बिगड़ती हुई आर्थिक संकट से जूझता पाक, क्या इससे उबर पाएगा?

जाहिर है पाकिस्तान के हालात दिन प्रतिदिन बिगड़ते जा रहे हैं। पाकिस्तान अगर अब भी नहीं संभला तो वह ज्यादा दिनों तक एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में बरकरार नहीं रह सकेगा।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Thu, 05 Jul 2018 12:19 PM (IST) Updated:Thu, 05 Jul 2018 12:19 PM (IST)
बिगड़ती हुई आर्थिक संकट से जूझता पाक, क्या इससे उबर पाएगा?
बिगड़ती हुई आर्थिक संकट से जूझता पाक, क्या इससे उबर पाएगा?

[उपेंद्र सूद]। पाकिस्तान अपनी बिगड़ती हुई आर्थिक स्थिति के चलते लगातार कर्जे के बोझ तले दबता जा रहा है। अभी हाल ही में एक खबर आई है जिसमें सवाल उठाया गया है कि चीन के बेशुमार कर्ज तले दबा पाकिस्तान क्या इससे उबर पाएगा? शायद नहीं। पाकिस्तान कर्ज तो कई देशों और संगठनों से ले चुका है, लेकिन इस कर्ज को वह कैसे वापस करेगा, उसके पास इसके उपाय नहीं हैं। ऐसे में पाकिस्तान की हालत दिन प्रति दिन खराब होती जा रही है और वह कई देशों और संगठनों के कर्ज में डूबता जा रहा है।

एक पाकिस्तानी अखबार में छपी खबर के अनुसार पिछले हफ्ते पाकिस्तान की विदेशी मुद्रा कम होकर 9.66 अरब डॉलर हो गई, जो कि मई 2017 में 16.4 अरब डॉलर थी। हालांकि 2017 के मुकाबले देखें तो अप्रैल 2016 तक पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार 18.1 अरब डॉलर था। इस कर्ज के साथ ही चीन से पाकिस्तान इस वित्तीय वर्ष में पांच अरब डॉलर से ज्यादा का कर्ज ले चुका है। पाकिस्तान के वित्त मंत्रालय के दस्तावेजों के हवाले से बताया है कि इस वित्त वर्ष के पहले 10 महीने में चीन पाकिस्तान को 1.5 अरब डॉलर कर्ज दे चुका है। इसी वक्त पाकिस्तान ने कई अन्य व्यावसायिक बैंकों से 2.9 अरब डॉलर के कर्ज लिए हैं और इनमें से ज्यादातर बैंक चीन के हैं।

वहीं कई आर्थिक विश्लेषकों का कहना है कि चीन नहीं चाहता है कि पाकिस्तान किसी गंभीर आर्थिक संकट में फंसे, क्योंकि इससे उसकी महत्वाकांक्षी परियोजना चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) पर बुरा असर पड़ेगा। यह परियोजना करीब 60 अरब डॉलर की है। हालांकि कई जानकारों का यह भी मानना है कि चीन का यह कर्ज पाकिस्तान के संकट को कम करने के लिए काफी नहीं है।

अब पाकिस्तान में 25 जुलाई को आम चुनाव हैं और कहा जा रहा है कि नई सरकार को एक बार फिर से 2013 की तरह आइएमएफ के पास जाना होगा। 2013 में आइएमएफ ने पाकिस्तान को 6.7 अरब डॉलर की आर्थिक मदद की थी। पाकिस्तान 1988 से अब तक 12 बार अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की शरण में जा चुका है। पाकिस्तान के केंद्रीय बैंक के पूर्व अर्थशास्त्री मुश्ताक खान ने कहा है, ‘पाकिस्तानी नीति निर्माता आर्थिक घाटे को कम करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठा रहे हैं। ये केवल नुकसान के गैप को कम करने की कोशिश कर रहे हैं। चीन से हमारी समस्या का समाधान नहीं हो सकता है।’

अभी हाल ही में पाकिस्तान को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी कड़ा रुख अपना लिया है। अमेरिका ने पाकिस्तान को दी जाने वाली आर्थिक मदद लगभग रोक दी है। इसका असर यह हुआ कि पाकिस्तान की चीन पर निर्भरता और बढ़ गई। पाकिस्तान पर विदेशी कर्ज 91.8 अरब डॉलर हो गया है। कई विश्लेषकों का कहना है कि चीन का दो तिहाई कर्ज सात फीसद के उच्च ब्याज दर पर है।

इसके अलावा हाल ही में आतंकी फंडिंग को लेकर पाकिस्तान को वित्तीय कार्रवाई कार्यबल (एफएटीएफ) की निगरानी सूची में भी लंबे समय के लिए शामिल कर दिया गया है। पेरिस में चली एफएटीएफ बैठक में पाकिस्तान की ओर से आतंकी फंडिंग रोकने के लिए उठाए जा रहे कदमों की सूची पेश की गई, लेकिन सदस्य देशों ने इसे नाकाफी करार दिया।

फरवरी की बैठक में पाकिस्तान को तीन महीने के लिए निगरानी सूची में शामिल करते हुए आतंकी फंडिंग रोकने के लिए जरूरी कदम उठाने की चेतावनी दी गई थी। वैसे तो एफएटीएफ को किसी भी देश के साथ आर्थिक लेन-देन प्रतिबंधित करने का अधिकार नहीं है, लेकिन निगरानी सूची में आने के बाद आर्थिक संकट से गुजर रहे पाकिस्तान की मुश्किलें बढ़ जाएंगी। जाहिर है पाकिस्तान के हालात दिन प्रतिदिन बिगड़ते जा रहे हैं। पाकिस्तान अगर अब भी नहीं संभला तो वह ज्यादा दिनों तक एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में बरकरार नहीं रह सकेगा।

-अडनी 

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