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फिर फजीहत कराकर माने आडवाणी, गांधीनगर से लड़ने को तैयार

आखिरकार लालकृष्ण आडवाणी मान ही गए। हालांकि, मानने से पहले उन्होंने भाजपा के साथ अपनी भी फजीहत करा ली। चौबीस घंटे तक पार्टी के अंदर चली खींचतान और मान मनौव्वल के बाद आडवाणी संसदीय बोर्ड के फैसले से सहमत हो गए और गांधीनगर से ही चुनाव लड़ने पर रजामंदी दे दी। इतना ही नहीं उन्होंने बयान जारी कराकर हर किसी को धन्यवाद भी दिया कि सभी सहयोगी उनके साथ खड़े हैं। पिछले छह-सात महीने में भाजपा दूसरी बार थोड़ा डगमगा कर फिर संभली है। एक तरह से गोवा घटनाक्रम-दो का भी अंत हो गया।

By Edited By: Published: Thu, 20 Mar 2014 05:02 PM (IST)Updated: Fri, 21 Mar 2014 12:57 AM (IST)
फिर फजीहत कराकर माने आडवाणी, गांधीनगर से लड़ने को तैयार

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। आखिरकार लालकृष्ण आडवाणी मान ही गए। हालांकि, मानने से पहले उन्होंने भाजपा के साथ अपनी भी फजीहत करा ली। चौबीस घंटे तक पार्टी के अंदर चली खींचतान और मान मनौव्वल के बाद आडवाणी संसदीय बोर्ड के फैसले से सहमत हो गए और गांधीनगर से ही चुनाव लड़ने पर रजामंदी दे दी। इतना ही नहीं उन्होंने बयान जारी कराकर हर किसी को धन्यवाद भी दिया कि सभी सहयोगी उनके साथ खड़े हैं। पिछले छह-सात महीने में भाजपा दूसरी बार थोड़ा डगमगा कर फिर संभली है। एक तरह से गोवा घटनाक्रम-दो का भी अंत हो गया। गोवा कार्यकारिणी में नरेंद्र मोदी का कद बढ़ाने के बाद भाजपा के अंदर शुरू हुए घटनाक्रम की तर्ज पर ही आडवाणी ने गुरुवार को भी लड़ाई खत्म कर दी। बहरहाल, आडवाणी को मना तो लिया गया लेकिन यह संकेत भी दे दिया गया कि चुनाव की दहलीज पर खड़ी पार्टी कोई भी फैसला किसी के दबाव में नहीं करेगी।

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आडवाणी की ओर से जारी एक बयान में कहा गया कि वह पार्टी नेताओं के रुख से भावुक हो गए हैं। खुद नरेंद्र मोदी ने बताया कि गुजरात के लोग चाहते हैं कि वह गांधीनगर से ही चुनाव लड़ें। गौरतलब है कि बुधवार को उस वक्त पार्टी की कलह फिर से सतह पर आ गई थी, जब आडवाणी ने गांधीनगर से लड़ने से इन्कार कर दिया था। इसकी बजाय उन्होंने भोपाल जाने की मंशा जता दी थी। हालांकि, यह भी जाहिर था कि उनका चुनाव सामान्य नहीं था। खुद राजनाथ सिंह और नरेंद्र मोदी जहां पूरी पार्टी को एकजुट चुनाव में झोंकना चाहते हैं, वहीं आडवाणी का गांधीनगर छोड़ भोपाल जाना इस संदेश के विरुद्ध था।

पढ़ें : भाजपा में है मतभेद! आडवाणी के बाद अब जसवंत भी नाराज?

पिछले चौबीस घंटे में लगातार आडवाणी को मनाने की कोशिशें होती रहीं। संघ ने भी हस्तक्षेप किया, लेकिन परदे से। भाजपा नेताओं को संघ ने सलाह दी कि आडवाणी को हर स्तर पर समझाने की कोशिश होनी चाहिए पर पार्टी हित सबसे ऊपर है। इसके बाद खुद मोदी ने उनसे मुलाकात की। राजनाथ भी कभी खुद तो कभी दूसरे वरिष्ठ नेताओं के जरिये उन्हें समझाते रहे। उसके बाद का खाका तैयार था। आखिरकार आडवाणी की मंशा के अनुरूप ही राजनाथ ने बयान जारी कर कहा कि अपने चुनाव क्षेत्र का फैसला खुद आडवाणी लें। शाम होते-होते आडवाणी मान चुके थे। बहरहाल, इस बीच माना जा रहा है कि आडवाणी के मानने का असर गुजरात की दूसरी सूची पर दिख सकता है। फिलहाल आडवाणी के नजदीकी राजेंद्र सिंह राणा और हरिन पाठक के टिकट को लेकर उन्हें कोई आश्वासन नहीं दिया गया है।

'पूरे संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति ने मेरे लिए गांधीनगर सीट चुनी है, जबकि पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने गांधीनगर या भोपाल में कोई भी सीट चुनने का विकल्प मेरे लिए छोड़ दिया है। मैं खुद गांधीनगर से भावनात्मक रूप से जुड़ा रहा हूं। लिहाजा, मैंने इस बार भी गांधीनगर से चुनाव लड़ने का मन बनाया है।'

-लालकृष्ण आडवाणी


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