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ऐसे बना इंदौर स्‍वच्‍छता में नंबर 1 शहर, इसके पीछे हैं 'मशीन सिंह'

दो मर्तबा स्वच्छता का खिताब दिलाने वाले तत्कालीन निगमायुक्त सिंह अब उज्जैन कलेक्टर बन चुके है।

By Krishan KumarEdited By: Published: Tue, 17 Jul 2018 06:00 AM (IST)Updated: Tue, 17 Jul 2018 06:00 AM (IST)
ऐसे बना इंदौर स्‍वच्‍छता में नंबर 1 शहर, इसके पीछे हैं 'मशीन सिंह'

इंदौर को स्वच्छता के मामले में नई पहचान दिलाने में शहरवासियों के अलावा उन अफसरों की भूमिका को भी नकारा नहीं जा सकता है, जिन्होंने रात-दिन मेहनत की और लगातार दो बार शहर को स्वच्छता में नंबर वन रखा। तीन साल पहले निगम में काबिज होने वाली परिषद ने शहर की सफाई-व्यवस्था को बेहतर बनाने पर फोकस किया था। तब पता नहीं था कि निगम सफाई में इतना कुछ कर जाएगा कि देश का कोई दूसरे शहर का नगरीय निकाय उसे टक्कर नहीं दे पाएगा।

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सवा तीन साल पहले एकेवीएन की जिम्मेदारी संभाल रहे वर्ष 1997 की बैच के राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी मनीष सिंह का तबादला नगर निगम में किया और बतौर निगमायुक्त मनीष सिंह ने अपने कार्यकाल में 'मशीन सिंह" की तरह काम किया। देर रात सफाई-व्यवस्था पर निगरानी हो या अलसुबह खुले में शौच से शहर को मुक्त करने के लिए बस्तियों का दौरा। सिंह अपनी टीम के साथ कंधे से कंधा मिलाकर नजर आते थे।

सफाई में लगातार की गई मेहनत का परिणाम यह रहा कि वर्ष 2017 में इंदौर स्वच्छता रैंकिंग में पहले पायदान पर आ गया। शहर की मदद से अफसरों ने दोबारा इस खिताब को बरकरार रखने की ठानी, लेकिन राह आसान नहीं थी क्योंकि पहली बार तो सिर्फ 400 शहर स्वच्छता रैंकिंग में शामिल थे, लेकिन दूसरी बार शहरों की संख्या 4 हजार से अधिक थी, लेकिन दूसरी बार भी शहर सफाई में नंबर वन आया।

पिछले दिनों स्वच्छता अवॉर्ड देने के लिए इंदौर में कार्यक्रम आयोजित किया गया तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह कहा कि पहले वे इंदौर आते थे, लेकिन इस बार उन्हें इंदौर आना पड़ा क्योंकि शहरवासियों ने स्वच्छता को जनआंदोलन बनाकर देश में एक मिसाल कायम की। आज शहर जितना साफ दिखाई देता है, चार साल पहले ऐसा नहीं था तब सफाई की स्थिति बेहद खराब थी। सफाई के मामले में नगर निगम को हाई कोर्ट कई बार फटकार भी लगाती रहती थी। कचरा उठाने का काम निजी कंपनी को निगम ने सौंप रखा था, कंपनी ठीक से काम नहीं कर पा रही थी।

ज्यादातर सफाईकर्मी ड्यूटी से गैरहाजिर रहा करते थे लेकिन वर्ष 2016 में सफाई का ढर्रा धीरे-धीरे बदलने लगा। सख्ती शुरू हुई और सफाईकर्मियों को काम पर आने के लिए प्रेरित किया गया। प्रयोग के तौर पर कुछ वार्डों में डोर टू डोर सफाई व्यवस्था निगमायुक्त सिंह ने शुरू कराई और फिर धीरे-धीरे 85 वार्डों में उसे लागू कर दिया।

शहर में बने पुराने सुविधागृहों को ठीक किया गया और नए सुविधागृहों का निर्माण भी हुआ। जब शहर का शत प्रतिशत कचरा डोर टू डोर उठने लगा तो फिर धीरे धीरे शहर से कचरा पेटियां हटाने का काम शुरू हुआ और चार महीने के भीतर ही शहर कचरा पेटी से भी मुक्त हो गया। इसके बाद सिंह और उनकी टीम ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और लगातार सफाई की दिशा में नए काम शुरू किए गए।

खुले में कचरा डालने वालों से लेकर सड़क पर थूकने वालों पर स्पॉट फाइन कर सख्ती बरती गई तो बैकलेन भी साफ कर उन्हें गंदगी से मुक्त किया गया। नालों से भी गाद निकालने का काम युद्ध स्तर पर शुरू हो गया और शहर साफ नजर आने लगा। मेहनत का परिणाम यह रहा कि स्वच्छता रैकिंग में पहले नंबर के रूप में वर्ष 2017 में इंदौर आ गया और यह सिलसिला इस साल भी कायम रहा।

दो मर्तबा स्वच्छता का खिताब दिलाने वाले तत्कालीन निगमायुक्त सिंह अब उज्जैन कलेक्टर बन चुके है लेकिन शहर में सफाई का जो सिस्टम उन्होंने तैयार कराया, वह ठीक तरीके से काम कर रहा है क्योंकि स्वच्छता अब शहरवासियों की आदत बन चुकी है। अब स्वच्छता के साथ शहर को सुंदर बनाने पर भी जोर दिया जा रहा है और इंदौर शहर तीसरी मर्तबा फिर सफाई में नंबर वन बने रहने की दौड़ में सबसे आगे है।


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