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न अब वे नारे.. न वह गूंज

भाजपा के 'हर-हर मोदी, घर-घर मोदी' नारे को लेकर उठे विवाद ने चुनावी इतिहास के उन नारों की याद दिला दी है जो लोगों की जुबां पर रहा करते थे। डॉ. राम मनोहर लोहिया और इंदिरा गांधी ने नारों के सहारे ही बदलाव की बयार बहाई। आज ये नारे इतिहास के पन्नों में गुम हैं। इन्हें ताजा कर रहे हैं उमेश तिवारी..

By Edited By: Published: Thu, 27 Mar 2014 08:59 AM (IST)Updated: Thu, 27 Mar 2014 09:02 AM (IST)
न अब वे नारे.. न वह गूंज

भाजपा के 'हर-हर मोदी, घर-घर मोदी' नारे को लेकर उठे विवाद ने चुनावी इतिहास के उन नारों की याद दिला दी है जो लोगों की जुबां पर रहा करते थे। डॉ. राम मनोहर लोहिया और इंदिरा गांधी ने नारों के सहारे ही बदलाव की बयार बहाई। आज ये नारे इतिहास के पन्नों में गुम हैं। इन्हें ताजा कर रहे हैं उमेश तिवारी..

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शुरू करते हैं साठ के दशक से जब लोहिया ने नारा दिया था, 'सोशलिस्टों ने बांधी गांठ, पिछड़े पावें सौ में साठ'। यह सिर्फ नारा ही नहीं था बल्कि लोहिया की पूरी विचारधारा थी। उस दौर में जनसंघ ने दीपक और कांग्रेस ने दो बैलों की जोड़ी चुनाव चिह्न के जरिए एक दूसरे पर खूब निशाना साधा, 'जली झोपड़ी भागे बैल, यह देखो दीपक का खेल'। इसके जवाब में कांग्रेस ने नारा दिया, 'इस दीपक में तेल नहीं, सरकार बनाना खेल नहीं'। वर्ष 1967 के आमचुनाव में जब गैर कांग्रेसवाद का नारा गूंजा तब इंदिरा गांधी ने अपनी पार्टी की अलग पहचान बनाए रखने को 1971 में नारा दिया 'गरीबी हटाओ'। इस चुनावी नारे ने कांग्रेस को फिर सत्ता तक पहुंचा दिया। आम लोगों को दिलों के छू लेने वाला यही नारा, बड़ा मुद्दा बना गया। चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने आमजन की हमदर्दी बटोरी, 'वो कहते हैं इंदिरा हटाओ, हम कहते हैं गरीबी हटाओ'। इंदिरा के समर्थन में एक और नारा गढ़ा गया, 'जात पर न पात पर, इंदिरा जी की बात पर. मुहर लगेगी हाथ पर'।

विरोधियों ने गरीबी हटाओ के जवाब में नारा दिया, 'देखो इंदिरा का ये खेल, खा गई राशन, पी गई तेल'। रायबरेली से इंदिरा को हराने में भी नारों की अहम भूमिका रही। हालांकि चिकमंगलूर से उपचुनाव भी उन्होंने नारों के रथ पर ही जीता। 'एक शेरनी सौ लंगूर, चिकमंगलूर, चिकमंगलूर'। आपातकाल के दो वर्ष बाद 1977 में चुनाव कराने की घोषणा हुई जिसमें कांग्रेस के खिलाफ सम्पूर्ण क्रांति का नारा खूब पंसद किया गया। उस वक्त 'इंदिरा हटाओ देश बचाओ' का नारा खूब गूंजा और कांग्रेस का सफाया हो गया।

जनता पार्टी के ढाई साल के शासन से परेशान जनता की भावनाओं को भुनाने के लिए कांग्रेस ने नारा दिया 'आधी रोटी खाएंगे, इंदिराजी को लाएंगे'। 1980 के चुनाव में गढ़ा गया नारा, 'इंदिरा जी की बात पर, मुहर लगेगी हाथ पर' तो आज भी लोगों को याद है। 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 'जब तक सूरज चांद रहेगा, इंदिरा तेरा नाम रहेगा' जैसे नारे ने तो पूरे देश में सहानुभूति लहर पैदा कर दी। 1985 में राजीव गांधी के समर्थन में नारा गूंजा, 'उठे करोड़ों हाथ हैं, राजीव जी के साथ हैं'।

1989 का आमचुनाव जिसमें वीपी सिंह ने जनता दल का गठन कर 'राजा नहीं फकीर है, देश की तकदीर है' नारा दिया। 1991 के मध्यावधि चुनाव में वीपी सिंह के मंडल कमीशन से नाराज लोग भाजपा के नारे 'रामलला हम आयेंगे, मंदिर वहीं बनायेंगे' के रथ पर सवार हो लिए। 1996 के चुनाव में कांग्रेस की ओर से 'जात पर न पात पर, मोहर लगेगी हाथ पर' तो भाजपा ने 'अबकी बारी अटल बिहारी का नारा' उछाला। बीजेपी के 'सबको परखा बार-बार, हमको परखो एक बार' जैसे नारे खूब प्रचलित हुए। 1999 में भाजपा ने सोनिया गांधी को निशाने पर रखते हुए 'स्वदेशी बनाम विदेशी' का नारा उछाला। 12004 के चुनाव में भाजपा का 'शाइनिंग इंडिया' का नारा कमाल नहीं कर सका। अलबत्ता 2009 में कांग्रेस ने नारा दिया, 'जो कहा, वो कर दिखाया'। अमेठी में कांग्रेस की स्टार प्रचारक के तौर पर जब प्रियंका गांधी पहुंचीं तो 'अमेठी का डंका, बेटी प्रियंका' हिट हो गया। नारों के इतिहास में बसपा के नारे अपना अलग स्थान रखते हैं। 'तिलक तराजू और तलवार.' और '. बाकी सारे डीएस फोर', 'बनिया माफ, ठाकुर हाफ और ब्राह्मण साफ' नारों ने जातिवाद को खूब हवा दी। इसके अलावा 'हाथी नहीं गणोश है, ब्रह्म-विष्णु महेश है, 'पत्थर रख लो छाती पर, मुहर लगेगी हाथी पर' नारे ने खूब धूम मचाई, तो वहीं समाजवादी पार्टी ने 'जिसने कभी न झुकना सीखा उसका नाम मुलायम है' नारा लगाकर मुलायम सिंह के समर्थकों को खूब हौसला दिया था।

चर्चित चुनावी नारे

इस दीपक में तेल नहीं, सरकार बनाना खेल नहीं।

जली झोपड़ी भागे बैल, यह देखो दीपक का खेल।

गरीबी हटाओ।

बेटा कार बनाता है, मां बेकार बनाती है।

एक शेरनी सौ लंगूर, चिकमंगलूर चिकमंगलूर।

स्वर्ग से नेहरू रहे पुकार, अबकी बिटिया जहियो हार।

इंदिरा लाओ देश बचाओ।

आधी रोटी खाएंगे, इंदिरा को लाएंगे।

इंदिरा जी की बात पर मुहर लगेगी हाथ पर।

सौगंध राम की खाते हैं, मंदिर वहीं बनाएंगे।

जिसने कभी न झुकना सीखा, उसका नाम मुलायम है।

अबकी बारी अटल बिहारी।

जब तक सूरज चांद रहेगा, इंदिरा तेरा नाम रहेगा।

सोशलिस्टों ने बांधी गांठ पिछड़े पावैं सौ में साठ।

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