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Watershed Management: नैनो तकनीक से बढ़ेगा भूजल स्तर व उपज, किसान की आय में होगा इजाफा

Nano Watershed Managementकृषि संकाय प्रमुख डा. रविंद्र ठाकुर ने बताया कि इजरायल में औसत वर्षा हमारे देश से कम है लेकिन वहां बेहतर जल प्रबंधन से भारत की तुलना में अधिक कृषि उत्पादन लिया जा रहा है। किसान नैनो वाटरशेड तकनीक से कृषि उत्पादन 10 प्रतिशत तक बढ़ सकता है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 28 May 2022 06:05 PM (IST)Updated: Sat, 28 May 2022 06:23 PM (IST)
Watershed Management: नैनो तकनीक से बढ़ेगा भूजल स्तर व उपज, किसान की आय में होगा इजाफा
Nano Watershed Management: इसे कैसे उपयोग में लाया जा सकता है, इसके लिए वाल्मी परामर्श सेवा देता है।

दक्षा वैदकर, भोपाल: Nano Watershed Management Program in MP मध्य प्रदेश जल एवं भूमि प्रबंध संस्थान, वाल्मी ने जल संरक्षण की एक ऐसी तकनीक विकसित की है, जिससे न सिर्फ भूजल स्तर बढ़ेगा बल्कि कृषि उत्पादन के साथ-साथ किसान की आय के अतिरिक्त रास्ते भी खुलेंगे। इस तकनीक का नाम है 'नैनो वाटरशेड' तकनीक। इसके पहले किसानों को 'माइक्रो वाटरशेड' तकनीक से जोड़ा गया था, लेकिन इससे बड़े किसान या समूह स्तर पर ही जल संरचनाएं तैयार हो रही थीं। एक सर्वे में पाया गया कि अपनेपन की भावना की कमी के चलते इन संरचनाओं का ठीक से रखरखाव भी नहीं हो रहा था। साथ ही छोटे किसान भी भूमि कम होने के कारण इसका लाभ नहीं उठा पा रहे थे। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए अब माइक्रो को नैनो वाटरशेड तकनीक में बदला गया है, जिसमें किसान 'मेरा खेत-मेरा पानी' धारणा के तहत अपने खेत के लिए खुद पानी का भंडारण करेंगे।

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तीन हिस्सों में बांटते हैं खेत: इस तकनीक में किसान के खेत को ही वाटरशेड माना गया है और इसे तीन भागों में बांट कर विभिन्न कार्य किए जाते हैं। ये क्षेत्र हैं रिचार्जिंग, भंडारण और उपयोग। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत में जल उपयोग दक्षता बहुत कम है। वर्तमान में किसान अपनी भूमि पर पडऩे वाले केवल 30 प्रतिशत बारिश के पानी का ही प्रयोग कर पाता है। 70 प्रतिशत पानी व्यर्थ जाता है। ऐसे में अगर किसान नैनो वाटरशेड तकनीक अपनाता है तो इससे जल उपयोग दक्षता बढ़ जाती है, जिससे कृषि उत्पादन 10 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। इस तकनीक के अंतर्गत किसान अपनी जमीन के क्षेत्रफल एवं आवश्यकता के अनुसार लगभग 20 प्रतिशत भाग को रिचार्जिंग, 10-20 प्रतिशत भाग को जल भंडारण और बाकी बची जमीन को खेती के लिए प्रयोग कर सकता है।

ऐसे काम करती है तकनीक:

1. रिचार्ज क्षेत्र -इस क्षेत्र में विभिन्न उपायों के माध्यम से बारिश में यूं ही बहकर बर्बाद हो जाने वाले पानी को संरक्षित करने एवं भंडारण क्षेत्र तक ले जाने का काम किया जाता है। इसके लिए खेतों की स्थितियों के अनुरूप विभिन्न कार्य किए जा सकते हैं, जैसे - ढलान खेती, खाई या नाली अवरोधक बनाना, घना वृक्षारोपण, परिवर्तन नाली।

2. भंडारण क्षेत्र -इस क्षेत्र में जल का भंडारण किया जाता है। खास बात यह है कि इस क्षेत्र का उपयोग अन्य गतिविधियों जैसे- मत्स्य पालन के लिए भी किया जा सकता है, जिससे किसान की अतिरिक्तच आय शुरू हो सकती है।

3. उपयोग क्षेत्र -भंडारण क्षेत्र के पानी का उपयोग किसान अपने उपयोग वाले क्षेत्र यानी खेती वाले हिस्से में कर सकता है। वह विभिन्न आधुनिक तरीकों जैसे - स्प्रिंकलर, रेन गन सिंचाई, रेन पाइप सिंचाई से जल का बेहतर उपयोग कर भरपूर उत्पादन प्राप्त कर सकता है। इस तरह उसे गर्मी के मौसम में भी भूमिगत जल प्राप्त हो सकता है। इस भूमि के टुकड़े से अधिक आय प्राप्त करने के लिए मधुमक्खी पालन, मशरूम की खेती आदि गतिविधियां की जा सकती हैं। इसी प्रकार उपज की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए और मिट्टी की जल भंडारण क्षमता को बढ़ाने के लिए जैविक खेती को भी अपनाया जा सकता है।

ये हैं अपेक्षित परिणाम -

  • - वर्तमान में राज्य की लगभग 25 लाख हेक्टेयर भूमि बंजर है। इसे नैनो वाटरशेड अवधारणा से उपजाऊ भूमि में परिवर्तित किया जा सकता है।
  • - इस तकनीक से भूजल रिचार्जिंग से सिंचाई के अतिरिक्त स्रोत प्राप्त होंगे, जिससे सिंचित क्षेत्र और फसल उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है।
  • - भूमि उपयोग के लिए वैज्ञानिक योजना बनाने से भी भूमि की गुणवत्ता में सुधार होगा।
  • - इस तकनीक में मृदा और जल संरक्षण उपायों से उपजाऊ मिट्टी की हानि कम होगी और इस प्रकार पोषक तत्वों का संरक्षण होगा।
  • - इसमें छोटे किसानों को लाभ पहुंचाने के लिए वानिकी, बागवानी, मधुमक्खी पालन, मत्स्य पालन, मशरूम की खेती आदि को शामिल किया गया है।
  • - यह पर्यावरण के अनुकूल है। इसमें पक्षियों, जानवरों और जलीय जीवों के प्राकृतिक चक्र को बनाए रखा जाता है।

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