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    अंधा…घायल…फिर भी अडिग! 40 छर्रों से छलनी तेंदुआ ‘इंदर’ बना जीवटता की मिसाल, वन विहार में विशेषज्ञों की देखभाल ने किया चमत्कार

    By Anjali TomarEdited By: Ravindra Soni
    Updated: Sun, 07 Dec 2025 06:03 PM (IST)

    भोपाल के वन विहार में तेंदुआ 'इंदर' जीवटता की मिसाल बना है। शिकारियों से घायल, अंधा इंदर जब इंदौर से लाया गया, तो बचने की उम्मीद कम थी। डॉक्टरों ने ऑप ...और पढ़ें

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    भोपाल के वन विहार राष्ट्रीय उद्यान में तेंदुआ इंदर।

    डिजिटल डेस्क, भोपाल। कभी मौत के मुहाने पर खड़ा तेंदुआ ‘इंदर’ आज राजधानी भोपाल के वन विहार राष्ट्रीय उद्यान में जिंदादिली, संवेदनशील देखभाल और निरंतर प्रयासों का ऐसा जीवंत उदाहरण बन गया है, जो हर किसी को प्रेरित करता है। इंदौर के कमला नेहरू प्राणी संग्रहालय से गंभीर हालत में लाए गए इंदर के सिर में 40 से अधिक छर्रे धंसे थे। खून बह रहा था, आंखों की रोशनी पूरी तरह जा चुकी थी और विशेषज्ञों को भी भरोसा नहीं था कि यह जीवित रह पाएगा।

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    लेकिन पांच वर्षों में इंदर ने वह कर दिखाया, जिसे असंभव माना जा रहा था। दृष्टिहीन होने के बावजूद आज वह न सिर्फ सक्रिय है, बल्कि अपने पूरे बाड़े और बाहरी जगहों को सूंघकर पहचान लेता है।

    जंगल से अस्पताल तक, जिंदगी की सबसे कठिन लड़ाई

    शिकारियों की बंदूक के छर्रों से घायल इंदर जब इंदौर के नयापुरा क्षेत्र में मिला था तो उसकी हालत अत्यंत गंभीर थी। 21 सितंबर 2020 को भोपाल के पशु चिकित्सालय में उसका CT स्कैन किया गया, जहां डॉक्टरों ने माना कि ऑपरेशन संभव नहीं, छर्रे दिमाग के बेहद संवेदनशील हिस्सों में फंसे थे। वह डिप्रेशन में था और लगभग मौत की कगार पर पहुंच चुका था।

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    मानवता, धैर्य और संगीत ने जगाई उम्मीद

    तत्कालीन डॉयरेक्टर कमलिका महोलता और वरिष्ठ पशु चिकित्सक डॉ. अतुल गुप्ता ने इसे वन विहार में क्वारंटाइन में रखा। उसके मन को शांत करने मधुर संगीत सुनाया गया, जगह-जगह भोजन रखकर उसकी सूंघने की शक्ति बढ़ाई गई और तनाव कम करने मानव उपस्थिति सीमित रखी गई। शुरुआत में इंदर डरा-सहमा रहता, खाना नहीं खाता और कोने में दुबका रहता था, लेकिन टीम ने हार नहीं मानी।

    अंधेपन के बावजूद ‘परिसर का नक्शा’ सीख लिया

    टीम के लिए सबसे बड़ी चुनौती थी—उसे अपने नए घर का नक्शा महसूस कराना। लगातार दो महीने तक भोजन की जगह बदली गई, ऊंचाई पर रखा गया और मार्ग खुले छोड़े गए। कुछ ही महीनों में इंदर ने पूरा वातावरण सूंघकर समझ लिया और छह महीने बाद वह पूरी तरह सामान्य व्यवहार करने लगा।

    आज इंदर अन्य तेंदुओं की तरह सक्रिय है। बाड़े से बाहर की आवाजें पहचानता है। ऊंचाई पर बैठना पसंद करता है और हर गतिविधि कुशलता से करता है। सबको लगा था कि यह नहीं बचेगा। लेकिन देखभाल, अनुशासन, धैर्य और टीमवर्क ने इसे नई जिंदगी दी है।

    इंदर आज इस बात का प्रमाण है कि अगर सही इलाज, संवेदना और निरंतर प्रयास मिले, तो वन्यजीव मृत्यु के मुंह से भी वापस लौट सकते हैं।
    - विजय कुमार, आईएफएस, डॉयरेक्टर, नेशनल पार्क एंड जू