चंबल में नशे का जवाब श्वेत क्रांति से दिया, पहले शराब बेचते थे अब दूध
उमरियापुरा निवासी सीताबाई कुशवाह ने बताया कि घर के पुरुष नशे के कारण कामकाज नहीं करते। लगता था जीवन बर्बाद है लेकिन हमने डेरी का काम शुरू किया। डेरी उत्पादों की मांग हर सीजन में रहती है इसलिए एक भी दिन बेरोजगार जैसा महसूस नहीं हुआ।
हरिओम गौड़, मुरैनाः कभी डकैतों के लिए कुख्यात रहे चंबल के एक गांव की छवि महिलाओं ने बदल दी है। मुरैना जिला मुख्यालय से 26 किलोमीटर दूर अंबाह तहसील का उमरियापुरा गांव। 15 वर्ष पहले तक यह गांव अवैध शराब व नशे का अड्डा था। हर छोटी-बड़ी दुकान से लेकर हाथ ठेलों पर अवैध शराब बिकती थी। शराब के कारण कई लोगों की असमय मौत हो गई। घरों में विवाद बढ़ने लगे और नशे के कारण लिए गए कर्ज में जमीन से लेकर महिलाओं के जेवर तक बिकने लग गए।
इस बदहाली को देखकर वर्ष 2007 में गांव की महिलाओं ने नशे के कारण कंगाल हुए परिवारों की बागडोर अपने हाथ ली। महिलाओं ने रोजगार के लिए गाय-भैंसों का दूध बेचकर परिवार चलाने की योजना बनाई। इसमें राजोबाई कुशवाह ने पहल की और नारायणी, सीता, ओमवती, कमलेश, रामभूली, रजश्री, गुड़िया, लक्ष्मी, मिथलेश, ममता, रामरथी सहित 22 महिलाओं का एक समूह बनाया। इन 22 महिलाओं ने घर में एक से लेकर तीन-तीन मवेशी पाले और उनका दूध मुरैना शहर में बेचना शुरू किया। आज इस गांव का हर परिवार डेरी कारोबार से भरपूर रोजगार पा रहा है।
ऐसे बदल गई पूरे गांव की तकदीर
54 परिवार वाले उमरियापुरा गांव की आबादी लगभग 970 है। महिलाओं के इस प्रयास के बाद 54 घरों के आगे 325 से ज्यादा भैंस व 60 गाय बंधी हैं। अब इस गांव में हर दिन 550 से 600 लीटर दूध उत्पादन होता है, जिससे 54 परिवारों को प्रतिदिन 27,000 रुपये और महीने में आठ लाख रुपये से ज्यादा की आय हो रही है। दूध बेचकर रामभूली, गुड्डी, सरोज आदि कई महिलाओं ने अपने गिरवी रखे जेवर व जमीन भी मुक्त करा ली। कच्चे घरों की जगह पक्के मकान बन गए हैं। हर परिवार में दोपहिया वाहन हैं। कई लोगों के पास चार पहिया वाहन भी हो गए हैं। महिलाएं अब अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए अंबाह, मुरैना से लेकर ग्वालियर तक भेज रही हैं।
शराब छुड़ाने के लिए भी चलाई अनूठी मुहिम
22 महिलाओं के इस समूह ने गाय-भैंस पालन के साथ ही गांव को शराब मुक्त करने की अनूठी मुहिम भी चलाई थी। शराब पीने पर इन महिलाओं ने अपने पति व बेटों तक को पुलिस के हवाले करना शुरू किया। घरों से शुरू हुआ यह विरोध गांव तक फैलाया और गांव में शराब की बिक्री करने वाले तस्करों के खिलाफ लठ उठा लिए। जहां भी शराब बिकती, उस दुकान को तोड़ देतीं। शराब लेकर आने वाले तस्करों के वाहनों को घेरकर उन्हें पुलिस के हवाले करना शुरू किया। यह क्रम कई महीनों चला और गांव में शराब आना व बिकना बंद हो गई, इसके बाद पीने वाले भी कम होते गए। आज इस गांव में 90 प्रतिशत लोग शराब पीना छोड़ चुके हैं, अवैध शराब का कारोबार भी बंद हो गया है।
पहले शराब बेचते थे अब दूध
महिलाओं की इस श्वेत क्रांति का असर गांव के पुरुषों पर ऐसा पड़ा है कि अधिकांश परिवार के पुरुष दूध का कारोबार कर रहे हैं। इस गांव के रामरज कुशवाह न सिर्फ शराब पीते थे, बल्कि अवैध शराब को बेचने के लिए दुकान भी लगा रखी थी। महिलाओं के विरोध के बाद रामरज की शराब की दुकान बंद हुई और खुद के घर में चार भैंसें बांधीं। शराब बेचने वाले रामरज अब हर रोज 35 से 40 लीटर दूध बेचकर महीने का 25 से 28 हजार रुपये कमा रहे हैं, इतनी कमाई शराब ब्किरी से भी नहीं होती थी। वहीं कंडेल कुशवाह कहते हैं कि वह करीब 25 वर्ष से शराब पी रहे थे। शराब के लिए उधारी तक ली। घर का सामान बेचकर उधारी चुकाई, लेकिन महिलाओं के आंदोलन ने उनकी शराब छुड़ा दी और 12 साल से शराब को हाथ नहीं लगाया।
शराबबंदी मुहिम की मुखिया राजो कुशवाह ने बताया कि शराब के कारण पूरा गांव बर्बाद हो चुका था, कई लोगों की असमय मौत हो गई। नशे के लिए घर के पुरुष ही सामान चुराकर ले जाते। कई ने तो महिलाओं के जेवर व जमीन तक गिरवी रख दी। यह देखा नहीं गया तो इसलिए महिलाओं को साथ जोड़ा और गांव की सड़क से लेकर थाने तक गए। आज हमारे गांव के हर घर की महिला दूध का व्यवसाय कर रही है। अधिकांश लोग शराब छोड़ चुके हैं।
उमरियापुरा निवासी सीताबाई कुशवाह ने बताया कि घर के पुरुष नशे के कारण कामकाज नहीं करते। लगता था जीवन बर्बाद है, लेकिन हमने डेरी का काम शुरू किया। डेरी उत्पादों की मांग हर सीजन में रहती है, इसलिए एक भी दिन बेरोजगार जैसा महसूस नहीं हुआ। मुनाफा होने लगा तो गाय-भैंस गांव में बढ़ने लगीं। अब हर परिवार के बच्चे पढ़ रहे हैं, गांव के पुरुषों को भी रोजगार मिला है, उनका शराब से भी मोहभंग हो गया।