भारत समेत कई देशों के वैज्ञानिकों ने उत्तर भारत के कुओं के पानी में पाया आर्सेनिक की अधिक मात्रा

आर्सेनिक जहरीला रसायन होता है इसकी ज्यादा मात्रा कैंसर और हृदय रोग का कारण होती है। इसके कारण लोग समय से पहले मौत के शिकार हो जाते हैं। आर्सेनिक वाले कुओं के पानी के इस्तेमाल पर रोक लगाई जाए।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Thu, 15 Oct 2020 09:41 PM (IST) Updated:Thu, 15 Oct 2020 09:41 PM (IST)
भारत समेत कई देशों के वैज्ञानिकों ने उत्तर भारत के कुओं के पानी में पाया आर्सेनिक की अधिक मात्रा
भारत में भूमिगत जल और कुओं के पानी में आर्सेनिक की मात्रा।

लंदन, प्रेट्र। भारत, ब्रिटेन और स्विट्जरलैंड के वैज्ञानिकों के दल ने भारत के कई इलाकों में भूमिगत जल और कुओं के पानी का परीक्षण करने पर उसमें आर्सेनिक की मात्रा खतरनाक स्तर तक पाई है। आर्सेनिक जहरीला रसायन होता है, इसकी ज्यादा मात्रा कैंसर और हृदय रोग का कारण होती है। इसके कारण लोग समय से पहले मौत के शिकार हो जाते हैं।

कुओं के पानी में आर्सेनिक की अधिक मात्रा

भारत में इस्तेमाल हो रहे लाखों कुओं के पानी का परीक्षण न हो पाने के कारण पटना, मैनचेस्टर और ज्यूरिच के वैज्ञानिकों ने नमूने के तौर पर कुछ इलाकों का पानी लेकर उसमें आर्सेनिक होने का निष्कर्ष निकाला है। भारतीय जल विज्ञान संस्थान में वरिष्ठ वैज्ञानिक विश्वजीत चक्रवर्ती के अनुसार इस अध्ययन से लोगों को पेयजल की गुणवत्ता और आर्सेनिक से होने वाले नुकसान की जानकारी मिलेगी। शोध की रिपोर्ट पर्यावरण और स्वास्थ्य पर आधारित अंतरराष्ट्रीय जर्नल में भी प्रकाशित हुई है।

गंगा व ब्रह्मपुत्र नदियों के इलाकों में भूमिगत जल में आर्सेनिक की ज्यादा मात्रा मिली

टीम को उत्तर भारत के कुओं और गंगा व ब्रह्मपुत्र नदियों के किनारे के इलाकों के भूमिगत जल में आर्सेनिक की ज्यादा मात्रा मिली है। मध्य भारत और देश के दक्षिण-पश्चिम इलाके में भी जमीन के भीतर मौजूद सेडिमेंट्री चट्टानों की वजह से भूमिगत जल प्रदूषित हो चुका है। इसमें भी आर्सेनिक की मात्रा ज्यादा है। कुछ और देशों के पानी में भी इस तरह का खतरा है, लेकिन अभी भारत के जल का परीक्षण किया गया है और निष्कर्ष सार्वजनिक किए गए हैं।

आर्सेनिक वाले कुओं की पहचान कर पानी के इस्तेमाल पर रोक लगाई जाए

जरूरत जताई गई है कि ज्यादा आर्सेनिक वाले कुओं की पहचान की जाए और उनके पानी के इस्तेमाल पर रोक लगाई जाए। यह कार्य सरकार और वैज्ञानिक संस्थाओं के सहयोग से होना चाहिए। 

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