Promotion Rule in MP: पदोन्नति में आरक्षण का मामला हाई कोर्ट में भी उलझा, क्रीमीलेयर सिद्धांत लागू करने पर जोर
मध्य प्रदेश में पदोन्नति में आरक्षण का मामला उच्च न्यायालय में उलझ गया है। नए नियमों के बाद भी प्रक्रिया शुरू होने की संभावना कम है। आरक्षित और अनारक्षित वर्ग आमने-सामने हैं। अगली सुनवाई 20 नवंबर को होगी। विशेषज्ञों का मानना है कि क्रीमीलेयर सिद्धांत लागू करना ज़रूरी है। 2016 से आरक्षण पर रोक है, जिससे कई अधिकारी पदोन्नति से वंचित हैं।

शासकीय नौकरियों में प्रमोशन पर पेंच (प्रतीकात्मक चित्र)
डिजिटल डेस्क, भोपाल। पदोन्नति में आरक्षण का मामला उलझता ही जा रहा है। नए नियम बनाने के बाद राज्य सरकार को उम्मीद थी कि इसी वर्ष पदोन्नति की प्रक्रिया आरंभ की जा सकेगी, लेकिन मामला हाई कोर्ट में नियमों को चुनौती देने के बाद फिर उलझ गया है। अब तक चली सुनवाई के बाद लग रहा है कि इस वर्ष पदोन्नति की प्रक्रिया शुरू नहीं हो पाएगी। आरक्षित और अनारक्षित दोनों ही वर्ग पदोन्नति में आरक्षण को लेकर आमने-सामने हैं।
20 नवंबर को होगी सुनवाई
बता दें, मध्य प्रदेश के लोक सेवा पदोन्नति नियम-2025 को लेकर जबलपुर हाई कोर्ट में अगली सुनवाई 20 नवंबर को होगी। 12 नवंबर को अनारक्षित वर्ग ने अपना पक्ष रखा। सरकार की ओर से पहले ही नियम के पक्ष में तथ्य रखे जा चुके हैं। अनारक्षित वर्ग का कहना है कि नियम आरक्षित वर्ग को लाभान्वित करने वाले हैं। सुप्रीम कोर्ट में प्रकरण विचाराधीन है। यथास्थिति बनाए रखने के निर्देश हैं। नए नियम लागू करने से पहले विशेष अनुमति याचिका वापस नहीं ली गई। जिन्हें 2002 के नियम से पदोन्नति मिली थी, उन्हें फिर अवसर दिया जा रहा है। इसको लेकर ही विरोध था, जिसके कारण नियम निरस्त हुए थे।
विशेषज्ञों की यह राय
कानूनविदों का मानना है कि आरक्षण का लाभ वाकई में वंचित वर्गों तक पहुंचाना है तो यह अपरिहार्य हो गया है कि क्रीमीलेयर और उप वर्गीकरण के सिद्धांत को लागू किया जाए। दोनों ही सिद्धांत सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रतिपादित किए गए हैं। क्रीमी लेयर के सिद्धांत का फैसला तो जस्टिस गवई ने ही दिया था, जो स्वयं आरक्षित वर्ग से आते हैं।
2016 में लगी थी रोक
मध्य प्रदेश में वर्ष 2016 से पदोन्नति में आरक्षण पर रोक लगी हुई है। इस बीच कई ऐसे अधिकारी- कर्मचारी सेवानिवृत्त हो गए, जो वास्तव में पदोन्नति के हकदार थे। ऐसे अन्य अधिकारी भी इस कतार में हैं जो पदोन्नति से वंचित रह जाएंगे। एक लाइन लगी है और कुछ बांटा जा रहा है। सभी को तभी मिल सकता है जब जिनको मिलता जाए वे हटते जाएं और जिन्हें नहीं मिला है, वे आगे आते जाएं। जिन्हें मिल चुका है वे ही बार -बार लेते रहेंगे तो जो पीछे खड़े हैं उनका नंबर कभी नहीं आ पाएगा।
आरक्षित वर्ग का नेतृत्व ऐसे लोग कर रहे जो स्वयं क्रीमीलेयर में आते हैं
मंत्रालयीन सेवा अधिकारी-कर्मचारी संघ के अध्यक्ष इंजीनियर सुधीर नायक कहते हैं कि आज आरक्षित वर्ग का नेतृत्व ऐसे लोग कर रहे हैं जो स्वयं क्रीमीलेयर में आते हैं। क्रीमीलेयर का सिद्धांत लागू हुआ तो सबसे पहले यही लोग हटेंगे, इसलिए ये लोग वंचितों को गुमराह कर क्रीमीलेयर का सिद्धांत लागू नहीं होने देते। मैं आज भी कहता हूं कि आरक्षित वर्ग का नेतृत्व आरक्षित वर्ग के ऐसे लोगों के हाथ में होना चाहिए जो वंचना की पीड़ा को भुगत रहे हैं। सारा लाभ सक्षम उपवर्ग ले जाता है और कमजोर उपवर्ग केवल भीड़ बढ़ाने के लिए प्रयुक्त होता है इसलिए लाभ को सभी उपवर्गों के बीच में बांटा जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि तेलंगाना राज्य ने और शायद पंजाब राज्य ने इसे लागू किया है। इस पर भी सुप्रीम कोर्ट ने ही फैसला दिया है। आरक्षित वर्ग में ही ऐसी अनेक जातियां हैं जिनके इक्के-दुक्के लोग ही शासकीय सेवा में देखने मिलते हैं। जब भी आरक्षित वर्ग की कोई चयन सूची जारी होती है उसमें एक दो जातियों के लोगों की ही भरमार होती है।

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