ढह गया कांग्रेस का मराठा दुर्ग
पानीपत के तीसरे युद्ध में जैसी हार मराठा सेना की हुई थी, 2014 के लोकसभा चुनाव में लगभग वैसी ही हार का मुंह महाराष्ट्र में कांग्रेस और उसकी सहयोगी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) को देखना पड़ा है। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) की वोटकटवा भूमिका भी इस बार उसकी इज्जत नहीं बचा सकी। राज्य की 4
मुंबई, [ओमप्रकाश तिवारी]। पानीपत के तीसरे युद्ध में जैसी हार मराठा सेना की हुई थी, 2014 के लोकसभा चुनाव में लगभग वैसी ही हार का मुंह महाराष्ट्र में कांग्रेस और उसकी सहयोगी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) को देखना पड़ा है। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) की वोटकटवा भूमिका भी इस बार उसकी इज्जत नहीं बचा सकी।
राज्य की 48 लोकसभा सीटों में से कांग्रेस के हिस्से सिर्फ दो सीटें आई हैं। उसकी कनिष्ठ सहयोगी राकांपा को चार सीटें मिलीं। दूसरी ओर, भाजपा और उसके सहयोगी दल 42 सीटें झटक ले गए। कांग्रेस से केंद्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे को हार का मुंह देखना पड़ा तो राकांपा कोटे के केंद्रीय मंत्री प्रफुल पटेल भी करीब डेढ़ लाख मतों के अंतर से हार गए। कांग्रेस के मुकल वासनिक, मिलिंद देवड़ा, प्रिया दत्त और प्रतीक पाटिल जैसे युवा नेता भी अपनी सीट नहीं बचा सके। प्रतीक पाटिल की सीट पर तो कांग्रेस इससे पहले कभी हारी ही नहीं थी।
राज्य सरकार में राकांपा के वरिष्ठ मंत्री छगन भुजबल जहां अपने गृहनगर नाशिक की सीट गंवा बैठे, वहीं, महाराष्ट्र के सबसे ताकतवर नेता केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार की परंपरागत सीट बारामती से इस बार उनकी पुत्री सुप्रिया सुले सिर्फ 70 हजार मतों से अपनी सीट बचा सकीं। मतगणना के कई चक्रों में तो वह अपने प्रतिद्वंद्वी महादेव जानखर से पीछे भी जाती दिखाई दीं। जबकि, सुप्रिया ने पिछला चुनाव तीन लाख 36 हजार से ज्यादा वोटों से जीता था।
प्रियादत्त की उत्तर-मध्य मुंबई सीट कांग्रेस के लिए मजबूत मानी जाती थी। लेकिन, अजेय मानी जा रहीं प्रिया दत्त यह सीट प्रमोद महाजन की बेटी पूनम के हाथों करीब डेढ़ लाख मतों से गंवा बैठीं। कांग्रेस-राकांपा की दुर्गति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मुंबई, ठाणे, उत्तर महाराष्ट्र और विदर्भ में तो दोनों का खाता तक नहीं खुल सका। जबकि, 2009 के लोकसभा चुनाव में मुंबई की सभी छह सीटें कांग्रेस-राकांपा ने जीती थीं। विदर्भ तो आपातकाल के दौरान भी एकतरफा कांग्रेस के खाते में गया था। इस बार वहां की सभी दस सीटें शिवसेना-भाजपा जीत गई है। रत्नागिरी-सिंधुदुर्ग सीट से अपने बेटे को न जितवा पाने से दुखी राज्य सरकार के वरिष्ठ मंत्री नारायण राणे ने नैतिक जिममेदारी लेते हुए अपने पद से त्यागपत्र दे दिया है।
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