोष में गुरु सांदीपनि का उल्लेख

विक्रम विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति और संस्कृतविद् डा. बालकृष्ण शर्मा के अनुसार सिद्धेश्वर शास्त्री चित्राव द्वारा रचित प्राचीन चरित्र कोष में महर्षि सांदीपनि के बारे में बताया गया है। इसमें लिखा है कि श्रीकृष्ण और बलराम ने सांदीपनि से 64 कलाएं सीखी थीं। सांदीपनि का अर्थ है जो स्वयं भी ज्ञान से प्रकाशित हो और दूसरों को भी करे।  

पुस्तक 'प्रथम गुरुकुल' में शिक्षा अवधि का वृतांत

सांदीपनि आश्रम परिवार द्वारा श्रीकृष्ण की शिक्षा यात्रा पर पुस्तक 'प्रथम गुरुकुल' का प्रकाशन किया गया है। इसमें श्रीकृष्ण के उज्जैन में विद्या अध्ययन के लिए आने का उद्देश्य, 64 विद्याएं व 16 कलाओं का वृतांत, सुदामा से मित्रता तथा गुरु दक्षिणा का वृत्तांत शामिल है।

अंकपात संस्थान करता है संचालन

सांदीपनि आश्रम पूर्व में होलकर राजवंश के आधिपत्य में था। राजवंश की ओर से ही आश्रम के संचालन के लिए अंकपात नाम से एक संस्थान बनाया गया था। आज भी इस संस्थान के नाम से सांदीपनि मुनि के वंशज व्यास परिवार द्वारा व्यवस्थाएं संचालित की जाती हैं। पं. रूपम व्यास ने बताया कि आश्रम मंदिर में पूजन के लिए मध्य प्रदेश धर्मस्व विभाग द्वारा उन्हीं के परिवार के सदस्यों को वंश परंपरा से पुजारी नियुक्त किया जाता है।

कई ग्रंथ हैं मौजूद

सांदीपनि आश्रम में कई ग्रंथ मौजूद हैं। इनमें स्कंद पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म पुराण, लिंग पुराण, गर्ग संहिता, साझक संजीवनी आदि शामिल हैं।

वर्जन

धर्मधानी उज्जैन रंगोत्सव की जननी है। भरत मुनि के नाट्य शास्त्र के अनुसार श्रीकृष्ण ने यहां गुरु सांदीपनि से फूलों से रंग बनाने की कला सीखी थी। भगवान को यहां पिचकारी में जल भरकर छोडऩे की जल क्रीड़ा का ज्ञान भी प्राप्त हुआ था।

- डा. पीयूष त्रिपाठी, निदेशक, महाकालेश्वर वैदिक प्रशिक्षण एवं शोध संस्थान, उज्जैन


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