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गेहूं पर पड़ा भीषण गर्मी का असर, पैदावार हुई कम दाना भी हुआ पतला

अत्‍याधिक गर्मी पड़ने की वजह से गेहूं की पैदावार में 20 प्रतिशत की कमी आयी है। गेहूं का दाना (Wheat Crops) भी पहले की अपेक्षा पतला हो गया है। ठंड से अचानक गर्मी पड़ने से फसल की नमी दूर होने लगती है और फसल सूखने लगती है

By Babita KashyapEdited By: Published: Mon, 16 May 2022 12:08 PM (IST)Updated: Mon, 16 May 2022 12:19 PM (IST)
गेहूं पर पड़ा भीषण गर्मी का असर, पैदावार हुई कम दाना भी हुआ पतला
गर्मी पड़ने की वजह से गेहूं की पैदावार में 20 प्रतिशत की कमी आयी है

ग्वालियर, जेएनएन। इस बार गर्मी की शुरुआत जल्‍दी होने की वजह से की गेहूं की उपज में 20 प्रतिशत की कमी आई है। साथ ही गेहूं का दाना भी पतला हो गया। जिससे गेहूं का वजन भी कम हो गया है। गेहूं का उत्पादन घटने से बाजार में गेहूं की मांग बढ़ गई है। यही कारण है कि किसान गेहूं को समर्थन मूल्य पर बेचने की बजाय सीधे मंडी में व्यापारियों को बेच रहे हैं।

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कृषि वैज्ञानिकों ने बताया कि मौसम में बदलाव के साथ इसकी प्रक्रिया धीमी हो जाती है। लेकिन जब भी मौसम में अचानक कोई बदलाव आता है तो इसका असर खेत में खड़ी फसल पर नजर आने लगता है। क्योंकि ठंड से अचानक गर्मी पड़ने से फसल की नमी दूर हो जाती है और फसल सूखने लगती है। जिसकी वजह से जो अनाज धीरे-धीरे तैयार होना था, अचानक गर्मी के कारण उनकी नमी कम हो जाती है और दाना पतला सूखउ कर पतला हो जाता है और उसका वजन भी कम हो जाता है।

खाद्य नियंत्रक का कहना है कि इस बार समर्थन मूल्य पर खाद्यान्न नहीं मिलने से गोदाम भी खाली पड़े हैं। इधर सागर में तेजस गेहूं की फसल को समर्थन मूल्य पर बेचने वाले किसान उस फसल में चमक कम होने के कारण एफसीआई खरीदने को तैयार नहीं हैं। जिससे परेशानी हो रही है। सरकार गेहूं की फसल को समर्थन मूल्य पर 31 मई तक खरीदेगी। खाद्य विभाग ने गेहूं खरीद की तारीख बढ़ा दी है। इस बार किसान समर्थन मूल्य पर गेहूं की फसल नहीं बेच रहे हैं। इसलिए सरकारी गोदाम खाली पड़े हैं। सहकारी समितियों के कांटे बंद रखे हुए हैं। यह पहला मौका है जब पिछले डेढ़ महीने में एक भी किसान सरकारी केंद्रों पर गेहूं, चना और सरसों बेचने नहीं पहुंचा। इसका कारण यह है कि बाजार में गेहूं, चना और सरसों की फसलों की कीमत समर्थन मूल्य से काफी अधिक है। इस बार व्यापारी किसानों को नकद भुगतान भी कर रहे हैं।

एक और बड़ा कारण यह भी बताया जा रहा है कि इस बार सरकार ने छन्ना लगाकर किसान की फसल तौलने की शर्त रखी थी। इसलिए इस बार किसान ने समर्थन मूल्य की तुलना में व्यापारी को फसल बेचना अधिक सुविधाजनक समझा। क्योंकि किसान को बाजार में अच्छी कीमत भी मिली और फसल पर चना भी नहीं डालना पड़ा। गौरतलब है कि मार्च के अंत में चना और सरसों की खरीद समर्थन मूल्य पर शुरू की गई थी और 10 अप्रैल से जिले के 81 केंद्रों पर गेहूं की फसल की तुलाई शुरू की गई थी। समर्थन मूल्य पर गेहूं का भाव 2015 रुपये निर्धारित किया गया है। जबकि चना 5250 रुपये और सरसों 5050 रुपये निर्धारित किया गया है।

लेकिन बाजार में इन फसलों की कीमत काफी ज्यादा है। इस पर किसान ने गेहूं की फसल को 2200 रुपये और चना 6500 रुपये और सरसों को 7000 रुपये में बेच रहा है। किसान को फसल पर बाजार में समर्थन मूल्य से 200 से एक हजार रुपये अधिक मिल रहा है। किसान को भुगतान के लिए भी परेशान होने की जरूरत नहीं है। इसलिए किसान अपनी फसल सीधे व्यापारियों को बेच रहा है।


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