Water Conservation: कल के लिए जल बचाने को नवाचार से खुल रहे द्वार, चट्टानों का सीना चीर करेंगे जल संरक्षण
Water Conservation जल ही जीवन है यह विचार समय के साथ महत्वपूर्ण होता जा रहा है। कारण है धरती के नीचे कम होता जल भंडार। देश में प्रयोग योग्य जल की बढ़ती कमी से समस्या विकराल हो रही है।
प्रवीण मालवीय, भोपाल: जल संरक्षण के लिए किए जा रहे विभिन्न उपायों के बीच भोपाल में एक नवाचार की तैयारी है। शहर के मध्य में स्थित राष्ट्रीय उद्यान, वन विहार में छतों पर लगने वाले रूफ वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम से आगे बढ़कर सरफेस वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाया जा रहा है। इस प्रयोग से सतह के जल को एकत्र कर उसे चट्टानों के बीच की पाकेट्स (संग्रहण केंद्र) में एकत्र किया जाएगा। इसके लिए उद्यान में स्थित चट्टानों में 1,500 फीट की टेलीस्कोपिक बोरिंग कराकर इन पाकेट्स तक पानी पहुंचाने के लिए रास्ता बनाया जाएगा। इसके अलावा पानी को रोकने के लिए स्टाप डैम भी बनाया जाएगा।
विशेषज्ञों ने किया सर्वे: वन विहार में बनाई जाने वालीं दोनों संरचनाओं से साढ़े चार वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में बरसने वाले वर्षा जल को संग्रहीत किया जा सकेगा। राष्ट्रीय उद्यान में सरफेस वाटर हार्वेस्टिंग पर काम कर रहे मध्य प्रदेश जल एवं भूमि प्रबंधन संस्थान (वाल्मी) के सेवानिवृत्त विज्ञानी डा. एके वर्मा और सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड के पूर्व विज्ञानी देवेंद्र जोशी ने सर्वे का काम पूरा कर लिया है। अगले वर्षाकाल में उद्यान में गिरने वाले वर्षाजल को इस विधि से संरक्षित कर लिया जाएगा।
वन विहार में स्थित वह चट्टानें जिनके नीचे वाटर पाकेट हैं जिस तक रास्ता बनाने के लिए बोरिंग की जानी है।
पहले के भंडार को करेंगे समृद्ध: सर्वे के दौरान पता लगाया गया है कि वन विहार के चट्टानी हिस्से में सतह से लगभग 500 मीटर नीचे बड़ा जलभंडार है। इस भंडार को फ्रैक्चर राक या चट्टानों की दरारों से समृद्ध किया जाएगा। इसके लिए पार्क में वर्षाकाल में बहने वाले प्राकृतिक नालों, झरनों की मैपिंग की गई है। इन सभी जलस्रोतों से जो पानी बह जाता है, उसे रोकने के लिए एक स्टाप डैम बनाया जाएगा। वर्षाजल को चट्टानों में किए गए ड्रिल के माध्यम से भूजल में पहुंचा दिया जाएगा जिससे न केवल राष्ट्रीय उद्यान बल्कि पूरे क्षेत्र को फायदा मिलेगा।
इसलिए सफल हो सकता है प्रयोग: डा. एके विश्वकर्मा ने बताया कि शहरी क्षेत्र में छतों से ही वर्षाजल एकत्र किया जाता है, क्योंकि यहां सतह पर गिरने के बाद कचरे, सीवेज, लोगों के आवागमन से जल प्रदूषित हो जाता है जिससे ग्राउंड वाटर रिचार्ज करने पर भूजल भी प्रदूषित हो सकता है। राष्ट्रीय उद्यान में ऐसा खतरा नहीं है। यहां प्रतिवर्ष वर्षाकाल में झरनों, प्राकृतिक नालों का पानी बह जाता है, जिसे संग्रहीत कर भूजल स्तर बढ़ाया जा सकेगा।
मानव संग्रहालय में है 500 मीटर गहरा बोर: डा. विश्वकर्मा बताते हैं कि लगभग तीन दशक पहले भूजल सर्वेक्षण के एक प्रयोग के दौरान मानव संग्रहालय में 500 मीटर की बोरिंग की गई थी। तब यहां छह इंच पानी पाया गया था। इसी तरह की पाकेट वन विहार के दायरे में बनाई जा सकती है, जिस तक जल पहुंचाया जाएगा।
वन विहार के निदेशक एचसी गुप्ता ने बताया कि वन विहार का बड़ा हिस्सा चट्टानी है, जहां से प्रतिवर्ष वर्षाकाल में पानी बह जाता है। गर्मियों में पानी ऊपर ले जाना पड़ता है। इसे देखते हुए वर्षाजल संरक्षण के लिए सरफेस वाटर हार्वेस्टिंग और स्टाप डैम बनाया जा रहा है। इसके लिए विज्ञानियों ने सर्वे कर लिया है, जिसके आधार पर चट्टानों के बीच बनी पाकेट को रिचार्ज करने के साथ उद्यान क्षेत्र में गिरने वाली बूंद-बूंद को सहेजा जा सकेगा।