स्वच्छता के बाद अब इंदौर का लक्ष्य सुंदरता में भी नं-1 बनना
गोपाल जगताप ने देखा कि शहर में कचरा प्रबंधन के पर्याप्त इंतजाम नहीं हैं और इस क्षेत्र में सुधार की बहुत ज्यादा संभावना है।
एक आम आदमी अपने दिन की शुरुआत देव दर्शन से करता है, लेकिन अगर कोई व्यक्ति दिन की शुरुआत कचरा दर्शन से करता हो, तो आप उसे क्या कहेंगे। इस व्यक्ति पर सफाई का जुनून इस तरह हावी है कि वह दिनभर कचरे में ही बिताता है। कचरा, कचरा और सिर्फ कचरा, इसके निबटान और प्रबंधन को लेकर यह व्यक्ति इतनी प्रसिद्धि पा चुका है कि देश भर के शहरों से उसे इसके लिए बुलाया जाने लगा है।
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दूसरे शहर भी चाहते हैं कि वे भी इंदौर की तरह सफाई में नंबर वन बनें। हम बात कर रहे हैं गोपाल जगताप की। करीब 15 साल पहले हरदा जिले के टिमरनी से पढ़ाई के सिलसिले में इंदौर आए जगताप पढ़ाई के बाद शहर में ही बस गए। 2005 में उन्होंने अपनी पहली नौकरी बतौर प्रोजेक्ट असिस्टेंट से शुरू की। उनके जिम्मे गरीब बस्तियों में टॉयलेट्स बनवाने और उनकी निगरानी का काम था। काम के दौरान ही जगताप रैकपीकर्स (कचरा उठाने वाले) की समस्या से रूबरू हुए।
उन्होंने देखा कि शहर में कचरा प्रबंधन के पर्याप्त इंतजाम नहीं हैं और इस क्षेत्र में सुधार की बहुत ज्यादा संभावना है। उन्होंने देखा कि शहर में सूखा और गीला कचरा अलग-अलग करने का कोई इंतजाम नहीं है। जब तक कचरा अलग-अलग नहीं होगा उसका निबटान करना बहुत मुश्किल है।
उन्होंने कचरा प्रबंधन को लेकर नई-नई योजनाओं पर काम शुरू किया। जगताप ने रहवासी संघों के पदाधिकारियों से मिलकर शहर को स्वच्छ बनाने और कचरे के बेहतर प्रबंधन पर काम शुरू किया। शुरुआत में लोगों ने उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन लगातार किए जाने वाले प्रयास आखिर रंग लाने लगे। महालक्ष्मी नगर में 200 घरों से कचरा लेकर कंपोस्ट बनाने का काम शुरू किया। कुछ ही दिन में इसके परिणाम नजर आने लगे।
इसके बाद यह सिलसिला आसपास की कॉलोनियों में भी शुरू हो गया। इसके बाद कंपोस्ट यूनिट खजराना मंदिर पहुंच गया। यहां निकलने वाले कचरे से बने खाद को लोगों का अच्छा प्रतिसाद मिला। शहरवासियों को स्वच्छता और कचरा निबटान के लिए प्रेरित करने के लिए जगताप की संस्था बेसिक्स ने 'कचरा दान करो' कल्याण स्लोगन के साथ लोगों को प्रेरित करने का काम शुरू किया।
उन्होंने लोगों को समझाया कि कैसे वे गीला और सूखा कचरा अलग-अलग कर सकते हैं। इसके क्या फायदे हैं। असर यह हुआ कि छोटे अभियान के रूप में शुरू हुई मुहिम रंग दिखाने लगी। नगर निगम ने भी इस अभियान को अपना साथ दिया। धीरे-धीरे शहर में गीले कचरे से तो खाद बनने लगी, लेकिन सूखे कचरे का निबटान अब भी एक समस्या थी।
जगताप की संस्था ने इसका भी रास्ता निकाल लिया। उन्होंने सूखे कचरे को कबाड़ियों को देना शुरू किया और इससे होने वाली कमाई को वे स्वच्छता अभियान में लगाने लगे। 2015 में नगर निगम के साथ मिलकर बेसिक्स ने शहर में बड़े प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया। 3 वॉर्डों से शुरू हुआ यह काम धीरे-धीरे सभी वॉर्डों तक पहुंच गया। इसके बाद शुरू हुई शहर में डिब्बा गैंग को सड़क पर उतारने की।
हर सुबह जगताप और उनकी टीम सड़क पर उतरकर लोगों को खुले में शौच से रोकने लगी। जगताप बताते हैं रोज सुबह साढ़े 6 बजे वे फिल्ड पर आ जाते हैं। कचरा प्रबंधन और इसका बेहतर निबटान ही उन्होंने अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया है।
शुरुआत में लोगों को गीला-सूखा कचरा अलग-अलग करने के बारे में समझाना बहुत मुश्किल था, लेकिन अब ऐसा नहीं है। बकौल जगताप फिलहाल 400 से ज्यादा लोगों की टीम कचरा प्रबंधन पर काम कर रही है। स्वच्छता में हम पहले नंबर पर आ चुके हैं अब हमारा लक्ष्य सुंदरता में पहले स्थान पर आना है।
गोपाल जगताप
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