तकनीक के पंख लगाकर शब्दों की उड़ान भरेगी सांकेतिक भाषा
डा. बीआर रावल का कहना है कि शोध का 25 प्रतिशत काम पूरा हो गया है। अल्गोरिदम संकेतकों को आवाज में बदलने में सफल रहे हैं। इस तरह के करीब 50 शब्दों को आवाज में बदल भी दिया गया है और यह काम लगातार जारी है।
गजेंद्र विश्वकर्मा, इंदौर: मध्य प्रदेश के सबसे बड़े स्वायत्तशासी इंजीनियरिंग कालेज श्री गोविंदराम सेकसरिया प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान संस्थान (एसजीएसआइटीएस) के बायोमेडिकल इंजीनियरिंग संस्थान में मूक-बधिरों को राहत देने वाले एक महत्वपूर्ण शोध पर काम चल रहा है। इसमें साइन लैंग्वेज को आवाज में तब्दील किया जा रहा है। हर शब्द को यूनीक पहचान दी जा रही है और इनकी ई-लाइब्रेरी बनाई जा रही है। इसमें आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआइ) का उपयोग किया जा रहा है ताकि सर्वर में मौजूद लाइब्रेरी के साथ साफ्टवेयर को जोडऩे के बाद यह अपने आप काम करता रहे। सेंसर तकनीक को इससे जोड़ा जा रहा है। जब सेंसर युक्त डिवाइस पहनकर कोई सांकेतिक भाषा का उपयोग करेगा तो वह आवाज में बदल जाएगी। इससे सबसे ज्यादा फायदा मूक-बधिरों को होगा क्योंकि आम इंसान को भी वे अपनी बात आसानी से समझा सकेंगे।
एक वर्ष से चल रहा काम: विभाग प्रमुख डा. बीआर रावल ने बताया कि एक वर्ष से इस पर काम किया जा रहा है। शोध पूरा होने के बाद इसे उत्पाद में तब्दील करना आसान हो जाएगा। इसे भारत सरकार को सौंपा जाएगा ताकि बड़े पैमाने पर सरकारी दफ्तरों और अन्य निजी संस्थानों में इसकी सहायता से मूक-बधिर लोगों की सहायता की जा सके। उत्पाद तैयार होने के बाद इसमें इंटरनेट आफ थिंग्स (आइओटी), मशीन लर्निंग (एमएल) के जरिये और भी कई कामों में उपयोग किया जा सकेगा। शोध में कुछ एमटेक के विद्यार्थियों को भी सम्मिलित किया गया है।
क्या है एआइ : आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का मतलब होता है कृत्रिम तरीके से विकसित की गई बैद्धिक क्षमता। यह कंप्यूटर द्वारा नियंत्रित रोबोट या फिर मनुष्य की तरह इंटेलीजेंट तरीके से सोचने वाला साफ्टवेयर बनाने का एक तरीका है। यह इसके बारे में अध्ययन करता है कि मानव मस्तिष्क कैसे सोचता है और समस्या को हल करते समय कैसे सीखता है, कैसे निर्णय लेता है और कैसे काम करता है। इसके तहत मशीन के दिमाग को इतना उन्नत किया जाता है कि वह इंसानों की तरह सोच सकता है और काम कर सकता है।
ऐसे काम करेगी तकनीक--
- संस्थान सांकेतिक भाषा में उपयोग होने वाले अंग्रेजी के शब्दों को एकत्रित कर रहा है
- इसमें भारत ही नहीं विदेश में उपयोग होने वाले संकेतकों का भी ध्यान रखा जा रहा है
- इसकी ई-लाइब्रेरी तैयार की जा रही है। जब ज्यादातर शब्दों की पहचान कर ली जाएगी तो लाइब्रेरी को डाटा सर्वर में रखा जाएगा
- सेंसर और सांकेतिक भाषा की लाइब्रेरी को साफ्टवेयर जोड़ा जाएगा
- इसमें आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का भी उपयोग किया जाएगा
- दिव्यांग व्यक्ति के हाथ में एक इलेक्ट्रानिक बेल्ट पहनाई जाएगी
- हाथ और अंगुलियां मूवमेंट करेंगी, उसे सेंसर समझ लेगा और आवाज में बदल देगा
चुनौती भी है : बायोमेडिकल इंजीनियरिंग की असिस्टेंट प्रोफेसर गौरी गुप्ता का कहना है कि अंगुलियों के हर मूवमेंट को समझना और संकेतों को आवाज में बदलने के लिए साफ्टवेयर बनाने में भी चुनौती मिल रही है। इस शोध में कई साधनों का उपयोग और किया जा रहा है, लेकिन इसे शोध पूरा होने के पहले सार्वजनिक नहीं कर सकेंगे। संस्थान के निदेशक डा. आरके सक्सेना का कहना है कि जल्द ही संस्थान समाज के काम आने वाली तकनीक को उत्पाद के रूप में सामने लाएगा।
50 लाख रुपये होंगे खर्च : डा. बीआर रावल का कहना है कि कई दिव्यांग गूगल और अन्य माध्यमों से मोबाइल या कंप्यूटर पर टाइप कर टेक्स्ट टू वाइज आप्शन से दूसरों तक अपनी बात पहुंचा रहे हैं। इसे आगे बढ़ाते हुए हम ऐसा उपकरण तैयार कर रहे हैं जिसे हाथ में बेल्ट की तरह पहन सकते हैं। इससे सरकारी दफ्तर, अस्पताल, स्कूल, कालेज, बस, ट्रेन, हवाई यात्रा और विदेश यात्रा सहित कई काम आसान हो जाएंगे। शोध पर करीब 50 लाख रुपये खर्च होंगे। इसके लिए सरकार से फंडिंग के लिए कालेज ने आवेदन किया है।