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इंदौरः उद्योगों में हो रहे काम को कॉलेजों में पढ़ाया जाए, शिक्षा की गुणवत्ता बेहतर होगी

इंदौर में पिछले वर्षों से शिक्षा का स्तर बेहतर रहा है, इसी वजह से इस शहर की एजुकेशन हब के रूप में भी पहचान है।

By Nandlal SharmaEdited By: Published: Thu, 26 Jul 2018 06:00 AM (IST)Updated: Thu, 26 Jul 2018 11:30 AM (IST)
इंदौरः उद्योगों में हो रहे काम को कॉलेजों में पढ़ाया जाए, शिक्षा की गुणवत्ता बेहतर होगी

पिछले 10 साल में उच्च शिक्षा में स्टूडेंट का रुझान परंपरागत पाठ्यक्रमों के मुकाबले रोजगारोन्मुखी पाठयक्रमों की ओर बढ़ा है। अब शैक्षणिक संस्थानों ने भी अपने सिलेबस में ई-कॉमर्स, फैशन डिजाइनिंग, साइंटिफिक एग्रीकल्चर, बॉयोटेक्नोलॉजी और लॉ जैसे नए सेक्टर को जोड़ा है। भारत का मध्यम वर्ग चाहता है कि उनके बच्चे ऐसी शिक्षा पाएं जो रोजगार दे सके। शिक्षा को अब आत्मनिर्भरता के रूप में जाना जाता है।

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इंदौर में पिछले वर्षों से शिक्षा का स्तर बेहतर रहा है, इसी वजह से इस शहर की एजुकेशन हब के रूप में भी पहचान है। इंदौर के कोचिंग और शैक्षणिक संस्थानों में पूरे देश से बच्चे पढ़ने के लिए आते हैं। छात्र अब इंदौर में ही रहकर आईआईटी, इंजीनियरिंग, कॉमर्स, मेडिकल मैनेजमेंट और लॉ की कोचिंग प्राप्त कर रहे हैं। इन संस्थानों से अब हजारों छात्रों का प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थानों में चयन हुआ है। छात्रों का स्किल के प्रति भी रुझान बढ़ रहा है।

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अब एजुकेशन के साथ इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी, सॉफ्ट स्किल पर काम हो रहा है। पहले इंदौर में देवी अहिल्या विश्वविद्यालय ही था, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में शहर में प्राइवेट विश्वविद्यालय की संख्या बढ़ी है। प्राइवेट विश्वविद्यालयों पर सबसे ज्यादा जिम्मेदारी यह है कि वे छात्रों पर फोकस करें। 

इसके साथ ही उनसे उम्मीद है कि वे हर छात्र पर ध्यान दें और जो कोर्स परंपरागत विश्वविद्यालय में नहीं हों, वह पढ़ाएं। अगले 10 वर्षों में शहर के कॉलेज और विश्वविद्यालय का अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय से टाईअप होगा। छात्र एक साल इंदौर में और एक साल दूसरे देश में पढ़ने जाएंगे और नौकरी तीसरे देश में करेंगे। आने वाले समय में यह भी प्रयोग देखने को मिलेगा कि छात्र इंदौर में पढ़ाई कर अपने गांव में जाकर डेयरी फार्मिंग जैसे काम करेगा।

वर्तमान में कॉलेजों में सालों से चला आ रहा सिलेबस पढ़ाया जा रहा है। कॉलेज में जो पढ़ाया जाता है और इंडस्ट्री में जो काम होता है, उसमें समानता नहीं है। ऐसे में जरूरी है कि इंडस्ट्री में जो काम हो रहा है, वही कॉलेजों में पढ़ाया जाए। इसके लिए सभी कॉलेज और विश्वविद्यालयों को अपने सिलेबस और करिकुलम को अपडेट करना होगा। स्कूली स्तर पर छात्रों को बेहतर शिक्षा देने के लिए स्कूलों में भाषा और एटिट्यूड पर काम किया जाना चाहिए।

स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों की जिज्ञासा जगाई जाए और उनकी सीखने की प्रवृत्ति बढ़ाई जाए। छात्रों को अपने घरों में जो सुविधाएं मिल रही हैं, उससे उन्हें बाहर लाने के प्रयास किए जाना चाहिए। इसके लिए स्कूली छात्रों को सोशल वर्क करवाए जाएं, छात्रों को गांव में ले जाएं और उन्हें वहां भारत की असली तस्वीर दिखाई जाए।

सरकारी स्कूलों में भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिले, इसके लिए भी प्रयास किया जाना चाहिए। जब तक सरकारी स्कूलों में जवाबदेही तय नहीं होगी, वहां के स्ट्रक्चर में सुधार नहीं होगा। सरकारी स्कूलों में शिक्षक, प्राचार्य, जिला शिक्षा अधिकारी सभी की जिम्मेदारी तय होना चाहिए। अभी अच्छे शिक्षक प्राइवेट स्कूलों में चले जाते हैं, वे सरकारी स्कूल में पढ़ाने के लिए नहीं जाना चाहते।

सरकार को कोशिश करना चाहिए कि अच्छे शिक्षक भी सरकारी स्कूल में जाएं। प्राइवेट स्कूल का शिक्षक सरकारी स्कूल में भी जाकर पढ़ा सके, इसके लिए सरकार को कोई योजना बनानी चाहिए। सरकार को मेडिकल कॉलेज खोलने के नियमों में भी बदलाव करना चाहिए। जिस जिले की आबादी 40 लाख हो, वहां पर सरकारी या प्राइवेट मेडिकल कॉलेज खोलना चाहिए। इससे वहां के छात्रों को तो लाभ मिलेगा, साथ ही उस क्षेत्र में मेडिकल सुविधाओं में बढ़ोतरी होगी।

- स्वप्निल कोठारी, कुलाधिपति, रेनेसां विश्वविद्यालय

 

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