Water Conservation: ग्वालियर की सावित्री के विचार से हाईवे पर बच रहा पानी
Water Conservation जल संरक्षण ही एकमात्र उपाय है जिससे हमें प्रकृति प्रदत्त इन अनमोल उपहार का लंबे समय तक उपयोग करने का अवसर मिल सकता है। इसके लिए वर्षा जल का संरक्षण महत्वपूर्ण कदम है। रेन वाटर हार्वेस्टिंग से हम सभी परिचित हो चुके हैं।
दीपक सविता, ग्वालियर: घर-गृहस्थी की जिम्मेदारियों को संभालते हुए मध्य प्रदेश के शहर ग्वालियर की सावित्री श्रीवास्तव ने भू-जल स्तर को बढ़ाने के लिए वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम तैयार किया है। इस सिस्टम के माध्यम से देश के बड़े हाईवे पर करोड़ों लीटर पानी धरती की कोख में पहुंचाया जा रहा है। सावित्री के इस माडल को भारतीय राष्ट्रीय सड़क प्राधिकरण (एनएचएआइ) के साथ-साथ हाईवे निर्माण में जुटी देश की एलएनटी, इरकान सहित करीब आठ बड़ी कंपनियों कंपनियों ने इसे अपनाया है। वे इन कंपनियों से बतौर सलाहकार जुड़ी हैं। जल शक्ति मंत्रालय ने वाटर हार्वेस्टिंग के इस माडल को सराहा और उन्हें वर्ष 2020 में वाटर हीरो सम्मान प्रदान किया।
परिवार से मिली प्रेरणा: सावित्री श्रीवास्तव के परिवार में वाटर प्यूरीफायर का कारोबार होता है। एक सिस्टम उनके घर में भी लगा है। उन्होंने देखा कि वाटर प्यूरीफायर में पानी शुद्ध होने के बाद बड़ी मात्रा में यूं ही बर्बाद हो रहा है। यही से उन्हें विचार आया कि इस पानी का उपयोग भू-जल स्तर को बढ़ाने में किया जा सकता है। चूंकि उनके परिवार के सदस्य शिशिर श्रीवास्तव इंजीनियर हैं तो उन्होंने इसकी चर्चा उनसे की। विचार-विमर्स के बाद वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम तैयार करने की योजना बनाई।
एक वर्ष के कड़ी परिश्रम के बाद सिस्टम तैयार हुआ और उसका प्रयोग वर्ष 2016-17 में शहर में 14 किलोमीटर लंबी शिवपुरी लिंक रोड पर किया गया। प्रयोग सफल रहा। इस क्षेत्र में तेजी से भू-जल स्तर में सुधार आया। इस क्षेत्र में भू-जल स्तर 150 फीट से 80 से 85 फीट पर आ गया। इसके बाद उनका सिस्टम एनएचएआइ तक पहुंचा। एनएचएआइ पहले हाईवे पर सोक पिट बनाया करती थी। बाद में उन्होंने इस सिस्टम को अपनाया और ये किट हाईवे के किनारे लगाना आरंभ कर दिया।
वन विहार में प्राकृतिक जलबहाव का क्षेत्र जिस पर स्टाप डैम बनाकर पानी को रोका जाना है।
दिल्ली, चंडीगढ़ और सोनीपत के हाईवे पर कर रहीं काम: सावित्री श्रीवास्तव के माडल पर बनीं किट वर्तमान में हरियाणा-दिल्ली से राजस्थान को जोडऩे वाले नेशनल हाइवे 248 में द्वारका (दिल्ली से गुरुग्राम) और मध्यप्रदेश-राजस्थान और उत्तरप्रदेश को जोडऩे वाले नेशनल हाईवे 552 पर काम कर रही हैं। हाल ही में इस प्रकार की वाटर हार्वेस्टिंग किट चंडीगढ़ में ओवर ब्रिज के नीचे लगाई गई हैं। सावित्री इससे पहले छत्तीसगढ़ के रायपुर-बिलासपुर में इसी प्रकार की परियोजना पर काम कर चुकी हैं। वह मप्र के गुना में नेशनल हाईवे-3 पर निजी क्षेत्र की कंपनी के साथ सलाहकार के रूप में काम कर रही हैं।
ऐसे तैयार होता है वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम: हाईवे के किनारे 60 से 80 फीट तक गहरा एक बोर किया जाता है। इसमें एक परफोरेटेड (छिद्रनुमा) पाइप डाला जाता है। इस पाइप को केंद्र में रखकर आसपास एक संरचना बनाई जाती है। छह से आठ फीट गहरे गड्ढेे में आरसीसी की रिंग बनाई जाती है। रिंग में वर्षा के पानी को धरती में पहुंचाने से पहले शुद्ध करने के लिए फिल्टर लगाया जाता है। इस फिल्टर में सबसे पहले पत्थर, ईंट के टुकड़े, वुडन चारकोल (कोयला) और अंत में रेत क्रम से रखी जाती है। हाईवे पर जमा होने वाले पानी को पाइप के जरिए इस किट तक लाया जाता है। इससे जलजमाव के कारण सड़क कटने से तो बचती ही है और वर्षा का पानी जमीन में पहुंचता है, जो आसपास हरियाली बढ़ाता है और भू-जल स्तर में सुधार होता है।
सलाहकार के रूप में जुड़ीं: सावित्री श्रीवास्तव निर्माण क्षेत्र की बड़ी निजी कंपनियों से भी सलाहकार के रूप में जुड़ी हैं। उनकी संरचनाएं कई स्थानीय कंपनियों और संस्थानों में भी वर्षा जल संरक्षण में सहायता कर रही हैं। इसके अलावा मध्य प्रदेश में उन्होंने हाउसिंग बोर्ड के साथ जुड़कर मुरैना में 500 आवासों में भी ऐसी किट लगाई हैं।
ग्वालियर शिवपुरी लिंक रोड के एग्जीक्यूटिव इंजीनियर एवं प्रोजेक्ट आफिसर ज्ञानवर्धन मिश्रा ने बताया कि शिवपुरी लिंक रोड पर हमने वर्ष 2016-17 में वाटर हार्वेस्टिंग कराई थी। यहां पर 40 किट लगाई गई हैं। यह सड़क 14 किलोमीटर लंबी है, क्षेत्रफल दो लाख 400 वर्गमीटर है। ग्वालियर में औसतन 750 मिली मीटर बारिश होती है, अगर इस हिसाब से हम सड़क पर वर्षा का 55 प्रतिशत पानी भी बचा लेते हैं तो वह वर्ष नौ करोड़ लीटर पानी की बचत होती है।
लार्सन एंड टूब्रो (एलएनटी) के प्रोजेक्ट डायरेक्टर तन्मय चटर्जी ने बताया कि कंपनी के कई हाइवे परियोजनाओं पर वाटर हार्वेस्टिंग के लिए सावित्री श्रीवास्तव सलाहकार के रूप में काम कर रही हैं। एनएच 248 पर द्वारका (दिल्ली) में हर एक किलोमीटर पर किटें लगाई हैं। इसे हर साल बड़ी मात्रा में पानी का संरक्षण होगा।