अस्थिरता का दौर
11वीं लोकसभा चुनाव में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने के कारण त्रिशुंक स्थिति बनी। राजनीतिक अस्थिरता के उस दौर में दो साल के भीतर ही तीन प्रधानमंत्रियों ने शपथ ली और कोई भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सका। फ्लैशबैक सीरीज में अतुल चतुर्वेदी की एक नजर: साख पर सवाल पीवी नरसिंह राव सरकार (1
11वीं लोकसभा चुनाव में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने के कारण त्रिशुंक स्थिति बनी। राजनीतिक अस्थिरता के उस दौर में दो साल के भीतर ही तीन प्रधानमंत्रियों ने शपथ ली और कोई भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सका। फ्लैशबैक सीरीज में अतुल चतुर्वेदी की एक नजर:
साख पर सवाल
पीवी नरसिंह राव सरकार (1991-96) की छवि तमाम घोटालों के कारण धूमिल हो गई थी। झारखंड मुक्ति मोर्चा रिश्वत कांड की आंच प्रधानमंत्री तक पहुंची। हर्षद मेहता स्कैंडल, राजनीति के अपराधीकरण पर वोहरा रिपोर्ट, जैन हवाला स्कैंडल, तंदूर मर्डर केस जैसे मामलों ने राव सरकार की साख पर बट्टा लगा दिया। कश्मीर में आतंकवाद के बदतर होते हालात पर काबू पाने में भी सरकार नाकाम रही। पार्टी के भीतर भी गुटीय संघर्ष चल रहा था। मई, 1995 में कांग्रेस के विभाजन से आल इंडिया इंदिरा कांग्रेस (तिवारी) पार्टी का गठन हुआ। सोनिया गांधी के अध्यक्ष बनने के बाद उसका विलय कांग्रेस में हुआ। इन सारी परिस्थितियों के बीच हुए चुनाव में कांग्रेस 140 सीटें पाकर सत्ता से बाहर हो गई।
13 दिन की सरकार
अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा ने सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, स्वतंत्र परमाणु कार्यक्रम नीति और आर्थिक आत्मनिर्भरता का नारा दिया। पार्टी 161 सीटें जीतकर पहली बार सबसे बड़े दल के रूप में उभरी। इसका वोट प्रतिशत 20.3 प्रतिशत रहा। सबसे बड़े दल का मुखिया होने के नाते वाजपेयी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया गया। 16 मई, 1996 को वह प्रधानमंत्री बने। बहुमत के लिए अपेक्षित समर्थन नहीं जुटा पाने के कारण 13 दिनों में ही उनकी सरकार गिर गई।
संयुक्त मोर्चे की सरकार
कांग्रेस ने सत्ता में आने से इन्कार कर दिया। इसके बजाय उसने माकपा के साथ जनता दल के नेतृत्व में बने 13 दलों के संयुक्त मोर्चे को बाहर से समर्थन देने का निश्चय किया। उस मोर्चे में सपा, द्रमुक, अगप, तमिल मनीला कांग्रेस, भाकपा और तेलुगु देसम जैसे दल शामिल थे।
एचडी देवगौड़ा
वीपी सिंह और ज्योति बसु के इन्कार करने के बाद जनता दल के नेता और कर्नाटक के तत्कालीन मुख्यमंत्री एचडी देवगौड़ा संयुक्त मोर्चा सरकार के प्रधानमंत्री बने। वह तकरीबन 10 महीने पद पर रहे। बाद में कांग्रेस ने सरकार पर संवादहीनता का आरोप लगाते हुए समर्थन खींच लिया।
इंद्र कुमार गुजराल
चुनाव से बचने के लिए संयुक्त मोर्चा और कांग्रेस के बीच एक समझौता हुआ। उसके तहत इंद्र कुमार गुजराल प्रधानमंत्री बने। तमाम अंतर्विरोधों के चलते वह सरकार भी महज 11 महीनों के भीतर ही गिर गई।
चुनाव तारीख: 27 अप्रैल, 2 और 7 मई, 1996
कुल सीटें: 545
बहुमत के लिए: 273
मतदाता: 59 करोड़
मतदान: 58 फीसद
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