MP Politics: कांग्रेस सहित दूसरे दलों से भाजपा में आए नेताओं के लिए रोल माडल बना मध्य प्रदेश
MP Politics मध्य प्रदेश में कांग्रेस से भाजपा में आए ज्योतिरादित्य सिंधिया मोदी कैबिनेट में मंत्री बनाए गए तो उनके समर्थक विधायकों को मंत्री पद और जो चुनाव हारे उन्हें निगम मंडल बोर्ड व प्राधिकरण में जगह देकर अंतत भाजपा ने बता दिया कि वह वादे की पक्की है।
भोपाल, जेएनएन। मध्य प्रदेश (एमपी) में कांग्रेस या अन्य कोई दल छोड़कर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में भविष्य देखने वालों के लिए राजनीतिक जोखिम की आशंकाओं को शिवराज सरकार लगातार अवसर साबित करती जा रही है। ऐसे नेताओं के लिए मध्य प्रदेश उदाहरण बन चुका है। कांग्रेस से भाजपा में आए ज्योतिरादित्य सिंधिया मोदी कैबिनेट में मंत्री बनाए गए तो उनके समर्थक विधायकों को मंत्री पद और जो चुनाव हारे, उन्हें करीब एक साल देर से ही सही, निगम, मंडल, बोर्ड व प्राधिकरण में जगह देकर अंतत: भाजपा ने बता दिया कि वह वादे की पक्की है। मंत्री नहीं बन सके पूर्व विधायक भी राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त नेता बनाए गए हैं। प्रदेश में शुक्रवार को 25 नेताओं की निगम-मंडलों में नियुक्ति की गई, जिनमें नौ सिंधिया समर्थक नेताओं को जगह मिली ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मार्च 2020 में कमल नाथ सरकार से अपना रास्ता अलग कर लिया था। उनके नेतृत्व में 19 मंत्री और विधायक भी सरकार और कांग्रेस से इस्तीफा देकर भाजपा के पाले में आ गए थे।
उपचुनाव में भी कांग्रेस को नहीं मिला लाभ
इस बीच, तीन अन्य विधायकों ने भी कांग्रेस छोड़कर भाजपा में प्रवेश कर लिया। जादुई आंकड़ा पक्ष में आने से शिवराज सिंह चौहान चौथी बार मुख्यमंत्री बन गए, लेकिन नवंबर में उपचुनाव आते आते 28 विधानसभा सीटें खाली हो गईं। राजनीतिक गलियारों में सिंधिया और भाजपा के बीच वादों को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं रहीं। उपचुनाव में भाजपा ने सिंधिया समर्थक पूर्व विधायकों को फिर से उन सभी विधानसभा सीटों पर प्रत्याशी बना दिया, जहां से वह कांग्रेस के टिकट पर से जीत कर आए थे। प्रदेश के इतिहास में ऐसे उपचुनाव पहली बार हो रहे थे, जिसमें सरकार बदल जाने की भी गुंजाइश मौजूद थी, लेकिन कांग्रेस इसका लाभ नहीं ले सकी और 28 में से 19 सीटों पर भाजपा और नौ सीटों पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की। जीत दर्ज करने वाले लगभग सभी सिंधिया समर्थक विधायकों को शिवराज कैबिनेट में शामिल कर लिया गया। उपचुनाव में जिन्हें सफलता नहीं मिली, उनका भी ध्यान पार्टी ने रखा और करीब एक साल बाद निगम, मंडलों में उन्हें जगह दे दी।