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राष्ट्रीय दलों की जमात में शामिल हो सकेगी आप

सौ सीटें जीत कर देश की राजनीति की दिशा बदलने का दावा कर रही आम आदमी पार्टी (आप) भले ही एक्जिट पोल में दहाई के आंकड़े तक को छूती नहीं दिख रही हो, लेकिन पहले ही आम चुनाव में अपनी मौजूदगी दर्ज करवा कर संतुष्ट है। पार्टी की नजर अब इस बात पर है कि दिल्ली और पंजाब के अलावा दो और राज्यों में उसे मतदान

By Edited By: Published: Tue, 13 May 2014 09:48 PM (IST)Updated: Wed, 14 May 2014 03:29 AM (IST)
राष्ट्रीय दलों की जमात में शामिल हो सकेगी आप
राष्ट्रीय दलों की जमात में शामिल हो सकेगी आप

नई दिल्ली, मुकेश केजरीवाल। सौ सीटें जीत कर देश की राजनीति की दिशा बदलने का दावा कर रही आम आदमी पार्टी (आप) भले ही एक्जिट पोल में दहाई के आंकड़े तक को छूती नहीं दिख रही हो, लेकिन पहले ही आम चुनाव में अपनी मौजूदगी दर्ज करवा कर संतुष्ट है। पार्टी की नजर अब इस बात पर है कि दिल्ली और पंजाब के अलावा दो और राज्यों में उसे मतदान का कम से कम छह फीसद वोट मिल जाए, ताकि राष्ट्रीय पार्टी की मान्यता पाने का उसका सपना पूरा हो सके।

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दिल्ली में सरकार बनाते ही बेहद जोश में आ कर 432 लोकसभा सीटों पर प्रत्याशी खड़े करने को ले कर पार्टी की चाहे जितनी आलोचना हो रही हो लेकिन आम आदमी पार्टी के शीर्ष रणनीतिकार योगेंद्र यादव इसे अब भी पार्टी के लिए सकारात्मक मान रहे हैं। अपने उम्मीदवारों की जीत-हार से ज्यादा अब इनको राज्यों में पार्टी के वोट फीसद का इंतजार है। दिल्ली, पंजाब में तो पार्टी को पर्याप्त मत फीसद के साथ ही कुछ सीटें भी मिलने की उम्मीद जताई गई है, लेकिन राष्ट्रीय पार्टी के दर्जे के लिए इसे कम से कम दो और राज्यों में कुल मतदान का छह फीसदी वोट पाना होगा। यादव का मानना है कि यह जरूरत हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, गोवा और उत्तराखंड से पूरी हो जाएगी। हालांकि, इन राज्यों में पार्टी को अपने उम्मीदवारों के जीतने की उम्मीद कम ही है।

भाजपा और कांग्रेस को छोड़ इस समय सिर्फ चार पार्टियों को ही राष्ट्रीय दल की मान्यता है। इनमें से माकपा और बसपा को छोड़ दिया जाए तो राकांपा व भाकपा का यह दर्जा भी खतरे में पड़ सकता है। दिल्ली विधानसभा में 28 सीटें जीत कर राज्य स्तरीय पार्टी बन चुकी आप को यह मान्यता मिलने पर दिल्ली में राष्ट्रीय कार्यालय के लिए जगह आवंटित होगी और साथ ही देश भर में सभी चुनावों के लिए स्थाई चुनाव चिह्न मिलेगा। हालांकि, मत फीसद के अलावा इसे कम से कम चार सीटें भी जीतनी होंगी।

अब सत्ता नहीं, विपक्ष के लिए संघर्ष : चुनाव के बाद आप की अगली रणनीति संख्या बल में नगण्य होने के बावजूद लोगों के बीच मुख्य विपक्ष की छवि बनाने की है। कांग्रेस और इसकी सरकार के भ्रष्टाचार की बजाय मोदी के विरोध पर चुनाव लड़ने की इसकी रणनीति का पार्टी को इस लिहाज से फायदा होने की उम्मीद है। केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद भी वह इसकी सबसे मुखर आलोचक हो कर अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत करने की जुगत में रहेगी। वाराणसी में कांग्रेस को पीछे छोड़ कर दूसरे नंबर पर आना भी इस लिहाज से पार्टी के लिए मददगार साबित होगा।

पढ़ें : तीसरे मोर्चे को समर्थन से 'आप' का इन्कार


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