लोकायुक्त की नियुक्ति वैध
जबलपुर। मप्र उच्च न्यायालय ने लोकायुक्त पद पर जस्टिस पीपी नावलेकर की नियुक्ति को कठघरे में रखने वाली याचिका को तर्कसंगत न पाते हुए खारिज कर दिया। मामला राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सीधे निर्णय को चुनौती से संबंधित था।
सोमवार को उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश सुशील हरकौली व जस्टिस यूसी माहेश्वरी की युगलपीठ के समक्ष याचिकाकर्ता राजधानी भोपाल निवासी आरटीआई एक्टिविस्ट अजय दुबे का पक्ष अधिवक्ता राघवेंद्र कुमार ने रखा। उन्होंने दलील दी कि लोकायुक्त की नियुक्ति के संदर्भ में विहित प्रावधान के तहत मुख्यमंत्री को सर्वप्रथम मंत्रिपरिषषद् की बैठक बुलाकर उनकी सहमति लेनी होती है, लेकिन जस्टिस नावलेकर की नियुक्ति के पूर्व यह प्रक्रिया नहीं अपनाई गई।
याचिकाकर्ता की ओर से कोर्ट को अवगत कराया गया कि मुख्यमंत्री ने लोकायुक्त की नियुक्ति के लिए सीधे अपने आपात अधिकार का इस्तेमाल करते हुए मुख्य न्यायाधीश व नेता प्रतिपक्ष से औपचारिक बात करके अंतिम निर्णय ले लिया। दरअसल, इस पद के लिए जस्टिस नावलेकर के अलावा अन्य उम्मीदवार भी थे, लेकिन उनकी अनदेखी की गई। बहस के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से तर्क दिया गया कि मुख्यमंत्री को नियमानुसार मंत्रिपरिषषद् से शीघ्र सहमति लेनी थी लेकिन उन्होंने 26 जून 2009 को नियुक्ति के बाद 16 सितम्बर 2009 को यानि 80 दिन बाद सहमति की औपचारिकता पूर्ण की। लिहाजा, वह नियुक्ति अवैध मानी जानी चाहिए।
मंत्रिपरिषषद की सहमति ली थी
कोर्ट ने तमाम तर्को का श्रवण करने के बाद याचिकाकर्ता के आरोपों को नकारते हुए अपना आदेश पारित किया। जिसमें साफ किया गया कि भले ही बाद में सही लेकिन सीएम ने मंत्रीपरिषषद् की सहमति ले ली थी। इससे पूर्व सीजे व नेता प्रतिपक्ष की राय भी ली गई थी। इस लिहाज से लोकायुक्त की नियुक्ति प्रक्रिया पूर्णत: वैध है, अत: उसे चुनौती संबंधी याचिका खारिज की जाती है।
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