बुढ़ापे में दृष्टिहीनता से बचाएगी जीन थेरेपी, आंखों की रोशनी कम होने से मिल सकती है मुक्ति

इलाज की यह पद्धति आंखों की रोशनी को वापस नहीं लाती है, बल्कि आंखों को ज्यादा खराब होने से रोकती है। जीन थेरेपी के बाद से आंखों की रोशनी कम होने का सिलसिला रुक जाएगा।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Tue, 19 Feb 2019 06:28 PM (IST) Updated:Tue, 19 Feb 2019 06:28 PM (IST)
बुढ़ापे में दृष्टिहीनता से बचाएगी जीन थेरेपी, आंखों की रोशनी कम होने से मिल सकती है मुक्ति
बुढ़ापे में दृष्टिहीनता से बचाएगी जीन थेरेपी, आंखों की रोशनी कम होने से मिल सकती है मुक्ति

लंदन, प्रेट्र। बढ़ती उम्र के साथ आंखों की रोशनी कम होने की लाइलाज बीमारी एएमडी से निपटने की दिशा में वैज्ञानिकों ने बड़ी सफलता हासिल की है। ब्रिटेन की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने जीन थेरेपी के जरिये एएमडी की परेशानी को रोकने का दावा किया है। शोधकर्ताओं ने ऐसे पहले ऑपरेशन को सफलतापूर्वक अंजाम दिया है। एएमडी को विकासशील देशों में दृष्टिहीनता का सबसे बड़ा कारण माना जाता है।

ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने किया पहला सफल ऑपरेशन

उम्र बढ़ने के साथ लोग ड्राई एएमडी का शिकार होने लगते हैं। इसमें रेटिना के नजदीक मैक्यूला की कोशिकाएं धीरे-धीरे मरने लगती हैं। ऐसा होने से व्यक्ति की देखने की क्षमता कम होने लगती है। गंभीर स्थिति में व्यक्ति को पूरी तरह दिखाई देना बंद हो जाता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इसका सफल इलाज बहुत बड़ी आबादी का जीवन स्तर सुधार सकता है।

ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर रॉबर्ट मैकलारेन ने कहा, 'कुछ ऐसे मरीज, जिनमें आगे चलकर एएमडी की आशंका हो, उन्हें जेनेटिक इलाज देकर इससे बचा लेना शानदार उपलब्धि होगी। निकट भविष्य में हमें ऐसा देखने को मिल सकता है।'

इलाज की यह पद्धति आंखों की रोशनी को वापस नहीं लाती है, बल्कि आंखों को ज्यादा खराब होने से रोकती है। एएमडी में धीरे-धीरे आंखें कमजोर होती हैं। व्यक्ति को जिस स्तर पर जीन थेरेपी दी जाएगी, उसके बाद से आंखों की रोशनी कम होने का सिलसिला रुक जाएगा।

हाल ही में किया गया पहला ऑपरेशन

मैकलारेन ने हाल में जॉन रेडक्लिफ हॉस्पिटल में इस तरह के पहले ऑपरेशन को अंजाम दिया है। उन्होंने बताया कि ऑक्सफोर्ड की जेनेट ऑसबोर्न पहली व्यक्ति हैं, जिन्हें यह इलाज मिला है। एएमडी के शिकार अन्य लोगों की ही तरह ऑसबोर्न की भी दोनों आंखों में यह परेशानी थी, लेकिन बायीं आंख में दिक्कत ज्यादा थी।

80 वर्षीया ऑसबोर्न ने बताया कि एएमडी के कारण उनके लिए रोजाना के काम करना मुश्किल है। चेहरा पहचानने में भी दिक्कत होती है। उन्होंने कहा, 'मैं अपने बारे में नहीं, अन्य लोगों के बारे में सोच रही थी। अपने लिए मुझे इतनी उम्मीद थी कि मेरी आंखें और ज्यादा खराब नहीं होंगी। यही सोचकर मैंने इस परीक्षण का हिस्सा बनने का फैसला लिया।'

क्या है प्रक्रिया?

इस ऑपरेशन में रेटिना को हटाकर एक सॉल्यूशन के जरिये वायरस पहुंचाया जाता हे। इस वायरस में कोशिकाओं को प्रभावित करने वाला बदला हुआ डीएनए सिक्वेंस रहता है। वायरस आंख में पहुंचकर एएमडी का कारण बनने वाली जेनेटिक खामी को दूर कर देता है। अगर इलाज सफल रहे तो केवल एक बार ही ऑपरेशन करने की जरूरत होगी, क्योंकि इसका प्रभाव बहुत लंबे समय तक रहता है।

प्रतिरक्षा प्रणाली ही बनती है बीमारी का कारण

एएमडी का कारण हमारे ही शरीर की एक प्रणाली होती है। हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली में प्रोटीन का एक सिस्टम होता है, जो बैक्टीरिया से लड़ता है। एएमडी की स्थिति में ये प्रोटीन अति सक्रिय हो जाते हैं और रेटिना की कोशिकाओं को ही निशाना बनाने लगते हैं।

वैज्ञानिकों ने बताया कि वायरस रेटिना की कोशिका में पहुंचकर एक किस्म का डीएनए मुक्त करता है। इसके बाद कोशिका ऐसा प्रोटीन बनाने लगती है, जिससे एएमडी का असर कम होने लगता है।

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