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छप्पन इंच की छाती वाला बड़ा खुराफाती: कपिल सिब्बल

नई दिल्ली। संप्रग-दो सरकार का अहम चेहरा रहे कानून मंत्री कपिल सिब्बल अपने तीखे और विवादित बयानों के लिए भी जाने जाते हैं। राहुल गांधी के हथियार कहे जा रहे भ्रष्टाचार विरोधी कानूनों को अध्यादेश के जरिये लागू करने के पक्ष में वह भी नहीं थे। सिब्बल के खिलाफ भले ही आम आदमी पार्टी ज्यादा आक्रामक हो, लेकिन उनका लक्ष्य भाजपा के पीएम पद के दाव

By Edited By: Published: Tue, 11 Mar 2014 07:31 PM (IST)Updated: Wed, 12 Mar 2014 03:38 PM (IST)
छप्पन इंच की छाती वाला बड़ा खुराफाती: कपिल सिब्बल

नई दिल्ली। संप्रग-दो सरकार का अहम चेहरा रहे कानून मंत्री कपिल सिब्बल अपने तीखे और विवादित बयानों के लिए भी जाने जाते हैं। राहुल गांधी के हथियार कहे जा रहे भ्रष्टाचार विरोधी कानूनों को अध्यादेश के जरिये लागू करने के पक्ष में वह भी नहीं थे। सिब्बल के खिलाफ भले ही आम आदमी पार्टी ज्यादा आक्रामक हो, लेकिन उनका लक्ष्य भाजपा के पीएम पद के दावेदार नरेंद्र मोदी हैं। वह मीडिया से भी खासे नाराज हैं और सरकार की नकारात्मक छवि के लिए भी उसे ही जिम्मेदार ठहराते हैं। 'दैनिक जागरण' के विशेष संवाददाता सीतेश द्विवेदी ने उनसे बात की। पेश हैं बातचीत के प्रमुख अंश:-

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-पंद्रहवीं लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस किस मुद्दे पर जनता के बीच जाएगी? विकास मुद्दा है या फिर मोदी और राहुल?

-देखिए मुद्दे एक नहीं होते। मुद्दा है कि देश के सामने दो उम्मीदवार खड़े हैं। दोनों सपने बेच रहे हैं। फर्क इतना है कि एक सड़क पर बेच रहा है दूसरा स्टेज पर। हम देश के सामने अपने प्रचार में यह बात रखेंगे कि वास्तविकता क्या है? संप्रग-एक और दो ने जमीन पर क्या काम किए हैं? आप कोई भी दायरा ले लो, आर्थिक, सामाजिक, कानूनी जो हमारी सरकार ने कर दिखाया है, वह हिंदुस्तान के इतिहास में आज तक नहीं हुआ है। कृषि से लेकर विकास दर तक हमारा प्रदर्शन राजग के मुकाबले बहुत बेहतर रहा है।

-आप कह रहे हैं कि संप्रग ने बहुत कुछ किया, लेकिन जनता तक आपकी बात पहुंचती नहीं दिख रही। आखिर प्रचार में आप क्यों नहीं सफल हो पा रहे?

-समाचार माध्यमों के जरिये हम आंकड़े बता सकते हैं। लेकिन, अगर अखबार और टीवी चैनल साथ न दें तो? दरअसल, मीडिया का रोल बदल गया है। पिछले कुछ महीनों से प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के रोल को लेकर मैं बहुत ही हैरान हूं। कुछ अखबारों और टीवी चैनलों ने यह तय कर लिया है कि मोदी का ही साथ देना है। मीडिया को यह तय करना पड़ेगा कि लोकतंत्र में उसे किस तरह का रोल निभाना है?

-महाराष्ट्र में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि संघ ने गांधी की हत्या की है, आप सहमत हैं?

-यह इतिहास है। वास्तविकता को नकारा नहीं जा सकता। नाथूराम गोडसे संघ का सदस्य था। 1994 में उसके भाई ने इस बात को स्वीकार किया था कि हम सारे भाई संघ के सदस्य थे। गांधीजी की हत्या के बाद वे लोग डरे हुए थे इसलिए उन लोगों ने कह दिया था कि वे संघ के सदस्य नहीं थे। मोरारजी देसाई ने अपनी किताब में लिखा है कि नाथूराम न केवल संघ का सदस्य था बल्कि वह संगठन का विचारक और प्रचारक भी था। आप ही बताइए संघ पर प्रतिबंध क्यों लगा? गांधीजी की हत्या में उसका हाथ था, इसीलिए प्रतिबंध लगा था।

-संघ ने आरोपों को नकारा है और कहा कि उसका हाथ गांधीजी की हत्या में नहीं था, इसीलिए उससे प्रतिबंध हटाना पड़ा।

-क्यों नहीं पाया गया? देखिए उस समय आज की तरह कंप्यूटर और इंटरनेट नहीं होते थे कि झट से देख लिया फला आदमी सदस्य है या नहीं। न ही सदस्यता के संबंध में कोई रिकार्ड होता था सदस्यता के संबध में।

-लेकिन राहुल गांधी का संघ पर हत्या का आरोप लगाना कहां तक उचित है?

-देखिए उनका मतलब संघ की विचारधारा से था। जब संघ की बात करते हैं तो इसका मतलब उन लाखों लोगों से नहीं होता जो इसके सदस्य हैं। बात उसकी विचारधारा की होती है।

पढ़ें : आई मिलन की बेला? केजरीवाल ने सिब्बल को गले से लगाया

-तो क्या यह गांधी बनाम गोडसे की विचारधारा की लड़ाई है?

-बिल्कुल विचारधाराओं की लड़ाई है। इसमें कोई शक नहीं। लेकिन, इसका मतलब यह नहीं कि संप्रग की उपलब्धियां इससे गौड़ हो जाती हैं। एक विचारधारा लोगों को साथ लेकर चलने की है जबकि दूसरी विखराव और बांटने की राजनीति करने वाली है।

-अभी आप आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल का एक वीडियो सामने आया है। जिसको लेकर राजनीति और पत्रकारिता पर गंभीर सवाल उठे हैं। आप इसे कैसे देखते हैं?

-केवल आम आदमी पार्टी और एक चैनल पर आरोप लगाने का कोई मतलब नहीं। केवल क्रिकेट में मैच फिक्सिंग नहीं होती। हाल में ओपीनियन पोल को लेकर भी खुलासा हुआ है। साफ जाहिर है कि वहां भी फिक्सिंग है। इस वीडियो ने फिर साबित किया की फिक्सिंग होती है। पत्रकार भी यह चाहते हैं कि वह मीडिया के जरिये राजनीति में आएं। कुछ लोग सफल भी हुए हैं और आज चुनावों में खड़े हैं।

-ऐसे में आपको लगता है कि मीडिया के लिए भी कोई लक्ष्मण रेखा होनी चाहिए। आपकी पार्टी की मीनाक्षी नटराजन ने एक ड्राफ्ट बनाया था। पर पार्टी ने उसे स्वीकार नहीं किया?

-देखिए लक्ष्मण रेखा बना भी दी जाए तो उसका उल्लघंन करने वाले करेंगे ही। सोच बदलनी होगी। हक और जिम्मेदारियों को साथ लेकर चलेंगे तो गिरावट नहीं आएगी।

-आप का इशारा केजरीवाल पर है या मोदी पर?

-आज एक नेता कह रहे हैं कि बुलेट ट्रेन चलनी चाहिए। अरे जहां मोनो रेल नहीं चली, मेट्रो नहीं चली। कौन-सी बुलेट ट्रेन की बात कर रहे हो आप? क्या सुविधाएं दी हैं आपने अपने प्रदेश में? आपका हक है भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन, यह कहने वालों के किस प्रदेश का शासन भ्रष्टाचार से मुक्त है? बात तथ्यों की होनी चाहिए। आप हक की बात करें तो पहले अपने राज्यों में करके दिखाएं। कहते हैं लोकपाल पारदर्शी होना चाहिए। लेकिन, गुजरात में लोकायुक्त गठन की जो कमेटी है उसका अध्यक्ष मुख्यमंत्री है। कौन बनेगा कौन नहीं बनेगा यह खुद तय करेंगे। दूसरों के लिए पारदर्शिता की बात अपने लिए कोई मानदंड नहीं।

-आकाश टैबलेट आपका सपना था, लेकिन अब विपक्ष कह रहा है कि यह सफेद हाथी बन गया है?

-क्या एक दिन में सपना साकार होता है? टेक्नोलॉजी एक दिन में तैयार नहीं होती। सालों साल लगते हैं। आकाश को लेकर मेरी विश्वभर में आलोचना हुई कि सिब्बल साहब, हिंदुस्तान ऐसे सपने देखता है जो साकार नहीं हो सकते। तीन-चार हजार में टैबलेट कौन बना सकता है? लेकिन, हमने प्रयास किया। आज टेंडर हो चुके हैं। छह निर्माता कंपनियां जिनमें इंटेल भी शामिल है प्रतिस्पद्र्धा में हिस्सा ले रही हैं। विश्वस्तर का आकाश टैबलेट पांच हजार से कम कीमत का होगा। मैंने कभी नहीं कहा था कि मैं कल ऐसा कर दूंगा। लेकिन, जिसके जहन में आलोचना भरी हो वह आलोचना ही करेगा। यह सपने देश के भविष्य के सपने हैं।

-भ्रष्टाचार के खिलाफ राहुल के छह हथियार क्यों नहीं आ पाए? ऐसा लगता है कि राष्ट्रपति की स्वीकृति न मिलने पर सरकार को पीछे हटना पड़ा?

-बिल्कुल गलत। हम चाहते हैं कानून बहस से पास हों उन्हें थोपा ना जाए। जब कैबिनेट में बात हुई ओर यह माना गया कि इनका दूरगामी प्रभाव होगा। ऐसे में तय हुआ कि यह बिल संसद में बहस के बाद ही पास हों। संसद में बहस इसलिए नहीं हो पई क्योंकि विपक्ष नही चाहता था कि बहस हो। उनके तो एक बड़े नेता ने कहा कि संसद को बाधित करना हमारी नीति है। सवाल यह है कि ऐसे में लोकतंत्र कैसे मजबूत होगा?


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