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एक इंदौरी अफसर ने विद्यादान के जरिए खड़ी की स्वयंसेवी शिक्षकों की फौज

पहले साल में इंदौर के लिए शुरू की गई ये योजना बाद के वर्षों में संभाग के सभी जिलों में लागू की गई। वालंटियर शिक्षक अपनी सुविधा अनुसार तय दिन और समय पर शासकीय स्कूल जाते और बच्चों को पढ़ाते।

By Nandlal SharmaEdited By: Published: Tue, 24 Jul 2018 06:00 AM (IST)Updated: Tue, 24 Jul 2018 06:00 AM (IST)
एक इंदौरी अफसर ने विद्यादान के जरिए खड़ी की स्वयंसेवी शिक्षकों की फौज

एक सरकारी अफसर जब अपनी नौकरी की तय जिम्मेदारी से हटकर कुछ रचनात्मक करने के लिए गंभीरता से सोचता और करता है तो समाज में बड़ा बदलाव ला सकता है। ऐसा बदलाव जिससे जन्म लेता है, विद्यादान जैसा अभियान। एक ऐसा अभियान जो शिक्षा के पेशे को नौकरी से इतर मिशन के स्तर पर ले जाता है। तीन साल पहले इंदौर में यही हुआ जिसने शिक्षा के क्षेत्र में सरकारी सिस्टम से हटकर शासकीय स्कूलों में शिक्षकों की स्वयंसेवी फौज खड़ी कर दी।

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इस फौज के सेनापति बने संभागायुक्त संजय दुबे। उन्होंने विद्यादान योजना के जरिये शहर के सेवानिवृत्त अधिकारी, वकील, प्रोफेसर, डॉक्टर, बिजनेसमैन, साहित्यकार तो ठीक, उच्च शिक्षित युवाओं को भी जोड़ लिया।

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विद्यादान योजना दिसंबर 2015 में शुरू की गई थी। योजना में सूचना तकनीक का बेहतर इस्तेमाल करते हुए वेबसाइट और मोबाइल ऐप तैयार किया गया। इसके बाद शहर के ऐसे उच्च शिक्षित प्रबुद्ध जनों से आह्वान किया गया कि वे अपनी सुविधानुसार अपने घर के पास के शासकीय स्कूल में सप्ताह में दो घंटे बच्चों को पढ़ाएं। स्कूल में कक्षा, विषय और समय का चयन भी वे अपनी पसंद के मुताबिक करें।

पढ़ाने के इच्छुक लोगों के लिए वेबसाइट और मोबाइल ऐप पर अपने पूरे विवरण के साथ रजिस्ट्रेशन की सुविधा दी गई। इसमें उनका नाम, पता, फोन नंबर, शिक्षा, प्रोफेशन आदि के बारे में डिटेल देना था। इन शिक्षकों को स्वयंसेवी (वालंटियर) शिक्षक नाम दिया गया, क्योंकि पढ़ाने के बदले उनको कोई पारिश्रमिक या वेतन नहीं दिया जाना था।

इसके बावजूद नि:शुल्क पढ़ाने के लिए कई ऐसे लोगों ने रजिस्ट्रेशन कराया जो डॉक्टर, प्रोफेसर, इंजीनियर, बड़ी कंपनियों में मैनेजर थे। सेवानिवृत्त अधिकारी, जज और उच्च शिक्षित गृहणियां भी पढ़ाने के लिए आगे आईं। यही नहीं विद्यादान के इस स्वयंसेवी अभियान से एमबीए, एमटेक, बीटेक, एमबीबीएस, एमसीए, एमएससी, एलएलबी किए हुए युवा भी जुड़े।

पहले साल में इंदौर के लिए शुरू की गई ये योजना बाद के वर्षों में संभाग के सभी जिलों में लागू की गई। वालंटियर शिक्षक अपनी सुविधा अनुसार तय दिन और समय पर शासकीय स्कूल जाते और बच्चों को पढ़ाते।

तत्कालीन संभागयुक्त संजय दुबे द्वारा विद्यादान के रूप में रोपा गया ये पौधा तीन साल पूरे कर चुका है। पहले साल में 734 वालंटियर शिक्षकों ने रजिस्ट्रेशन कर पढ़ाया तो दूसरे साल ये संख्या बढ़कर 1251 पर जा पहुंची। तीसरे साल संख्या कम हुई लेकिन लोगों में पढ़ाने का जज्बा कम नहीं हुआ। इस पौधे को रोपने वाले दुबे अब मध्यप्रदेश शासन में ही प्रमुख सचिव श्रम हैं।

उन्होंने समय पर स्कूल न आने वाले शिक्षकों पर निगरानी का ई-अटेंडेंस सिस्टम भी शुरू किया, जिसे पूरे प्रदेश में लागू किया गया। दूसरी तरफ अंगदान को बढ़ावा देने में भी महती भूमिका अदा की जिसके कारण अंगदान के क्षेत्र में इंदौर का देशभर में नाम हुआ।

दुबे कहते हैं, एकमात्र शिक्षा ही है जो पीढ़ियों को गरीबी और बेरोजगारी से बचा सकती है। जीवन स्तर ऊंचा उठाने के लिए भी शिक्षा उतनी ही जरूरी है। शिक्षकों में कमिटमेंट की कमी है। वे पढ़ाने को सेवा या मिशन न मानते हुए केवल नौकरी मानते हैं। मुझे लगता है, एक सरकारी बाबू यदि ठीक से काम नहीं करेगा तो एक ही व्यक्ति का नुकसान कर सकता है, लेकिन शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में अपने पेशे के साथ ईमानदार न रहने वाले शिक्षक और डॉक्टर पूरी पीढ़ी का नुकसान करेंगे।

इन विसंगतियों के बावजूद समाज में अच्छी बात ये है कि अभिभावक अपने बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं, उनके भविष्य को लेकर चिंतित हैं। कमिश्नर रहते हुए जिलों में मेरा ऐसा कोई दौरा नहीं रहा, जब मैंने किसी शासकीय स्कूल का निरीक्षण न किया हो।

बहरहाल विद्यादान एक दिन में आया आइडिया नहीं है। यह सोच-समझकर लिया गया निर्णय है। विद्यादान योजना से प्रेरित होकर पंजाब के एडिशनल चीफ सेक्रेटरी होम भी रिटायरमेंट के बाद यही करने वाले हैं। उन्होंने वहां अधिकारियों का एक ग्रुप बना लिया है। अब मैं भोपाल में हूं और कोशिश करूंगा कि यहां भी इस अभियान को शुरू किया जाए।

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