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मौसम की सटीक जानकारी देने वाला कोरियन बैलून फेल, आगरा से नहीं पहुंची गैस

जबलपुर के मौसम विज्ञान केंद्र में कोरियन बलून मौसम की सटीक जानकारी बताता है। आगरा से आने वाली गैस नहीं मिलने से यह बलून उड़ नहीं पा रहा और सही रिपोर्ट नहीं मिल पा रही है।

By Jagran News NetworkEdited By: Published: Tue, 17 Dec 2019 06:07 PM (IST)Updated: Tue, 17 Dec 2019 06:56 PM (IST)
मौसम की सटीक जानकारी देने वाला कोरियन बैलून फेल, आगरा से नहीं पहुंची गैस
मौसम की सटीक जानकारी देने वाला कोरियन बैलून फेल, आगरा से नहीं पहुंची गैस

जबलपुर, जेएनएन। मध्यप्रदेश के जबलपुर में मौसम का हाल बताने वाला कोरियन बलून पिछले तीन सप्‍ताह से पिचका पड़ा है, जिससे मौसम की सटीक जानकारी नहीं मिल पा रही है। वजह यह कि बलून में भरी जाने वाली गैस आगरा से आती है, जो कि पहुंच नहीं पाई है। आलम यह है कि मौसम वैज्ञानिक आसमान साफ रहने का पूर्वानुमान लगा रहे हैं तो उस समय पर बादल छा रहे हैं और बारिश हो रही है।

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जबलपुर में अधारताल स्थित मौसम विज्ञान केंद्र में मौसम का पूर्वा​नुमान सटीक तरीके से बताने के लिए नई तकनीक का सहारा लेने का निर्णय लिया गया। इसी का नतीजा है कि यहां पर बलून यानी गुब्बारा तकनीक पर आ​धारित सिस्टम तैयार किया गया। इसमें कोरियन बलून का इस्तेमाल किया जाता है। यह पूरा सिस्टम इसी साल 31 जुलाई को लगकर तैयार हुआ। उम्मीद के अनुरूप इसके जरिए मौसम वैज्ञानिक सटीक जानकारी दे रहे थे। इसमें प्लेन की आवाजाही के लिए वायु की गति बताने और हवा में नमी के साथ ही तापमान का पूर्वानुमान शामिल है।

बीते चार माह तक यह सब ठीक—ठाक चलता रहा। इसके बाद इसमें भराी जाने वाली गैस धीरे—धीरे निकल गई और बलून नीचे की ओर आने लगा। पिछले 20 दिन से इसी तरह की स्थिति बनी हुई। मौसम वैज्ञानिकों के लिए भी दिक्कत की बात यह है कि इसके लिए गैस आगरा से मंगाने की मजबूरी रहती है। समय पर नहीं मिल पाने से इस तरह के हालात बन रहे हैं।

35 किमी ऊंचाई व सौ किमी क्षेत्रफल होता है कवर

नई तकनीक में जीपीएस ट्रैकर और रेडियो साउंड व वेब से जुड़े सिस्टम इस्तेमाल में लाया जा रहा है। कोरियन बलून में लगा ट्रांसमीटर पृथ्वी की सतह से 35 किलोमीटर की ऊंचाई और सौ किलोमीटर के क्षेत्रफल में चलने वाली हवा की दिशा, गति, उसमें मौजूद नमी, तापमान आदि की सटीक गणना कर सीधे कम्प्यूटर को भेज देता है।

विमानों की उड़ान है निर्भर

कोरियन बलून नई तकनीक पर आधारित है। पहले जो बलून छोड़ा जाता था वह महज दो से पांच किलोमीटर की ऊंचाई तक ही पहुंच पाता था। इससे हवा की गति और दिशा की सटीक जानकारी नहीं पाती थी। अब इस तरह की दिक्कत नहीं होती। इसके जरिए मिलने वाली सूचना दो कामों में ​इस्तेमाल होता है। एक ओर जहां विमानों की उड़ान के लिए एयर ट्रैफिक कांट्रोल सिस्टम को मौसम का पूर्वानुमान भेजा जाता है। साथ ही मौसम की भविष्यवाणी तय की जाती है।

जल्द उड़ेगा बलून

मौसम विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक देवेंद्र तिवारी ने इस संबंध में कहा कि बलून की गैस खत्म हो गई है। इसके लिए व्यवस्था जल्द की जा रही है। आगरा से गैस आने के बाद सिस्टम फिर से बेहतर काम करने लगेगा।


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