MP के बालाघाट में 12 साल बाद किसी माओवादी का सरेंडर, महिला माओवादी ने डाले हथियार
मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले में 12 साल बाद एक महिला माओवादी, सुनीता ने पुलिस के सामने आत्मसमर्पण किया। वह छत्तीसगढ़ के बीजापुर की रहने वाली है और फरवरी 2025 से बालाघाट में सक्रिय थी। पुलिस के अनुसार, सुनीता एमएमसी दलम की सदस्य थी और अपने दलम लीडर की गार्ड थी। पुलिस इसे मिशन 2026 के तहत बड़ी सफलता मान रही है।

महिला माओवादी ने किया सरेंडर (प्रतीकात्मक चित्र)
डिजिटल डेस्क, जबलपुर। मप्र के बालाघाट जिले में 12 साल बाद पुलिस के सामने एक माओवादी ने आत्मसमर्पण किया है। छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले की रहने वाली महिला माओवादी सुनीता ने शनिवार को बालाघाट पुलिस के सामने अपने हथियार डाल दिए। उसने बालाघाट जिले के लांजी थाना क्षेत्र अंतर्गत पितकोना पुलिस चौकी के चौरिया कैंप में अपनी इंसास राइफल और तीन मैगजीन के साथ सरेंडर किया।
पुलिस के मुताबिक, 23 वर्षीय सुनीता माओवादी संगठन में एसीएम (एरिया कमेटी मेंबर) के पद पर रहते हुए सेंट्रल कमेटी के प्रमुख सदस्य सीसीएम रामधेर की सुरक्षा गार्ड के रूप में काम कर चुकी है। वह वर्ष 2022 में माओवादी संगठन से जुड़ी थी और माड़ क्षेत्र में छह महीने का प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद इंद्रावती और माड़ इलाके में सक्रिय रही। प्रशिक्षण के उपरांत सुनीता सीसीएम माओवादी रामधेर की 11 सदस्यीय टीम के साथ एमएमसी जोन के दर्रेकसा क्षेत्र पहुंची थी, जहां से वह लगातार माओवादी गतिविधियों में संलग्न रही।
आईजी बालाघाट रेंज संजय कुमार ने महिला नक्सली के आत्मसमर्पण की पुष्टि करते हुए बताया कि सुनीता का आत्मसमर्पण प्रक्रिया में है और उससे संगठन से जुड़ी अहम जानकारियां प्राप्त की जा रही हैं।
बालाघाट जिले में वर्ष 2013 के बाद यह पहला माओवादी सरेंडर है। तब मलाजखंड टाडा दलम के माओवादी बीरसिंह उर्फ मुक्का ने आत्मसमर्पण किया था। पुलिस इसे मिशन 2026 के तहत बड़ी सफलता मान रही है।
आईजी संजय कुमार ने बताया कि पुलिस लगातार माओवादियों को आत्मसमर्पण के लिए प्रेरित कर रही है। इसके तहत पुलिस ने छत्तीसगढ़ के सरेंडर कर चुके टॉप माओवादी नेताओं की तस्वीरें लगाकर अभियान चलाया है, जिससे संगठन से जुड़ चुके युवाओं को मुख्यधारा में लौटने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके।
बालाघाट पुलिस का मानना है कि सुनीता का आत्मसमर्पण नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में माओवादियों के मनोबल को कमजोर करेगा और सुरक्षा बलों के लिए यह एक रणनीतिक उपलब्धि साबित होगी।

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