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Independence Day 2022: शहजाद खान 39 साल से बांध रहे राष्ट्रीय ध्वज, यह आखिरी मौका, लोगों को निःशुल्क सिखाएंगे हुनर

Independence Day 2022 गांठ बांधने की कला ही इस पूरे कार्य की विशेषता होती है ताकि एक बार रस्सी खींचने पर ही ध्वज फहराने लगे। ध्वजारोहण के लिए ध्वज बांधते समय सर्दी के मौसम में गांठ को थोड़ा ढीला बांधा जाता जबकि गर्मी के मौसम में थोड़ा कसा जाता है।

By Priti JhaEdited By: Published: Sun, 14 Aug 2022 01:30 PM (IST)Updated: Sun, 14 Aug 2022 04:41 PM (IST)
Independence Day 2022: शहजाद खान 39 साल से बांध रहे राष्ट्रीय ध्वज, यह आखिरी मौका, लोगों को निःशुल्क सिखाएंगे हुनर
Independence Day 2022: शहजाद खान 39 साल से बांध रहे राष्ट्रीय ध्वज, निःशुल्क सिखाएंगे यह हुनर

ग्वालियर, ऑनलाइन डेस्क। विशेष सशस्त्र बल (एसएएफ) के एएसआइ शहजाद खान गत 39 वर्षों से गणतंत्र दिवस व स्वतंत्रता दिवस पर एसएएफ मैदान में राष्ट्रीय ध्वज को बांधने और चढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। यह आखिरी मौका होगा, जब वे यह जिम्मेदारी निभाएंगे। आजादी के अमृत महोत्सव के मौके पर 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस पर शहर में पिछले 39 साल से चला आ रहा क्रम समाप्त हो जाएगा।

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मालूम हो कि आगामी नवंबर माह में वे सेवानिवृत्त हो जाएंगे। पिछले 39 वर्षों में कई बार शहजाद का तबादला अन्य जिलों में हुआ, लेकिन ध्वज बांधने की उनकी कला के चलते उन्हें विशेष तौर पर ग्वालियर बुलाया जाता था।

मौसम, ऊंचाई और रस्सी का हिसाब

जानकारी हो कि गांठ बांधने की कला ही इस पूरे कार्य की विशेषता होती है, ताकि एक बार रस्सी खींचने पर ही ध्वज फहराने लगे। ध्वजारोहण के लिए ध्वज बांधते समय मौसम, पोल की ऊंचाई और ध्वज बांधने वाली रस्सी का ख्याल रखा जाता है। इसको ध्यान में रखते हुए ही ध्वज पर रस्सी की गांठ बांधी जाती है। सर्दी के मौसम में गांठ को थोड़ा ढीला बांधा जाता है, जबकि गर्मी के मौसम में थोड़ा कसा जाता है।

शहजाद से पहले

शहजाद से पहले वर्षों तक एसएएफ में पदस्थ बालाराम ध्वज बांधते थे, लेकिन 1983 में उनकी सेवानिवृत्ति के बाद से शहजाद यह जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। इतने वर्षों में कभी भी ऐसा नहीं हुआ कि मुख्य अतिथि ने ध्वजारोहण के लिए रस्सी खींची हो और वह अटक गई हो।

39 साल तक बदस्तूर जारी

शनिवार की सुबह फुल ड्रेस रिहर्सल में शहजाद ने आखिरी बार मुख्य कार्यक्रम के लिए ध्वज बांधने का अभ्यास किया। शहजाद खान वर्ष 1981 में आरक्षक के पद पर एसएएफ में पदस्थ हुए थे। उस समय आरक्षक बालाराम ध्वज बांधते थे, तो शहजाद खान को यह कला सीखने की जिज्ञासा हुई। ऐसे में उन्होंने यह कला सीखी और 1983 के बाद से यह क्रम शुरू हुआ, तो फिर 39 साल तक बदस्तूर जारी रहा। इस दौरान कई बार शहजाद खान की पदस्थापना शहर से बाहर हुई, लेकिन एसएएफ के अफसरों ने विशेष मांग कर उन्हें ध्वज बांधने के लिए ग्वालियर बुला लिया।

सेवानिवृत्ति के बाद सिखाएंगे हुनर

शहजाद खान ने एसएएफ के अन्य जवानों को भी रिटायरमेंट से पहले यह हुनर सिखाया है। आरक्षक राजेंद्र बरैया भी अब इसमें निपुण हो गए हैं। शहजाद खान सेवानिवृत्ति के बाद अब अन्य लोगों को भी यह हुनर सिखाएंगे। उनका कहना है कि बहुत कम लोग ध्वज बांधना जानते हैं। ऐसे में वे इच्छुक लोगों को यह हुनर निःशुल्क सिखाएंगे। 


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