Mahashivratri 2022: महाशिवरात्रि पर 45 मिनट में महाकाल के दर्शन कराने का लक्ष्य
Mahashivratri 2022 दर्शनार्थियों को 45 मिनट में भगवान महाकाल के दर्शन कराने का लक्ष्य रखा गया है। प्रशासन को महापर्व पर करीब दो लाख भक्तों के आने का अनुमान है। हरसिद्धि मंदिर चौराहा से दर्शनार्थियों की तीन कतार रहेगी।
उज्जैन, जेएनएन। मध्य प्रदेश में उज्जैन के ज्योतिर्लिंग महाकाल मंदिर में महाशिवरात्रि की तैयारियां अंतिम दौर में हैं। मंदिर प्रशासन सुगम दर्शन कराने के लिए प्लान तैयार कर रहा है। दर्शनार्थियों को 45 मिनट में भगवान महाकाल के दर्शन कराने का लक्ष्य रखा गया है। प्रशासन को महापर्व पर करीब दो लाख भक्तों के आने का अनुमान है। हरसिद्धि मंदिर चौराहा से दर्शनार्थियों की तीन कतार रहेगी। एक कतार सामान्य दर्शनार्थियों की तथा दूसरी कतार सशुल्क दर्शनार्थियों की होगी। तीसरी कतार से निर्गम की व्यवस्था रहेगी। दर्शन के बाद श्रद्धालुओं को चार धाम मंदिर की ओर निकाला जाएगा। सामान्य दर्शनार्थियों का प्रवेश शंख द्वार से रहेगा। पुजारी, पुरोहित व उनके परिजनों को बड़े गणेश मंदिर पास वाली गली से गेट नंबर चार की ओर प्रवेश दिया जाएगा। सशुल्क दर्शनार्थियों को गेट नंंबर पांच से प्रवेश मिलेगा। वीवीआइपी भक्तों के प्रवेश की व्यवस्था प्रवचन हाल स्थित गेट नंबर 13 से रहेगी।
44 घंटे खुले रहेंगे मंदिर के पट
महाशिवरात्रि पर महाकाल मंदिर के पट लगातार 44 घंटे खुले रहेंगे। 28 फरवरी की रात तीन बजे मंदिर के पट खुलने के बाद भस्मारती होगी। इसके बाद सतत पूजा-अर्चना का दौर चलेगा। उधर, मध्य प्रदेश में नाइट कर्फ्यू के चलते रात्रि में दर्शन होंगे या नहीं, इस पर प्रशासन अभी निर्णय करेगा। एक मार्च को भी भक्तों को सुबह कितनी बजे मंदिर में प्रवेश दिया जाएगा, इस पर भी प्रशासन को स्थिति साफ करना है।
भक्तों को कम समय में दर्शन कराने का लक्ष्य तय
महाकाल मंदिर समिति के प्रशासक गणेश कुमार धाकड़ ने बताया कि महाशिवरात्रि पर प्रवेश की व्यवस्था लगभग तय हो गई है। भक्तों को कम समय में सुविधा से दर्शन कराने का लक्ष्य तय किया गया है। दर्शन के समय का निर्णय एक दो दिन में तय कर लिया जाएगा।
जानें, क्यों मनाते हैं महाशिवरात्रि
पौराणिक और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, तीन कारणों से महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है, जिसमें शिव-पार्वती का विवाह सबसे ज्यादा प्रचलित है। इस कारण से महाशिवरात्रि को कई स्थानों पर रात्रि में शिव बारात भी निकाली जाती है। महाशिवरात्रि इन तीन वजहों से मनाई जाती है:
शिव-पार्वती विवाह
माता पार्वती और भगवान शिव का विवाह फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को हुई थी। इस तिथि को भगवान शिव और माता पार्वती के महामिलन के उत्सव के रूप में मनाते हैं। महाशिवरात्रि के दिन शिव-पार्वती का विवाह होने से इसका महत्व ज्यादा है। कहा जाता है कि इस दिन भगवान शिव की पूजा करने से वे जल्द प्रसन्न होते हैं। एक मान्यता यह भी है कि महाशिवरात्रि का व्रत रखने से विवाह में आ रही अड़चनें दूर होती हैं, विवाह जल्द होता है।
महादेव का शिवलिंग स्वरूप
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, महाशिवरात्रि के दिन ही महोदव अपने शिवलिंग स्वरूप में प्रकट हुए थे। तब सबसे पहले ब्रह्मा और भगवान विष्णु ने उनकी विधिपूर्वक पूजा-अर्चना की थी। इस वजह से महाशिवरात्रि के दिन विशेष तौर पर शिवलिंग की पूजा करने का विधान है।
विषपान कर संसार को संकट से उबारा
कहा जाता है कि समुद्र मंथन से निकले विष का पान करके भगवान शिव ने इस सृष्टि को संकट से बचाया था, इस वजह से ही महाशिवरात्रि मनाई जाती है। सागर मंथन से निकले विष का पान करने से भगवान शिव का गला नीला पड़ गया था, जिस कारण उनको नीलकंठ भी कहा जाता है।
शिवरात्रि और महाशिवरात्रि में अंतर
हिंदू कैलेंडर के प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को शिवरात्रि कहा जाता है, यह मासिक शिवरात्रि के नाम से प्रचलित है। फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि के नाम से जाना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन ही आधी रात को भगवान शिव निराकार ब्रह्म से साकार स्वरूप यानी रूद्र रूप में अवतरित हुए थे, इसलिए इस तिथि को महाशिवरात्रि कहा जाता है। इस दिन विशेष रूप से भगवान शिव की पूजा-अर्चना की जाती है।