Gyanvapi Case: स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद बोले-ज्ञानवापी में मिलना चाहिए पूजा का अधिकार, कोई हमारी उपेक्षा करे यह असहनीय
Gyanvapi Case स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने ज्ञानवापी को लेकर कहा कि हमें वहां पूजन का अधिकार निश्चित तौर पर मिलना चाहिए क्योंकि अब तो प्रमाणित भी हो चुका है कि वहां भगवान शिव विराजित हैं। कोई हमारे अधिकार की उपेक्षा करे हमें रोके यह असहनीय है।
नरसिंहपुर, प्रकाश चौबे। Gyanvapi Case: स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती (Swami Avimukteshwaranand Saraswati) ने ज्ञानवापी (Gyanvapi) को लेकर कहा कि हमें वहां पूजन का अधिकार निश्चित तौर पर मिलना चाहिए, क्योंकि अब तो प्रमाणित भी हो चुका है कि वहां भगवान शिव विराजित हैं। कोई हमारे अधिकार की उपेक्षा करे, हमें रोके, यह असहनीय है। हिंदू हितों की उपेक्षा सहन नहीं की जाएगी।
इसलिए चर्चा में हैं अविमुक्तेश्वरानंद
अविमुक्तेश्वरानंद इन दिनों इस कारण चर्चा में हैं। पहला, वह ज्योतिष पीठ के नए शंकराचार्य बने हैं और दूसरा, वाराणसी के ज्ञानवापी मंदिर में विधिवत पूजा-पाठ को लेकर उनकी याचिका को सुनवाई योग्य माना गया है। इन्हीं मुद्दों को लेकर दैनिक जागरण के सहयोगी प्रकाशन 'नईदुनिया' ने उनसे विशेष बातचीत की। इस दौरान उनके साथ मौजूद रहे द्वारका-शारदा पीठ के नए शंकराचार्य स्वामी सदानंद सरस्वती ने भी सवालों के बेबाकी से जवाब दिए। उन्होंने कहा कि गीता-रामायण को पाठ्य पुस्तकों में पढ़ाए जाने की जरूरत है।
गीता व रामायण को पाठ्यक्रम में शामिल करने पर दिया जोर
मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के नरसिंहपुर स्थित परमहंसीगंगा आश्रम झोंतेश्वर में बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि दो धर्मों के बीच होने वाले विवादों का फैसला समय पर हो। इसके लिए ट्रिब्यूनल या फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाए जाएं। इस दौरान स्वामी सदानंद सरस्वती ने कहा कि सरकारों ने संस्कृत की शिक्षा की तरफ ध्यान नहीं दिया है। गीता-रामायण को पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहिए। गुरकुलों की ओर ध्यान देना बेहद आवश्यक है। इसके लिए हमारी सरकार से बातचीत चल रही है। संस्कृत भाषा को शिक्षण संस्थानों में अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाया जाए, क्योंकि संस्कृत से ही हिंदी सहित अन्य भाषाएं आईं हैं।
शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद का इच्छापत्र शास्त्र तुल्य
शंकराचार्य के रूप में नियुक्ति को लेकर अपनाई गई प्रक्रिया पर दोनों शंकराचार्यों ने स्थित साफ की। उन्होंने कहा कि ब्रह्मलीन शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती (Swami Swaroopanand Saraswati) का जो लिपिबद्ध इच्छापत्र है, वह हमारे लिए शास्त्र तुल्य है। उसमें उन्होंने धर्म संदेश भी दिया है। उस इच्छापत्र को 24 सितंबर को आयोजित कार्यक्रम में पढ़ा जाएगा।
ब्रह्मसूत्र उपनिषद का हिंदी और गुजराती में हो रहा अनुवाद
नए शंकराचार्यों ने बताया कि ब्रह्मसूत्र उपनिषद का ¨हदी और गुजराती भाषा में अनुवाद का कार्य चल रहा है, जो जल्द पूरा हो जाएगा। आद्य शंकराचार्य द्वारा संकलित और लिखित ऐसे धर्मग्रंथ, जो संस्कृत में हैं, उनका ¨हदी और गुजराती में अनुवाद करना उनकी प्राथमिकता होगी। इसके साथ सनातन धर्म के जितने भी ग्रंथ हैं, उन्हें हमेशा के लिए संरक्षित करने के लिए इनका डिजिटलाइजेशन कराया जाएगा।