Move to Jagran APP

राउंडटेबल कॉन्फ्रेंसः सालों से चले आ रहे एजुकेशन सिस्टम में करना होगा बदलाव

छात्रों में महत्वाकांक्षा बहुत बढ़ गई है और शैक्षणिक संस्थान भी ऐसे ही छात्र तैयार कर रहे हैं।

By Nandlal SharmaEdited By: Published: Sun, 29 Jul 2018 06:00 AM (IST)Updated: Thu, 02 Aug 2018 04:21 PM (IST)
राउंडटेबल कॉन्फ्रेंसः सालों से चले आ रहे एजुकेशन सिस्टम में करना होगा बदलाव

शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए सालों से चले आ रहे एजुकेशन सिस्टम में बदलाव की जरूरत है। कई वर्षों से स्कूलों के सिलेबस में जहां 2005 से बदलाव नहीं हुआ है तो कॉलेजों में वो चीजें पढ़ाई जा रही हैं, जो इंडस्ट्री और मार्केट में फिलहाल उपयोगी ही नहीं है। सरकारी स्कूलों में शिक्षा सुधार की बात तो की जाती है, लेकिन हकीकत यह है कि 1973 में शिक्षा भर्ती अधिनियम तो बना लेकिन उसके हिसाब से शिक्षकों की भर्ती एक बार भी नहीं हुई।

loksabha election banner

ये बातें शनिवार को माय सिटी माय प्राइड के तहत शिक्षा विषय पर हुई कॉन्फ्रेंस में शहर के प्रमुख शिक्षाविदों ने कही। उनका कहना था कि शिक्षक पढ़ाना शुरू करें तो क्लास रूम कभी खाली नहीं होगा। गुरुकुल की तर्ज पर स्कूल और कॉलेजों की शिक्षा व्यवस्था होनी चाहिए। इसके साथ छात्रों को महत्वाकांक्षी बनाने के बजाय उन्हें उनकी क्षमताओं के अनुरूप कोर्स चुनने का सुझाव दें। उन पर परिजन का किसी तरह का दबाव नहीं हो और उन्हें शैक्षणिक संस्थानों में किताबी ज्ञान के साथ मानवीय मूल्य भी पढ़ाए जाएं। ऐसा होने पर ही छात्रों का सर्वांगीण विकास होगा और बेहतर समाज तैयार होगा।

अपने शहर को शानदार बनाने की मुहिम में शामिल हों, यहां करें क्लिक और रेट करें अपनी सिटी 

शिक्षा की गुणवता बनाए रखना जरूरी
शहर के एजुकेशन सिस्टम के साथ यूजीसी के स्तर पर शिक्षा व्यवस्था को मजबूत बनाने में प्रो. डीएस कोठारी का अहम योगदान है। आज हमें शिक्षा के क्षेत्र में नई सुविधाएं बनानी होगी। कई स्कूल ऐसे हैं जहां प्राचार्य नहीं तो कहीं स्कूल में सुविधाएं नहीं। ऐसे में छात्र कैसे सीखेंगे। पहले उज्जैन के विक्रम विश्वविद्यालय और सागर के डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय में मिलने वाली बेहतर शिक्षा ही पहचान थी, लेकिन आज स्थिति कुछ और है। ऐसे में जरूरी है कि शिक्षा की गुणवत्ता को बरकरार रखा जाए।
- डॉ. पीके सेन, पूर्व डायरेक्टर, एसजीएसआईटीएस

बिना कॉलेज जाए डिग्री पाना चाहते हैं छात्र
शहर में कई सुविधा संपन्न बड़े स्कूल हैं तो कई सरकारी स्कूल ऐसे हैं, जहां बुनियादी सुविधाएं कम हैं। सरकारी स्कूलों में तो फिजिक्स और केमिस्ट्री जैसे विषयों के शिक्षक ही नहीं हैं। वर्तमान में छात्र कॉलेज जाए बगैर डिग्री पाना चाहते हैं। इंजीनियरिंग कॉलेजों में चार साल पहले तक 62 से 65 तक रिजल्ट था, लेकिन छात्रों का सीजीपीए 6.5 रहता था। अब इन कॉलेजों से 80 फीसदी छात्र पास हो रहे हैं, लेकिन सीजीपीए 4.5 आ गया है। इससे पता चलता है कि छात्र जो सीख रहे हैं, उसकी गुणवत्ता में कमी आई है।
- जेटी एंड्रयूज, प्रोफेसर, एसजीएसआईटीएस

छात्रों की मानसिकता में करना होगा सुधार
छात्रों में महत्वाकांक्षा बहुत बढ़ गई है और शैक्षणिक संस्थान भी ऐसे ही छात्र तैयार कर रहे हैं। छात्र पॉलिटेक्निक कोर्स के बजाय इंजीनियरिंग कॉलेजों की ओर भाग रहे हैं। जो छात्र एमबीए कर सकता है, वह कैट एक्जाम में उलझा रहता है। छात्र कठोर परिश्रम के बजाय छोटा रास्ता खोजने का प्रयास कर रहे हैं जो कि सही नहीं। हमें छात्रों की मानसिकता में सुधार करना होगा। छात्रों को बताना होगा कि आईआईटी के अलावा बीएससी एग्रीकल्चर जैसे कोर्स भी महत्वपूर्ण हैं और उस फील्ड में छात्र बेहतर करियर बना सकता है।
- स्वप्निल कोठारी, कुलाधिपति, रेनेसां विश्वविद्यालय

खुद की सोच बच्चों पर न थोपें
बेहतर रिजल्ट, ज्यादा फीस, अच्छा इन्फ्रास्ट्रक्चर अच्छे स्कूल का पैमाना नहीं हो सकते, बल्कि अच्छे स्कूल वो हैं, जहां से अच्छे इंसान निकलें। गुरुकुल शिक्षा प्रणाली की तरह बच्चे और शिक्षक के बीच बॉन्डिंग होना चाहिए। बच्चे की इंडिपेंडेंट थिंकिंग, क्रिएटिविटी के विकास के लिए उसे फ्रीडम होना चाहिए। कक्षा 7 तक बुक्स की जगह प्रोजेक्ट बेस लर्निंग हो। पैरेंट्स की वर्कशॉप की जानी चाहिए, जिससे वो बच्चों को सही तरह से डेवलप करें। बच्चों को अपने मन का काम करने दें, न कि खुद की सोच उन पर थोपें। टीचर्स को गहन ट्रेनिंग दी जानी चाहिए।
- पुनीता नेहरू, प्रिंसिपल, सत्य सांई स्कूल

जब शिक्षक पढ़ाएंगे ही नहीं तो छात्र क्लास में कैसे आएंगे
शिक्षा के विकास के लिए लोकलुभावन नीतियां बनाई जाती हैं, लेकिन उस पर अमल नहीं हुआ। शिक्षा के क्षेत्र में लड़कियों के मुकाबले लड़कों की भागीदारी बढ़ी है, लेकिन अब भी आसपास के जिलों और गांवों से परिजन अपनी बेटियों को असुरक्षा के भाव से इंदौर पढ़ने भेजने में कतराते हैं। हमें सूक्ष्म स्तर पर शिक्षा में सुधार करना होगा। जब शिक्षक और प्राचार्य ही क्लास में नहीं पढ़ाएंगे तो बच्चे कहां से आएंगे। आज जरूरत है कि स्किल से जुड़े कोर्स शुरू किए जाएं ताकि युवाओं को पढ़ाई के बाद नौकरी मिल सके।
- केएन चतुर्वेदी, अतिरिक्त संचालक, उच्च शिक्षा विभाग

झाबुआ जैसे अंचलों से आने वाले छात्रों को सिखाना है बहुत आसान
प्राइवेट स्कूल के छात्रों के मुकाबले झाबुआ और ग्रामीण अंचलों से आने वाले छात्रों में मानवीय वैल्यू ज्यादा होती है। ये छात्र विनम्र होते हैं और उन्हें सिखाना बहुत आसान होता है। शिक्षकों का कर्त्तव्य है कि वे अपने छात्रों को अच्छा पैकेज पाने के साथ विनम्र नागरिक बनाएं। छात्र जब कॉलेज में पहले दिन प्रवेश लेता है, तब ही उसे पता होना चाहिए कि वह किस करियर को चुन रहा है और उसके आगे का मुकाम क्या होगा। हमें संख्या के मुकाबले गुणवत्ता पर ध्यान देने की जरूरत है।
- प्रतिमा सेन, प्रोफेसर, स्कूल ऑफ फिजिक्स, देवी अहिल्या विश्वविद्यालय

छात्रों को अपनी राष्ट्रीयता ही पता नहीं तो ऐसा एजुकेशन सिस्टम किस काम का
शिक्षा की स्थिति इतनी खराब है कि एडमिशन फॉर्म में अधिकांश बच्चे अपनी राष्ट्रीयता भी सही नहीं लिख पाते। स्कूलों में बहुत विषमता है। कहीं फीस बहुत ज्यादा है, कहीं कम। यही हाल टीचर्स के वेतन में है। इससे बच्चों को सही शिक्षा नहीं मिल पाती। बच्चों के एडमिशन में पैरेंट्स की पढ़ाई के बजाय उनका वेतन पूछा जाता है। टीचर बनने के लिए नेट, स्लेट, पीएचडी और पेपर पब्लिश होने से ज्यादा जरूरी है उसमें पढ़ाने की क्षमता होना। हमें अपने देश की जरूरतों के हिसाब से बच्चों को रिसर्च करने के लिए प्रमोट करना चाहिए, जो उनके लिए कमाई का जरिया भी बन सके।
- डॉ ऋषिना नातू, प्रोफेसर, गुजराती साइंस कॉलेज

शिक्षा के क्षेत्र में नयापन लाने की जरूरत
पूरे देश की सर्वश्रेष्ठ चीजों को हमें स्थानीय स्तर पर लागू करना चाहिए। बच्चों की कोर्स बुक्स में शहर की संस्कृति, यहां के फ्रीडम फाइटर्स, यहां के खानपान, इंडस्ट्रीज को शामिल करना चाहिए, जिससे वे अपने शहर को जान पाएं। फील्ड विजिट को बढ़ावा देना चाहिए। पहले पूरी दुनिया के लोग हमारे यहां नालंदा विश्वविद्यालय में आते थे लेकिन अब हमारा स्तर बहुत गिर गया है। हमारे यहां के बच्चे बाहर पढ़कर विदेश में काम करना चाहते हैं, जबकि भूटान जैसे देश के बच्चे यहां पढ़कर भूटान में काम करना चाहते हैं। जब तक शिक्षा में इनोवेशन नहीं होंगे, सही शिक्षा प्रणाली विकसित नहीं होगी।
- निशा सिद्दीकी, असिस्टेंट प्रोफेसर, आईएमएस, डीएवीवी

मानवीय मूल्य के बगैर डिग्री का महत्व नहीं
हम छात्रों को खेल के जरिए एजुकेशन देने का प्रयास कर रहे हैं। आज छात्रों को किताबी ज्ञान के साथ उनके स्वभाव, दूसरे के प्रति प्रेम, सौहार्द, सहयोग और संवेदनशीलता होना चाहिए। स्कूलों के पाठ्यक्रम में स्किल और वोकेशनल को भी जोड़ा जाए। छात्र में मानवीय मूल्य ही नहीं है तो उसकी डिग्री अनुपयोगी ही होगी।
- ललिता शर्मा, डायरेक्टर, आभाकुंज वेलफेयर सोसायटी

शिक्षक पढ़ाने के बजाय दूसरे सरकारी विभागों में कर रहे काम
कई शिक्षक पढ़ाने की मूल जिम्मेदारी के बजाय सरकारी विभागों में बीएलओ और अन्य काम देख रहे हैं। 1986 में नई शिक्षा नीति आई और उसके बाद से आज तक कोई नीति नहीं बनी। सरकारी स्कूलों में छात्रों की उपस्थित सुनिश्चित करना जरूरी है। इसके लिए एम शिक्षा की व्यवस्था का शिक्षकों ने विरोध किया, लेकिन यह व्यवस्था ही एजुकेशन सिस्टम को बेहतर बनाएगी।
- डॉ. कमलकिशोर पांडेय, पूर्व संयुक्त संचालक, स्कूल शिक्षा विभाग

छात्र पूछते हैं कि कोर्स करने पर पैकेज कितना मिलेगा
प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेजों में शिक्षा की गुणवत्ता का स्तर बेहतर नहीं है, इसके सुधार के लिए प्रयास किए जाना चाहिए। आज हालात ये हैं कि 6 हजार रुपये में इंजीनियरिंग कॉलेज में एमई और एमटेक किए शिक्षक पढ़ा रहे हैं। राज्य की शिक्षा व्यवस्था कुछ ऐसे लोगों के हाथों में आ गई थी, जिन्होंने धड़ल्ले से इंजीनियरिंग कॉलेजों में एमई एमटेक जैसे कोर्स शुरू करवा दिए, जबकि इन कॉलेजों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने वाले शिक्षक ही नहीं थे। आज के छात्र एडमिशन के दौरान हमसे पूछते हैं कि इस कोर्स को करने पर पैकेज कितना मिलेगा। इस तरह की सोच रखना सही नहीं है।
- बीएम शर्मा, प्रभारी डायरेक्टर, एसजीएसआईटीएस

शिक्षा की पॉलिसी और एजुकेशन सिस्टम में हो एकरूपता
इंदौर शहर एजुकेशन हब बन चुका है और यहां पर स्कूल-कॉलेज व बेहतर कोचिंग संस्थान उपलब्ध हैं। इसी वजह से दूसरे शहरों से छात्र यहां पढ़ने के लिए आते हैं। सरकारी स्कूलों की व्यवस्था में तभी सुधार होगा जब यह प्रावधान किया जाए कि सरकारी नौकरी उसी को मिलेगी, जिसके बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ेंगे। पूरे प्रदेश में यूनिफाइड एजुकेशन सिस्टम और एक पॉलिसी बनाने की जरूरत है। यदि तुष्टिकरण होगा तो शिक्षा के क्षेत्र में सुधार होना संभव नहीं।
- डॉ. रमेश मंगल, वरिष्ठ शिक्षाविद्

करियर काउंसलिंग को पाठ्यक्रम में शामिल करें
गोमा की फेल और मिल एरिया के छात्र पढ़ते नहीं थे और अन्य गतिविधियों में लगे रहते थे। वहां पर शैक्षणिक संस्थान खोलने के बाद अब इस क्षेत्र के बच्चे भी पढ़ रहे हैं और कई नए-नए क्षेत्रों में करियर के मुकाम बना रहे हैं। वर्तमान एजुकेशन सिस्टम में बदलाव की जरूरत है। पाठ्यक्रमों में करियर काउंसलिंग को भी शामिल किया जाए। इससे छात्र पढ़ते समय ही तय कर सकेंगे कि वे भविष्य में किस क्षेत्र में करियर बनाएंगे।
- राजू सैनी, स्टेशन मास्टर और शिक्षाविद्

टीचर बनने के लिए भी हो 4 साल का कोर्स
स्कूलों के करिकुलम में वर्ष 2005 के बाद से कोई परिवर्तन नहीं हुआ। पैरेंट्स डेढ़ साल के बच्चे को स्कूल भेज रहे हैं, छोटे बच्चों को एक साथ कई एक्टिविटी क्लासेस भेजा जा रहा है, जिससे उन पर प्रेशर बढ़ रहा है। स्कूलों में भी स्किल डेवलपमेंट होना चाहिए। बच्चे जो पढ़ना चाहते हैं, उसकी उसे स्वतंत्रता होनी चाहिए।
- संगीता उप्पल प्राचार्य मिलेनियम इंटरनेशनल स्कूल

अपने शहर को शानदार बनाने की मुहिम में शामिल हों, यहां करें क्लिक और रेट करें अपनी सिटी 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.