मध्य प्रदेश के रतलाम में आदिवासी बहुल बाजनासैलाना विकासखंड में झितरी मईड़ा ने बनवाए 800 से अधिक सहायता समूह
MP झितरी के अनुसार स्वसहायता समूह में 10 से 15 महिलाएं होती हैं। उन्हें अपनी पसंद के काम जैसे सिलाई कढ़ाई किराना दुकान आदि के लिए समूह बनवाकर सरकारी योजना के अंतर्गत आर्थिक सहायता भी दिलाई जाती है।
नरेंद्र जोशी, रतलाम। लोकतंत्र की सुंदरता और सार्थकता इसी में है कि समाज के निचले पायदान पर बैठे नागरिकों का सशक्तीकरण और उत्थान हो। सरकारों की तरफ से होने वाले प्रयासों के साथ जब निजी प्रयत्न भी जुड़ जाते हैं तो फलाफल और बेहतर होता है। नारी सशक्तीकरण का ऐसा ही उदाहरण प्रस्तुत कर रही हैं मध्य प्रदेश के रतलाम जिले के आदिवासी समाज की युवती झितरी मईड़ा।
बाजना-सैलाना विकासखंड में झितरी मईड़ा आदिवासी महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने और आर्थिक मोर्चे पर मजबूत करने के अभियान में जुटी हैं। छोटे-छोटे आदिवासी गांवों तक पहुंचकर झितरी महिलाओं को बचत करना, बैंक में अपनी राशि जमा करवाना और खातों से लेनदेन करना सिखा रही हैं।
जिस मध्य प्रदेश के डिंडौरी जिले में आदिवासी बालिकाओं के यौन शोषण और मतांतरण की खबरें सामने आ रही हैं, उसी के जिले रतलाम में आदिवासियों के आर्थिक व बौद्धिक सशक्तीकरण का झितरी का प्रयास अनुकरणीय है। अपने इस अभियान में झितरी अब तक 800 महिला स्वसहायता समूहों का गठन करवा चुकी हैं। वह समूहों की सदस्यों को प्रशिक्षण भी देती हैं।
झितरी के अनुसार स्वसहायता समूह में 10 से 15 महिलाएं होती हैं। उन्हें अपनी पसंद के काम जैसे सिलाई, कढ़ाई, किराना दुकान आदि के लिए समूह बनवाकर सरकारी योजना के अंतर्गत आर्थिक सहायता भी दिलाई जाती है।
इन समूहों द्वारा विभिन्न प्रकार के कार्य किए जाते हैं जिससे महिलाओं को आय होती है। बैंकिंग कार्य समझने के बाद शासन की योजनाओं का लाभ लेने में भी समस्या नहीं आती है। गांवों में महिलाओं को जागरूक करने का झितरी का कार्य अनवरत जारी है।
विषमताओं से नहीं डिगीं
तीन वर्ष की उम्र में पिता कोदर मईड़ा के निधन के बाद आर्थिक विषमताओं के बीच भी झितरी ने अथक प्रयास कर अपनी शिक्षा जारी रखी। रतलाम जिले की रावटी तहसील के गांव मोलावा की निवासी झितरी के परिवार में 60 वर्षीय मां रतनबाई और दो भाई हैं। स्कूली शिक्षा के बाद वर्ष 2018 में झितरी ने बैचलर आफ सोशल वर्क (बीएसडब्लयू) का कोर्स किया और अब मुख्यमंत्री सामुदायिक नेतृत्व कार्यक्रम में एमएसडब्लयू की पढ़ाई कर रही हैं।
इसके साथ ही वे लगातार महिलाओं को जागरूक करने पर काम कर रही हैं। खासतौर पर क्षेत्र की अशिक्षति महिलाओं को आर्थिक गतिविधियों, बैंकिंग कार्यों व बचत के लिए प्रेरित करने को लेकर झितरी ने स्वसहायता समूहों का गठन करवाया है। झितरी ने बताया कि हम आदिवासी क्षेत्र की महिलाओं को बैंक तक लाने का काम कर रहे हैं।
निरक्षर होने व बैंकिंग कार्य की जानकारी नहीं होने के चलते महिलाओं को बैंक में पैसा जमा कराने, निकालने की भी पूरी ट्रेनिंग देते हैं। जब तक वे सीख नहीं जाती तब तक उनके साथ बैंक आते हैं। पौधारोपण व जैविक खेती के लिए भी लोगों को जागरूक कर रहे हैं।
बच्चियों की शिक्षा की भी चिंता
झितरी केवल आदिवासी महिलाओं के सशक्तीकरण का ही प्रयास नहीं कर रही हैं बल्कि समाज की बच्चियों के शिक्षण को लेकर भी सक्रिय हैं और योगदान करती हैं। नांदी फाउंडेशन से जुड़कर वह हर सुबह एक घंटा टैबलेट पर कक्षा एक से आठ तक की बालिकाओं को डिजिटली पढ़ाई भी करवाती हैं।
झितरी कहती हैं कि आदिवासी समाज में बालिकाओं की शिक्षा पर कम ध्यान दिया जाता है। मुझे भी पढ़ाई को लेकर समस्याओं का सामना करना पड़ा। हम यही समझाने का प्रयास करते हैं कि बालिका की स्कूली शिक्षा तो पूरी होनी ही चाहिए। यदि ऐसा नहीं होता है तो आगे रोजगार के लिए पलायन ही विकल्प रह जाता है। गांवों में जाने के दौरान बुजुर्ग महिलाओं से विशेष तौर पर चर्चा कर समझाते हैं।
प्रकृति के साथ रहने की सीख
सामाजिक कार्यों के साथ ही आदिवासी अंचल में पौधारोपण, जलसंरक्षण, गोमूत्र के उपयोग, जैविक खेती से होने वाले लाभ से भी ग्रामीणों को अवगत कराने का काम झितरी मईड़ा कर रही हैं।
मप्र जनअभियान परिषद के जिला समन्वयक रत्नेश विजयर्गीय बताते हैं कि झितरी में जबरदस्त आत्मविश्वास है । वे पूरी लय से क्षेत्र में महिलाओं को जागरूक कर रही हैं।
झितरी मईड़ा, सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा, आदिवासी क्षेत्र की महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त करने पर हम लगातार काम कर रहे हैं। हम महिलाओं को बैंक में पैसा जमा कराने, निकालने का प्रशिक्षण देते हैं। जब तक वे सीख नहीं जाती, तब तक उनके साथ बैंक जाते हैं।